तेरी मेरी कहानी

 एक कहानी रोज़

      तेरी-मेरी कहानी--लघुकथा

              *भारती* ने बहुत समझाया तब जाकर मौना राज़ी हुई। भारती चाहती थी कि अभय सीधे-सीधे बता दे की उसके दिल में क्या है? पिछले पांच सालों से वह मौना से शादी करने की हां मी भर रहा था। मगर हर बार समय आने पर बात टाल जाता। मौना थी कि उसकी हर बात को सच मान लेती। किन्तु भारती का सोचना था कि यदि अभय को मौना से शादी करनी होती तो अब तक कर चूका होता। वह केवल मौना को भ्रमित कर रहा है। उस व्यक्ति का भविष्य क्या होगा जो स्वयं की शादी का निर्णय नहीं ले पा रहा हो! भारती ने अभय को फोन मिला दिया।

"अभय! तुम्हारे मन में जो भी हो! हां या न! सब सच-सच कह दो। सच बताकर ये किस्सा खत्म करो। मौना से नहीं कह सकते तो मुझे बता दो। लेकिन अब इसे और लम्बा मत खींचो।"

अभय की आवाज़ में लड़खड़ाहट साफ सुनाई दे रही थी। भारती जानती थी कि अभय उसे क्या कहेगा? अभय ने मौना से शादी करने से इंकार कर दिया। मौना ने यहां संयम से काम लिया। उसने अभय से सिर्फ इतना कहा कि यदि यही बात अभय पांच साल पहले कह देता तो मौना और अभय आज दोनों खुश होते। खैर, अब भी देर नहीं हुई थी। मौना के घर से कुछ दुर नुक्कड़ पर सुमंत की दुकान थी। कुछ वर्ष पुर्व वह भी अन्य लड़कों की भांति मौना के रूप सौन्दर्य पर मोहित था। मौना के रिश्तेदार मौना के लिए सुमंत का रिश्ता लेकर आये थे। मगर मौना एक पंचर बनाने वाले से शादी करने का कभी  सोच भी नहीं सकती थी। उसने इंकार कर दिया। उसे अभय जैसे वेल सेटल और टेलेंडेट पर्सनैलिटी की तलाश थी। अभय और मौना परस्पर प्रेम में थे। मगर शादी के सवाल पर अभय हमेशा कन्नी काट जाता। मौना की अस्वीकृति जानकर सुमंत अपने काम-काज में व्यस्त हो गया। मगर वह मौना को भुला नहीं था। मौना अब भी उसके हृदय में थी। भारती यह बात जान चूकी थी। उसने अभय और मौना को मिलाने की ठानी। मौना अब भी कुछ संकोच में थी। तब भारती ने उसे समझाया। बेहतर से बेहतर की तलाश में प्रत्येक रिश्तें को अस्वीकार करना न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता। इच्छाएं अनंत है। जिनकी पुर्ती या समाप्ती जीते जी संभव नहीं। यदि मौना युं ही समय गुजारती रही तो वह अन्य अच्छे लड़कों की भांति सुमंत को भी गवां देगी। सुमंत मौना से विवाह करने के लिए तैयार था। भारती ने मौना को समझाया की आदमी का उच्च व्यक्तित्व अच्छी कद काठी अथवा अच्छे पहनावे से नहीं बनता। अपितु ऊंची सोच और सभी के लिए दिल में उचित सम्मान व स्नेह की भावनाएं होने से आदमी बड़ा बनाता है। सुमंत का काम भले ही सायकिल का पंचर बनाना हो, मगर इसी काम से उसके यहां काम कर रहे पांच कारीगरों के घर का चुल्हा जलता था। मौना ने अपना अहम् त्याग दिया। अपनी उन्नत पढ़ाई-लिखाई और उत्तम सौन्दर्य पर व्यर्थ का आभिमान उसे बहुत कष्ट पहूंचा चुका था। समय और विषय की गंभीरता को बोध होते ही उसने सुमंत से विवाह करने का निर्णय ले ही लिया।



समाप्त


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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।



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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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