कवि और कार- व्यंग्य
*एक कहानी रोज़-298 (21/01/2020)*
*कवि और कार- व्यंग*
*एक* कवि ने कार क्या खरीदी! सारे देश में हड़कंप मच गया। बड़े-बड़े और नामी-गिरामी कवियों के लिए यह चर्चा का विषय था। देश के एक बड़े कवि ने बयान दिया कि यहां सायकिल खरीदने की व्यवस्था नहीं है और उस कवि न कार खरीद ली। पता लगाओ कि वह प्रति कवि सम्मेलन कितना मानदेय लेता है? और सबसे बड़ी बात कि उसे इतना बड़ा मानदेय देने वाला आयोजक आखिर है कौन?
सात दिनों तक सघन जांच-पड़ताल की गयी। आठवें दिन जाकर पता लगा कि उन कवि महोदय ने खरीदी तो सायकिल ही थी मगर उस सायकिल का नाम कार रख दिया था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- व्यंग्य मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। रचना प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।
©®सर्वाधिकार सुरक्षित
लेखक--
जितेन्द्र शिवहरे
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