रंगा-बिल्ला (कहानी)
रंगा-बिल्ला - कहानी
एक कहानी रोज़-246
रंगा और बिल्ला। छोटे-मोटे अपराधी थे। छोटे शहर से दिल्ली भागकर आये थे। दोनों मिलकर कुछ बड़ा करना चाहते थे। अपहरण पर सहमति बनी। मगर किसका? यह ज्वलंत प्रश्न था। शहर में नये थे अतएव कमाऊ औलाद कहां मिले, यह विचारणीय था। रैण्डमली निश्चित किया। रंगा टैक्सी चलाता था। उसी में पहली सवारी दोनों का शिकार होगी। सोलह साल की अर्पिता और चौदह का गर्वित। उस दिन दोनों की आकाशवाणी में रिकाॅर्डींग थी। युवा उत्सव पर। शाम के छः बजे का समय था। सड़क पर आकर अर्पिता ने टैक्सी के लिए हाथ हवा में हिलाया। गर्वित भी उत्साहित था। दोनों पहली बार आकाशवाणी जा रहे थे। रंगा ने टैक्सी रोक दी। उसके बगल में बिल्ला भी संवार था। उनके चेहरे पर शैतानी मुस्कुराहट तैर रही थी। एक बार तो अर्पिता का मन किया की इन्हें मना कर दे। मगर फिर हाथ घड़ी की तरफ देखा। उन्हें लेट हो रहा था। तब ही गर्वित दौड़कर टैक्सी के अंदर जा बैठा। अब अर्पिता के पास कोई चारा न था। वह भी बैठ गयी। टैक्सी चल पड़ी। टैक्सी धीरे-धीरे आगे बढ़ रही थी। एकाएक रंगा ने एक्सीलरेटर जोरो से दबा दिया। गाड़ी हवा से बातें करने लगी। अर्पिता का नव यौवन देखकर बिल्ला की लार टपक रही थी। रंगा उसके इरादे भांप चूका था। किडनैप की मंशा अब बुरी नियम में बदल चूकी थी। मगर अर्पित इसमें बहुत बड़ा रोड़ा था। टैक्सी तेज़ भाग रही थी। अचानक रंगा ने ब्रेक मार दिये। अर्पिता झटके से ड्राइवर और बगल वाली सीट के बीच में जा पहूंची। गर्वित को सिर में जोरदार चोट लगी। खून बह निकाला। उसने जब आगे देखा तो जोरों से चीखा। अर्पिता, बिल्ला से स्वयं को बचाने का संघर्ष कर रही थी। मगर ऊंचे पूर बलिष्ठ बिल्ला के आगे उसकी एक न चली। गर्वित अपनी बहन को बचाने के लिए आगे बढ़ा। रंगा ने टैक्सी पुनः शुरू कर दी। रंगा कम भीड़-भाड़ वाली सड़क पर टैक्सी ले गया। अर्पिता अपनी अस्मत बचाने का संघर्ष कर रही थी। टैक्सी के कांच ऊपर चढ़े होने के कारण बाहर किसी को कुछ सुनाई नहीं दिया। गर्वित अपनी बहन को बचाने के प्रयास कर रहा था। मगर बिल्ला उसे अपने एक हाथ से बार-बार थक्का मार देता। जिससे की वह पुनः अपनी सीट पर थड़ाम से जा गिरता। इस पर रंगा-बिल्ला की हंसी छुट जाती। रंगा ने अपने दोनों हाथों से अर्पिता को कसकर पकड़ रखा था। वह बमुश्किल हिल-डुल पा रही थी। बीच-बीच में वह अपना मुंह अर्पिता के चेहरे पर ले जाता। रंगा ने अर्पिता को अपने हृदय से लगा लिया। वह मदमस्त था। गर्वित ने अपनी संपूर्ण शक्ति के साथ रंगा पर आक्रमण किया। वह अपने दातों से रंगा को काटने लगा।
क्रमशः ........
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
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लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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आपकी कहानियाँ सरल और पाठक को बांधने वाली होती हैं। अभिव्यक्त इतने अच्छे से करते हैं कि मानो वो दृश्य सामने घटित हो रहा है।
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