दूध का सूद
दूध का सूद-लघुकथा
आठ वर्ष का अनाथ बालक कान्हा! फुटपाथ पर बनी झोपड़ी में अन्य भिक्षुक साथियों के साथ रहता था। सभी में कमाल की एका था। मांगकर लाये गये भोजन को एकट्ठा मिलकर खाते। कान्हा दूध का शौकिन था। झोपड़ी के सामने ही दूध डेयरी की दुकान थी। डेयरी मालिक मोहन काका ने एक दिन देखा की दूध टंकीयो से नीजे जमीन पर गिरे दूध को कान्हा श्वान की तरह चाट रहा है। उनका ह्रदय भर आया। बस! तब से मोहन काका ने संकल्प लिया। कान्हा को थोड़ा दूध हर रोज नि:शुल्क पीने को दिया करते। हाथों में गिलास लिये कान्हा हर रोज डेयरी पर आ धमकता। मोहन काका गिलास में दूध डाले देते। कान्हा स्वयं पीता और अपने साथियों को भी देता।
उस रात जब डेयरी पर चोरों में ने धावा बोला तब नन्हा कान्हा अकेला ही चोरों से भिड़ गया। कान्हा के सहयोगी भी आ पहूंचे। चिल्ला-चोट में पुलिस आ धमकी। सारे चोर पकड़ गये। डेयरी मालिक भी दौड़े-दौड़े दुकान पहुंचे। जब पुलिस ने कान्हा और उसके साथियों को इनाम देना चाहा तब नन्हा कान्हा बोला- 'नहीं सर! ये तो हमारे दूध का सूद मात्र था।'
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
सर्वाधिकार सुरक्षित
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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