ऐसा प्यार कहाँ-कहानी

      एक कहानी रोज़


*ऐसा प्यार कहां--कहानी*

    

     *सपना* और आरती। दोनों एक दम पक्की सहेली। बस युं समझो की दो जिस्म़ एक जान। एक साथ पली बढ़ी। एक ही स्कूल में दाखिला लिया। साथ-साथ काॅलेज भी गयी। जब सपना के मन में जाॅब का ख़याल आया तब आरती ने भी काॅल सेन्टर ज्वाॅइन किया। संयोग से एक ही ऑफिस में दोनों एक साथ काम पर चढ़ी। आरती का रिश्ता जब सुरज से तय हुआ तब सपना ने अपने स्तर पर जांच पड़ताल की। वह जानना चाहती थी कि सुरज उसकी सहेली आरती के योग्य है अथवा नहीं। सुरज को सपना ने हरी झण्डी दिखाई तब जाकर आरती ने सुरज के लिए हां की। मगर आरती ने अपने परिवार से एक बात साफ-साफ कह दी। जब तक सपना का ब्याह तय नहीं हो जाता वो शादी नहीं करेगी। उन दोनों सहेलियों ने निश्चय किया था की दोनों एक ही मंडप पर दुल्हन बनकर बैठेंगी। आरती की जिद के आगे सभी ने घुटने टेक दिये। आरती और सपना के परिवार वालों ने मिलकर सपना के लिए मन को ढुंढा। सपना और मन के साथ आरती और सुरज का ब्याह एक ही विवाह मंडप पर एक ही दिन सम्पन्न हुआ। दोनों की दोस्ती शादी के बाद भी कम नहीं हुई। मन और सुरज एक ही शहर के रहने वाले थे। अतएव सप्ताहांत दोनों परिवारों का एक साथ ही बितता। मन ने नैनीताल घुमने की योजना बनाई। फिर क्या था, सपना ने आरती को इस बात के लिए राजी कर लिया। सुरज को मन के साथ घुमने जाने में कोई आपत्ति नहीं दिखी। क्योंकि सपना और आरती की दोस्ती के कारण दोनों के पतियों में भी अच्छी मित्रता हो गयी थी। फलतः वह तैयार हो गया। सपना जब पहली बार मां बनी तो सबसे ज्यादा खुश आरती थी। उसने अपनी प्यारी सहेली सपना का भरपूर ध्यान रखा। गर्भावस्था के नौ महिने आरती पग-पग पर सपना के साथ थी। सपना ने एक बेटी को जन्म दिया। दोनों घर में खुशियां मनाई गयी। सपना चाहती थी की आरती भी जल्दी ही मां बन जाये ताकी वह भी उसके लिए वह सब करे जो आरती ने उसके लिए किया। मगर प्रकृति को कुछ ओर ही मंजूर था। सपना दुसरी बार मां बन चूकी थी। मगर आरती की गोद अब भी हरी नहीं हुई थी। आरती ऊपरी मन से हंसने-मुस्कुराने का दिखावा अवश्य करती मगर उसकी अंतर्रात्मा मां बनने के लिए तड़प रही थी। उसके सभी तरह के मेडीकल टेस्ट ठीक आये थे। सुरज भी अपनी जांचें करवा चूका था। मगर किसी को कुछ पता नहीं चल रहा था की आखिर आरती को गर्भ ठहरता क्यों नहीं।

"ये तुम क्या कह रही हो, तीसरा बच्चा! नहीं सपना! हमारी दोनों बेटीयां ही काफी है।" मन सपना से कह रहा था।

"आप समझे नहीं मैं तीसरे बच्चें के लिए इसलिए कह रही हूं•••••••" सपना बोलते-बोलते रूक गयी।

"मैं जानता हूं सपना। तुम्हारे साथ हम सभी की इच्छा थी की इस बार बेटा ही हो। मगर ईश्वर के आगे किसकी चली है।" मन ने सपना को समझाया।

सपना को समझ नही आ रहा था कि वह अपने दिल की बात मन से कैसे कहे।

"मैं जानता हूं कि मां-बाबुजी चाहते है की उनका एक पोता भी हो। मगर मैंने उन्हें साफ-साफ कह दिया है। मेरी दोनों बेटीयां बेटों से कम नहीं है। मैं इन्हें उतना ही काबिल बनाऊंगा जितना की लोग अपने बेटों को बनाते है।" मन ने कहा।

"आप समझे नहीं। मैं चाहती हूं कि हम अपनी तीसरी संतान आरती के लिए पैदा करे। वह कितनी दुःखी है। उसकी गोद में बच्चा होगा तब ही वह खुश रह सकेगी। और मैं भी।" सपना ने कहा।

"ये क्या बकवास है सपना। हम अपना तीसरा बच्चा पैदा करे और आरती को दे दे? कोई मज़ाक है क्या?" मन भड़क गया।

सपना जानती थी कि आज वह मन को इस बात के लिए राज़ी नहीं कर सकी। मगर उसे पुरा यकीन था आज नहीं तो कल वह मन को इस बात के लिए राज़ी कर ही लेगी।

"सपना! तुने मेरे लिए इतना सोचा! वही काफी है। मगर यह नहीं हो सकता।" आरती ने सपना के प्रस्ताव पर असहमति देते हुये कहा।

"हो सकता है आरती! देख, मेरा होने वाला बच्चा तेरे यहां रहे या मेरे यहां! बात तो एक ही है न! और फिर सोच! इस बच्चें की वज़ह से हमारे रिश्तें में कितनी निकटता आ जायेगी।" सपना ने आरती को स्वप्न दिखाये।

"मगर तेरे पति मन! क्या यह स्वीकार करेंगे?" आरती ने संशय जताते हुये पुछा।

"वह सब तु मुझ पर छोड़ दे। मैं उन्हें अच्छी तरह जानती हूं। मुझे उन्हें मनाना आता है! तु अपने पति सुरज के विषय में सोच! तु अपने पति को राज़ी कर मैं अपने पति को राज़ी करती हूं।" सपना ने कहा।

"ठीक है आरती! तुने मेरी ममता को फिर से जगा दिया है। बस भगवान करे। जैसा हम सोच रहे है वैसा सचमुच में हो जाये!" आरती ने प्रार्थना की।

सपना के प्रस्ताव को सुनकर सुबह से ही मन का मुड ऑफ था। उस पर सपना ने अपनी सास और ससुर को भी यह बात बता दी। रमादेवी तो बिफर उठी। जैसे-तैसे उन्होंने दो-दो पोतियों को स्वीकार किया था। रमादेवी ने जब तीसरी संतान का प्रस्ताव दिया था तब तो सपना और मन दोनों ने उसे खारिज कर दिया था। अब तीसरी संतान पर सपना इसलिए सहमत है क्योंकि उसे अपनी सहेली आरती को यह संतान सौंपनी है। हद है! इनकी दोस्ती भी। उन्होंने सपना और आरती की प्रगाढ़ दोस्ती को न चाहते हुये स्वीकार किया था। मगर इस तरह का बलिदान देने के प्रति वे लोग एकमत नहीं थे।

सपना कोपभवन में चली गयी। उसने अन्न जल त्याग दिया। मन के लिए यह सर्वाधिक दुविधा से भरी स्थिति थी। उसने सुरज से मदद मांगी मगर सुरज स्वयं आरती का जिद्दी स्वभाव सह रहा था। वह आरती को समझा-बुझा के देख चूका था। मगर आरती ने सुरज की एक न सुनी। आरती के निश्चय को भी सपना की ही तरह तोड़ना संभव न था।

एक के बाद एक, तीन दिन निकल गये। अंकिता और आरुषि, दादी मां के साथ थी। सपना ने स्वयं को कमरे में बंद कर लिया था। किसी अनहोनी घटना का प्रादुर्भाव घर पर दस्तक न दे जाये इसलिए न चाहते हुये भी मन ने सपना की बात मान ली। सपना ने सबसे पहले खुशी की यह बात आरती को बताई। आरती यह सुनकर प्रसन्नता से भाव विभोर हो उठी। वह आने वाली संतान के स्वप्न में खो गयी। फिर वह दिन भी आया जब सपना के पैर एक बार फिर से भारी हुये। सपना के अलावा घर में अन्य कोई प्रसन्न नहीं था। आरती एक बार फिर जुट गयी सपना की तिमारदारी में। प्रसव का समय धीरे-धीरे नज़दीक आ रहा था। देर रात जब सपना को प्रसव वेदना आरंभ हुई तब उसने मन को जगाया। मन ने उसे अपनी कार में बैठाकर सिटी हाॅस्पीटल की ओर दौड़ लगा दी। सपना ने आरती को सुचना दे दी। वह चाहती थी कि हाॅस्पीटल में आरती के सामने ही यह बच्चा पैदा हो। सुबह के चार बजे नर्स ने मन को स्वस्थ शिशु के जन्म लेने की सुचना दी। सपना की यह तीसरी संतान एक बेटा थी। रमादेवी प्रसन्नता के वशीभूत सारे हाॅस्पीटल में मिठाई बांटने जा पहुंची। सपना के ससुर भी प्रसन्न थे। उन्होंने घर में दान धर्म का एक आयोजन आयोजित कर लिया। मगर मन जानता था कि उसके माता-पिता की ये खुशी अधिक समय तक नहीं रहेगी। यह बच्चा आरती को सौंपा जाना है। स्वयं सपना ने हाथ में गंगा जल लेकर अपनी होने वाली संतान आरती को दान में देने का वचन दिया था। मगर रमादेवी कुछ सुनने को तैयार नहीं थी।उन्हें तो हर कीमत पर अपना पोता चाहिए था। अब कोपभवन में जाने की बारी रमादेवी की थी। सपना विचलित हो उठी। यही हालत आरती की भी थी। क्या-क्या सपनें संजोयें थे उसने। मगर अब जब उन सपनों को पुर्ण करने का समय आया तब रमादेवी ने इतना बड़ा विघ्न उत्पन्न कर दिया। जिससे पार पाना किसी के वश में न था। यदि रमादेवी को कुछ हो गया तब मन सपना को कभी माफ नहीं करेगा। ऐसे में उसका वैवाहिक जीवन खतरे में पड़ जायेगा। तब अंकिता और आरूषी का क्या होगा?

"आरती! तु ये बच्चा लेकर कहीं दूर भाग जा!" हाॅस्पीटल के बेड पर लेटी सपना आरती से बोली।

"तु ये क्या कह रही है?" आरती बोली।

"हां आरती! ये लोग हमारे रिश्तें को कभी नहीं समझेंगे। अब आगे जो भी होगा, मैं संभाल लुंगी। तु अपने बेटे को लेकर चली जा।" सपना ने अपनी गोद में से शिशु को उठाते हुये कहा। वह आरती को यह शिशु सौंपना चाहती थी। आरती ने कंपकपाते हाथों से शिशु को ग्रहण किया।

'आरती! ये तुझे क्या हो गया?' आरती की अंतरात्मा उससे बात कर रही थी।

'अपनी ममता में तु इतनी अंधी हो गयी की तेरी इस अभिलाषा के कारण तेरी सबसे अच्छी सहेली सपना का घर-परिवार टुटने की कगार पर आ खड़ा हुआ है। और तु अब भी इस बच्चें को लेने की हिम्मत दिखा रही है। सपना ने अपनी कोख का दान कर अपनी दोस्ती का फर्ज़ निभा दिया। अब तेरी बारी है। उसे यह बच्चा लौटाकर उसकी गृहस्थी को बचा ले।' आरती ने अपने आसुं पोंछे।

'अरे! बच्चा उसका हो या तेरा। बात तो एक ही न! बच्चा  सपना के पास रहे यही इस बच्चें के लिए आवश्यक है। क्योंकि आरती ही उसकी असली मां है। इसके उत्तम स्वास्थ्य की चिंता और उचित देखभाल जितना सपना कर सकती है उतनी तू नहीं। सपना और उसके परिवार वालों ने उसे अपने यहाँ आने-जाने से कभी मना नहीं किया। क्या तू चाहती है कि बचपन की सहेलियों की दोस्ती के टुटने की वज़ह ये बच्चा बने। जिसे अभी तक उसका निजी नाम भी नहीं दिया गया। मगर दोनों की दोस्ती के टुटने का दोषी तो इसे ही समझा जायेगा न। नहीं! तुम दोनों की दोस्ती इतनी कमजोर नहीं है। इसलिए अपने दिल को बड़ा कर और यह बच्चा आरती को लौटा दे।' सपना विचारों के भंवर से उबर चूकी थी। उसने शिशु को पुनः सपना की गोद में रख दिया। उसके चेहरे पर संतोष जनक मुस्कान थी। मानो वह जो चाहती थी उसे मिल चूका है।

"सपना! ये बच्चा तेरे पास ही रहेगा। हमेशा।" आरती ने कहा।

"ये क्या कह रही है आरती।" सपना चौंकी।

"हां सपना! हमारी दोस्ती के टुटने की वज़ह ये बच्चा नहीं बनेगा। इसे भी तेरी दोनों बेटियों की तरह दो-दो मांओं का प्यार मिलेगा।" आरती बोली।

सपना कुछ बोलना चाहती थी। मगर उसके पहले ही आरती ने उसके हाथ को अपने हाथों में ले लिया।

"सपना! उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिये। आज नहीं तो कल मेरी भी गोद भरेगी। तब तक तेरे बच्चें है न! ये भी मेरे ही तो है। इन्हीं पर अपनी सारी ममता लुटाऊंगी।" आरती सुबक रही थी।

सपना की भी आंखें भर आयी थी। बाहर दरवाजे पर खड़े-खड़े मन और सुरज यह सब देख रहे थे। सपना और आरती की दोस्ती वास्तविकता में मिशाल थी। जिस पर उनके पतियों को गर्व था। समय के साथ दोनों की दोस्ती और भी मजबूत होते चली गयी। और आखिर वह दिन भी आया जब आरती पर ईश्वर ने कृपा बरसायी। उसकी भी गोद हरी हुई। आरती की गोद में उदय खेल रहा था। जिसे उसकी मां आरती के साथ सपना का भी भरपूर प्यार मिल रहा था।


समाप्त

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प्रमाणीकरण-- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमती है।



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लेखक--

जितेन्द्र शिवहरे 

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