मल दे गुलाल मोहे-कहानी

 *मल दे गुलाल मोहे-कहानी*

      *एक* अजीब-सा चुम्बकीय जादू था उस युवक में। खुशी न चाहते हुये भी युवक को देखकर शर्मा जाती। अपने इंटीरियर डेकोरेशन कार्य में वह खुश थी। लव से सगाई हुये पुरे एक वर्ष का समय हो चुका था। लव सिविल इंजीनियर था। दोनों की शादी की तिथी नजदीक आते ही ऐसा कुछ हो जाता, जिससे शादी टल जाती। पिछले वर्ष लेन-देन पर जैसे-तैसे सहमति बनी थी। कमाई और अच्छे लड़के आजकल कहां मिलते है, यहीं  सोचकर खुशी के माता-पिता ने हैसियत से अधिक खर्च करने का मन बना लिया था। किन्तु जैसे ही लव कोरोना पाॅजिटीव हुआ, सब धरा के धरा रह गया। लव स्वस्थ हुआ तो उसकी कुंवारी बहन और फिर उसकी मां कोरोना पाॅजिटीव हो गयीं। खुशी और लव की शादी को पुरे एक साल टालना पड़ा। इधर खुशी भी सोचने लगी थी की जितनी जल्दी शादी हो जाये उतना अच्छा। ताकि वह अपने कॅरियर पर ठीक से ध्यान दे सके। चौबीस की हो चुकी खुशी पर नाते-रिश्तेंदार व्यंग्य कसने लगे थे। क्योंकि खुशी की हमउम्र सभी सहेलीयां ब्याही जा चूकी थी। खुशी की शादी ही इस समस्या का हल था।

खुशी के ऑफिस के बाहर मुख्य सड़क के उस पार एक पान पार्लर की शाॅप थी। वह खुबसूरत नौजवान वहां सिगरेट पीने प्रतिदिन आता। द्वितीय मंजिल के ओपन ऑफिस में कस्टर को समझाती खुशी अनायास ही सिगरेट पीते उस युवक को देखकर सहम जाती। साढ़े पांच इंच हाइट, लम्बी-पतली मूंछें और घनी काली दाढ़ी, तेजस्वी ललाट और स्टालिश फैशनेबल पोशाक में देखने भर से वह युवक किसी रहीस खानदान का लगता था। ब्लैक कलर की पल्सर बाइक दौड़ाता वह युवक खुशी के हृदय में कब उतर गया, वह समझ ही न सकी? हालांकी खुशी अन्य युवकों को सिगरेट पीने की मनाही पर लम्बा-चौड़ा लेक्चर दे जाती, किन्तू उस युवक को सिगरेट पीता देख खुशी मोहित हुये बिना नहीं रह पाती। जैसे उस युवक ने खुशी को सम्मोहित कर दिया हो! युवक खुशी को टक-टकी लगाये देखा करता। किन्तु खुशी से नज़रे मिलने पर वह भी झेंप जाता। अगले ही पल वह बाइक स्टार्ट कर चलते बनता। जिस दिन युवक पान पार्लर की शाॅप पर नहीं आता, खुशी बैचेन हो जाती। उसका काम-धाम में मन नहीं लगता। उसे स्वयं अनुभव हुआ कि वह क्या से क्या हो गयी थी? फाइनली खुशी की शादी अप्रैल में होना तय हुई। एक माह का समय बचा था। लव ने बहुत बार फोन पर खुशी से प्रेम भरी बातें करनी चाही, किन्तू खुशी तो अपना दिल किसी ओर को दे बैठी थी। सो उसने लव की उपेक्षा आरंभ कर दी। लव को आभास हुआ शायद दहेज वाली बात से नाराज होकर खुशी उन दोनों के रिश्ते के प्रति गंभीर नहीं है। उसे डर था कि खुशी शादी के लिए इंकार न कर दें। खुशी इंकार करना चाहती थी किन्तु उसका भावि प्रेमी वह युवक बात आगे बढ़ाने की हिम्मत ही नहीं कर रहा था। ऑफिस के बोर्ड पर खुशी का मोबाइल नम्बर भी लिखा था किन्तु युवक ने न कभी खुशी को न फोन लगाया और न ही कभी मैसेज किये। खुशी को कभी-कभी ये भी लगता था कि शायद यह एक तरफा प्यार है वर्ना युवक छः माह में एक बार तो बात करने की कोशिश करता।

"वह नहीं बोलता तो तु बोल दे उससे अपने दिल की बात।" खुशी की सहेली नताशा ने सलाह दी।

"नहीं यार! कहीं उसने मना कर दिया तो?" खुशी बोली।

"लेकिन किसी को तो बोलना पड़ेगा न!" नताशा ने गुस्सें में कहा।

"हां नताशा! मैं कल ही अपना दिल की बात उससे कह दूंगी। फिर जो भी हो, देखा जायेगा!" खुशी ने उत्साह में कहा।

होली नजदीक थी। बाजार सतरंगी रंगों से फल-फूल रहा था। शाम का वक्त हो चला। होलिका दहन की तैयारियाँ देखते ही बनती थी। खुशी ने ऑफिस लाॅक किया और घर के लिए निकलने के जैसी सीढ़ीयों से नीचे उतरकर सड़क पर आयी! सामने वह युवक खड़ा था जिसे खुशी प्यार करने लगी थी। उसके हाथ-पैर ठंडें पड़ गये। पैर उठने का नाम नहीं ले रहे थे। गला सूख रहा था। चेहरे पर लगे मास्क को हटाकर वह ठीक से सांस लेने की कोशिश करते दिखी। युवक ने अपने बेग में से पानी की बाॅटल खोलकर खुशी को ऑफर की। खुशी एक सांस में ही पुरी बाॅटल का पानी गटक गयी।

"मेरा नाम अभय है और मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं।" अभय ने खुशी से मन की बात कह दी।

खुशी का दिल जोरो से धड़कने लगा था। अभय ने पहली ही गेंद पर सिक्क मार दिया था।

"अssss! वोsssss! साॅरी लेकिन...ssss! मेरी सगाई हो चुकी है।" खुशी अटकते हुये बोली। उसे स्वयं पर गुस्सा आ रहा था। यह उसने क्या अनर्थ कर दिया! उसे अभय को यह नहीं बताना चाहिये था। कहीं अभय चला गया तो? 

'हाथ आये निवाले को स्वयं से दूर करना कोई खुशी से सीखें।' खुशी बढ़बढ़ा रही थी।

"सगाई ही हुई है न! शादी तो नहीं! और वैसे भी शादी उसी से करना चाहिए जिससे आप प्यार करते हो।" अभय ने कहा।

"आपको कैसे पता कि मैं भी आपसे प्यार करती हूं। जबकी हम पहली बार मिल रहे है।" खुशी ने कहा।

"प्रत्यक्ष मुलाकात ही मिलना नहीं होता। हम दोनों पिछले कितने ही दिनों से मिल रहे है। हमारी बातें सिर्फ आंखों में होती है और इसी बिनाह पर मैं कहता हूं कि तुम भी मुझे उतना ही प्यार करती हो जितना की मैं।" अभय बोला।

खुशी की खुशी का ठीकाना नहीं था। यह होली अब तक की सबसे यादगार होली थी उसके लिए। खुशी का मन कर रहा था की दौड़कर अभय के गले से लग जाएं और उसके प्यार को स्वीकार कर लें। किन्तु लाज की बैढ़ियां उसे पैरों को रोके हुई थी।

"खुशी! पता है तुम्हें। मैंने शुरू ही से सोच लिया था कि होली के दिन ही तुमसे अपने प्यार का इजहार करूंगा। क्योंकी प्रेमियों के लिए यह बसंत का त्यौहार एक वरदान की तरह होता है। इसमें मन की मुराद पुरी होती है। ऐसा मैंने सुना है।" अभय बोला।

खुशी बहुत कुछ बोलना चाहती थी। मगर शब्द थे की गले में आकर अटक जाते।

"मैं सिगरेट नहीं पीता था। मगर तुम्हें देखने के लिए वहां कुछ पल खड़े होने के लिए सिगरेट पीना जरूरी था। इसलिए सिगरेट पीना शुरू कर दिया। बट यूं डोन्ट वरी! आज से नहीं पीऊंगा। क्योंकि अब तुम्हारी आंखों के जाम के नशे के आगो कोई नशा टीकेगा नहीं।" अभय बोलता गया।

खुशी मारे शर्म के पानी पानी हुये जा रही थी। उसके सपनों का राजकुमार अभय उससे इतना बेशुमार प्यार करता है, यह सुनकर दुनियां भर की खुशी उसकी झोली में आ गिरी थी।

अब तो उसका मन कर रहा था की अभय से कहें की होली का गुलाल उसके चेहरे पर मल दे। ताकि दोनों के प्रेम रिश्तें की औपचारिक शुरुआत हो सके।

फिर अभय ने जो किया वह खुशी का दिल जीत लेने वाला पल था।

पेंट की जेब से गुलाल निकालकर अभय आगे बढ़ा।

"मे आई....!" अभय ने परमिशन मांगी।

"यस!" खुशी ने कहा।

अभय ने खुशी के गालों पर गुलाल मल दिया। खुशी ने भी अभय को अपने रंग में रंग दिया। दोनों को यह प्यार स्वीकार था। अभय और खुशी जीवन की नई पारी खेलने को एकदम तैयार थे। फ्लाईंग किस देकर खुशी अपनी स्कूटी पर घर लौट गयी। अभय उसे बायं करता हुआ अपने घर लौट गया। खुशी ने धूलंडी के दिन अभय को अपने घर निमंत्रित किया। जहां वह खुशी के घरवालों से खुशी का हाथ मांगेगा और खुशी अपने परिवार वालों से कहेगी कि वह अभय से शादी करना चाहती है।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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