तेरी गलियां-कहानी (भाग-2)

 *तेरी गलियां-कहानी (भाग-2)*

         *"लेकिन* महिमा मेरी बात तो सुनो...!" अजय फोन पर महिमा से बोला.

"देखीये...आपका और मेरा कोई मेल नहीं है. अच्छा होगा आप मुझे भूल जाये." महिमा ने फोन पर जवाब दिया.

"नहीं! मैं तुम्हें किसी किमत पर नहीं भुला सकता. मैं तुमसे प्यार करता हूं." अजय बोला.

"मर्द को सिर्फ प्यार करना आता है निभाना नहीं." महिमा के शब्दों में कड़वाहट थी।

"तुम मुझे एक मौका तो दो. मैं साबित कर दूंगा कि मुझे प्यार जताना ही नहीं निभाना भी आता है." अजय ने बोला।

"आप मेरा और अपना समय खराब रहे है." महिमा चिढ़ते हुये बोली.

"तुम मानों या न मानो महिमा! लेकिन तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करती हो जितना कि मैं!" अजय ने कहा.

"यह झूठ है. मैं आपसे कोई प्यार-व्यार नहीं करती. मैं अपने जीवन में खुश हूं और मुझे किसी कि कोई जरूरत नहीं है, समझे." महिमा ने फोन रखना चाहा.

"मगर मुझे तुम्हारी जरूरत है महिमा. और मैं तुम्हारे बिना अपने जीवन की कल्पना नहीं कर सकता. मुझे विश्वास है कि आज नहीं तो कल तुम्हें मेरे प्यार को जरूर स्वीकार करोगी." अजय बोला।

महिमा ने फोन रख दिया. आजकल उसका भी मन काम-काज में बिल्कुल नहीं लग रहा था. ये उसे क्या हो गया था? अजय की बातें उसके कानों में गुंजा करती. पिज्जा बनाते वक्त अजय सामाने खड़ा दिखाई देता. वह अजय के प्रतिबिंब को देखकर मोहित हो जाती. कई बार मंयक ने उसे झंझोड़कर जगाया. अब तो उसके हाथ से पिज्जा भी जब-तब जल जाते. ग्राहकों की नाराजगी मिलती सो अलग. ऐसा महिमा के साथ कभी नहीं हुआ. वह तो अपने काम में एक-दम निपूण थी. फिर ये लापरवाही वह कैसे कर सकती थी? अजय ने आकर उसके जीवन में भूचाल सा ला दिया था. हर तरफ उसे सिर्फ अजय ही अजय दिखाई देता.

"दीदी! अब मान भी लो न कि आप भी अजय भैया से प्यार करने लगी हो." मंयक ने मसखरी की. दोनों घर के बाहर रखें काउंटर पर पिज्जा विक्रय करने में व्यस्त थे.

"नहीं यह झूठ है. तु चूपचाप अपना काम कर." महिमा ने मयंक को डांटा।

महिमा के व्यवहार में एक अजीब सा परिवर्तन आया। स्वभाव में गुस्से की तेज-तर्रार महिमा एक दम शांत-शांत सी रहने लगी थी. बेतरतीब-सी रहने वाली महिमा अब संज-धंज के रहने लगी. सांज-ओ-श्रृंगार में उसका यौवन किसी कहर से कम नहीं लगता. लेकिन जिसके लिए वह सोलह श्रृंगार किये बैठी होती वह अजय कुछ दिनों से महिमा के यहाँ नहीं आया था. अब बैचेन होने की बारी महिमा की थी. पिछले दिनों ही अपने लिए खरीदकर लाई फैशनेबल सलवार सूट वह प्रतिदिन बदल-बदल कर पहना करती. वह अजय के सामने संज-धंज कर आना चाहती थी. मगर अजय का कहीं अता-पता नहीं था. महिमा ने हिम्मत कर अजय का मोबाइल ट्राई किया. उसका नम्बर स्वीच ऑफ रहा था. व्याकुलता में महिमा गैस पर रखें से तवे अपना हाथ जला बैठी. मयंक ने महिमा को घर जाकर आराम करने की सलाह दी. महिमा घर के अंदर चली गयी.

'ये मुझे क्या हो गया है? आखिर अजय मेरा लगता ही कौन है? मैं क्यों उसके पीछे पागल हुये जा रही हूं? जबकी मुझे अच्छी तरह से पता है कि हम दोनों नदि के उन दो किनारों की तरह है जो कभी मिल नहीं सकते. अजय एक अच्छा इंसान है और उसे जब मेरी सच्चाई पता चलेगी, तब निश्चय ही वह मुझसे दूर हो जायेगा! लेकिन इन सबके बावजूद मेरा ये बावरा मन अजय! अजय! की माला जप रहा है. आखिर क्या जादू कर दिया है उसने मुझ पर? कहीं मैं भी अजय से प्यार तो नहीं करने लगी! नहीं! ये नहीं हो सकता. मैं प्यार नहीं कर सकती. मुझे प्यार करने का कोई अधिकार नहीं है. लेकिन फिर एक अनजान इंसान के प्रति इतनी बैचेनी क्यों? दो दिनों से अजय को नहीं देखा. ऐसा लग रहा है मैंने सालों से अजय को नहीं देखा हो. मन करता है उसके घर जाऊं और उसकी काॅलर पकड़कर उससे पूंछी- क्यों आया वह मेरे हंसते-खेलते जीवन में? और आया तो प्यार का इजहार क्यों किया? न चाहते हुये भी मैं अजय से प्रेम करने लगी हूं.' महिमा टहलते हुये आईने के सामने आ पहूंची.

उसके बाल खुले थे। सीलिंग फैन की हवा में वे महिमा के चेहरे पर आ जाते। उसने अनुभव किया, शायद कोई है जो उसकी जुल्फों से खेल रहा है। अरे! अरे! यह तो अजय था. उसकी ऊंगलियां महिमा के चेहरे पर आती बालों की लटे संभाल रही थी. महिमा चौंक गयी. हैरानी में वह पलटी. वहां कोई नहीं था. 'अजय यहां कैसे आ सकता है?' महिमा ने सोचा. मगर फिर उन उंगलियों का स्पर्श ऐसा था, मानो जैसे अजय यहीं-कहीं था. उसके पास! महिमा  को अजय के होने का एहसास असीम सुख दे रहा था. वह इन पलों को आत्मीयता के साथ जी रही थी. महिमा पलंग पर लेट गयी. उसकी आंखें बंद थी. पलकें भारी हो रही थी. कुछ ही पलों में वह चैन की नींद सो गयी.

"अजय! अजय! उठीये! ऑफिस नहीं जाना आपको? देखीये सुबह के नौ बज चुके है." महिमा चिल्ला रही थी.

अजय था कि बिस्तर छोड़ने को तैयार नहीं था. उसने लपककर महिमा का हाथ पकड़ लिया. अगले ही पल महिमा अजय के ऊपर जा गिरी. अजय ने महिमा को मजबूती से बाहों में जकड़ लिया था.

"अरे! ये क्या शरारत है अजय? छोड़ो मुझे! कोई आ जायेगा!" महिमा ने अजय की बाहों में छटपटाते हुये कहा।

"कोई नहीं आयेगा डार्लिंग महिमा. सबको पता है कि मियां-बीबी के कमरे में ऐसे ही नहीं जाते." अजय बोला।

"अच्छा जी! तो अब आप क्या करेंगे?" महिमा नखरे भरे अंदाज में बोली।

"अब हम सुहाग सुबह मनायेंगे!" अजय बोला.

"ये क्या! सुहाग सुबह?" महिमा ने पूछा.

"हां! जैसे सुहागरात होती है वैसे ही सुहाग सुबह!" अजय बोला।

"ओहsssहो! अब छोड़ीये भी! आज ऑफिस नहीं जाना क्या आपको? एक तो रात भर सोने नहीं दिया और अब सुबह से फिर शुरू हो गये!" महिमा बोली.

"अरे भई! अभी हमारे सोने के दिन थोड़े ही है. यह समय तो दिन- रात बस प्यार करने के लिए है." अजय महिमा के चेहरे पर आ रही बालों की लटों को ऊंगलियों से घूमा रहा था.

महिमा को शरारत सूझी. उसने अपने गीले बालों को अजय के चेहर पर गिरा दिये. उनसे गिरती पानी की बूंदों से अजय के चेहरा भीग गया. मुंह में बालों के आ जाने से अजय ने महिमा पर अपनी पकड़ ठीली कर दी. वह हड़बड़ाहट गया. मौका पाकर महिमा उठ खड़ी हुई. अपनी इस विजय पर वह हंस रही थी. हंसती हुई महिमा को अजय भी देखकर हंस पड़ा.


क्रमश....

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