तेरी गलियां (भाग-4)

 *तेरी गलियां (कहानी) भाग-4*

       *अजय* को जय और भानु ने अवसर पाकर एक दिन कविता के विषय में पूंछ ही लिया।

"आखिर तु कविता के प्यार को स्वीकार क्यों नहीं कर लेता? क्या कमी है उसमें?" भानु बोला।

काॅलेज के गार्डन में सीमेन्ट निर्मित कुर्सी पर बैठा अजय पढ़ाई करने में वयस्त था। परिक्षा में फैल होने से उसकी बहुत बदनामी हुई थी।

"पुरा काॅलेज जानता है कि कविता तुझसे कितना प्यार करती है और तु भले ही मुंह से न कहें लेकिन मन ही मन तु भी कविता से बहुत प्यार करता है।" जय बोला।

अजय चूपचाप था। उसके हाथों में किताब थी। वह जानबूझकर अनजान बनने का स्वांग रच रहा था।

"अजय कुछ तो कह!" भानु ने उसे झंझोड़ा।

"क्या कहूं? मुझे समझ नहीं आ रहा कि तुम दोनों क्या कह रहे हो?" अजय ने कहा।

"हां, जैसे तुझे यह भी समझ नहीं आ रहा है कि यह किताब उल्टी है और पिछले आधे घंटे से तुने ऐसी ही किताब पकड़ रखी है।" जय बोला।

अजय ने हडबड़ाहट में किताब ठीक की। वह जय और भानु दोनों से नज़रे चूराने का असफल प्रयास करने लगा।

"मान क्यूं नहीं लेता कि तू भी कविता से उतना ही प्यार करता है जितना की कविता तुझसे करती है।" जय ने पुनः कहा।

अजय कुछ कहना चाहता था। उसने किताब नीचे सीमेंट निर्मित चेयर पर रख दी। वह खड़ा हो गया।

"हां! मैं भी कविता से प्रेम करता हूं। मेरा दिल चाहता है  कि वह हमेशा मेरे पास रहे।" अजय बोला।

जय और भानु प्रसन्नता से खिल उठे।

"ये हुई न बात! अब यही बात कविता को बता देना। मैंने उसे यहां बुलाया है। तुम दोनों एक हो जाओ तो सबसे ज्यादा खुशी हम दोनों को होगी।" भानु बोल उठा।

"नहीं भानु! मैं कविता से कुछ नहीं कहूंगा।" अजय बोला।

"मगर क्यूं? आज नहीं तो कल तु शादी करेगा ही, फिर कविता से क्यूँ नहीं!" जय बोला।

"जय! मेरे दोस्त! मेरी बात ध्यान से सुनो! याद है डिबेट में स्पीच देते हुये कविता ने कहा था कि युवाओं को पढ़ाई के समय सिर्फ पढ़ाई करना चाहिये। प्यार-मोहब्बत के लिए सारी उम्र पड़ी है। और मैंने भी कविता का न केवल समर्थन किया था बल्कि युवाओं को समयानुसार कर्तव्य निर्वहन पर कितना लम्बा-चौड़ा लेक्चर दिया था। ।" अजय ने कहा।

"हां! तो। उस बात से कविता से शादी न करने का क्या संबंध है।" जय ने पूछा।

"संबंध है भानु! जरा सोच! यदि मैं ही अपनी कही बात पर अमल नहीं करता हूं तो कालेज के अन्य स्टूडेंट पर मेरी उन बातों का कोई प्रभाव नहीं होगा। उल्टा वे मुझे ही कहेंगे जो खुद अपनी बात पर अमल नहीं करता, उसकी बातों पर कौन अमल करें!" अजय बोला।

जय और भानु चुप खड़े थे। पेड़ के पीछे खड़ी कविता सब कुछ सुन रही थी।

"दोस्तो! कविता एक बहुत अच्छी लड़की है और हर तरह से मेरे योग्य है। यदि वह मेरी जीवन-साथी बने तो मैं दुनिया का सबसे ज्यादा भाग्यशाली बन जाऊंगा। मगर ऐसा कर मैं अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगा।" अजय बोला।

"कविता! मैं जानता हुं तुम पेड़ के पीछे खड़ी होकर हमारी बातें सुन रही हो! प्लीज बाहर निकलकर यहां आ जाओ!" अजय ने कहा।

डरी-सहमी कविता पेड़ के पीछे से निकलकर बाहर आई। वह अजय के पास आ गयी।

"कविता! मैं तुमसे माफी चाहता हूं। मेरे लिए तुम दुनियां की सबसे सुन्दर लड़की हो, मगर चाहते हुये भी मैं तुम्हें अपना नहीं बना सकता।" अजय बोला।

"क्या मैं जान सकती हूं कि आप मुझे क्यों नहीं अपना सकते?" कविता ने पूँछा।

जय और भानु वहां से जाना चाहते थे किन्तू अजय ने उन्हें वहीं रुकने को कहा।

"कविता! यदि मुझे कुछ लोग एक आदर्श मानते है तब क्या मेरा फर्ज नहीं बनता कि मैं उनकी कसौटी पर खरा उतरू?" अजय ने पूँछा।

"मैं समझी नहीं। साफ-साफ कहिये आप कहना क्या चाहते है?" कविता ने झुंझलाते हुये पूछा।

"कविता! एक दिन फर्ट ईयर के कुछ छात्रों की बातें मैंने सुनी। उनमें से विजय नाम का लड़का कह रहा था कि अजय राजपूत काॅलेज का सबसे अच्छा छात्र है। जो कहता है वह करता है। उसकी पढ़ाई और अन्य सभी गतिविधियां तारिफ के काबिल है। मैं अजय राजपूत के पदचिन्हों पर चलते हुये काॅलेज का सबसे अच्छा छात्र बनने की कोशिश करूंगा।" अजय बोला।

जय और भानु एक दूसरे की शक्ल देख रहे थे। कविता की जिज्ञासा अभी भी शांत नहीं हुई थी।

"कविता से प्रेम नहीं करने का निर्णय मैं उस विजय की बात को आधार बनाकर नहीं कह रहा। मुझे यह सब पुर्व से पता था। बस मुझे यह नहीं पता था कि मेरा आचरण लोगों पर इतना प्रभाव छोड़ेगा है। मैंने संकल्प लिया है की काॅलेज में पढ़ाई और सिर्फ पढ़ाई करूंगा।" अजय बोला।

"अरे! तो काॅलेज के बाद कविता को स्वीकार कर लेना। तब तक वह तुम्हारा इंतज़ार कर लेगी!" जय बोला।

"हां! यह सही है! क्यों कविता! ठीक है न!" भानु बोला।

"नहीं! मैं तब तक अजय का इंतजार नहीं कर सकती। माॅम-डैड मेरी शादी के लिए लड़का देख रहे है और मैं ज्यादा दिनों तक उन्हें रोक नहीं सकती।" कविता का यह कथन इस बहस को समाप्त करने के लिए पर्याप्त था। अजय के चेहरे पर संतोष के भाव थे। उसे यकिन हो गया था कि वह जो कहना चाहता था कविता उसे अच्छे से समझ गयी थी।

"अजय!" कविता ने पूंछा।

क्लास का वक्त हो चुका था। जय और भानु जा चूके थे। अजय भी कक्षा में जाने की तैयारी में था। तब ही कविथा ने उसे पुकारा।

"हूंअं!" अजय ने प्रतिउत्तर दिया। वह काॅलेज बेग पीठ पर लाद चूका था।

"एक बार कहा तो होता! मैं तुमसे दूर चली जाती।" कविता बोली। उसके चेहरे पर अजय की अस्वीकृति से उभरी निराशा साफ देखी जा सकती थी।

"कविता! आई एम साॅरी! मैंने तुम्हारा दिल दुःखाया है मगर मुझे खुशी है कि मैंने जिससे प्यार किया है वह दुनिया की सबसे समझदार लड़की है।" अजय बोला।

"बातें मत बनाओं अजय! इतनी दूर आकर पीछे लौट जाना कितना दुःखदायी होता है तुम क्या जानो?" कविता के स्वर मे नाराज़गी झलक आई थी।

"कविता! सच्चे का प्रेम अर्थ केवल एक-दूसरे को पाना ही नहीं होता। अपितु अपने प्रिय की अभिलाषा का सम्मान करते हुये दूर रहकर भी उसे अपने दिल में रखते हुये मन ही मन प्रेम करना वास्तविक प्रेम है। इस जन्म में भले ही हम न मिलें किन्तु ईश्वर से मेरी प्रार्थना है कि अगले जन्म में तुम ही मेरी जीवन-साथी बनो।" अजय बोला।

कविता की आखें भर आई थी। वह सुबक रही थी। अजय स्वयं भावुक हो चूका था। उसने कविता से दूरी बनाने का कह तो दिया था किन्तु कविता से दूर रह पाना उसके लिए भी आसान नहीं था।

"कविता! तुम्हें पता है मुझे शुरू से ही तुम्हारी जैसी लड़की चाहिये थी। जो प्राकृतिक सौन्दर्य को मानती हो। मैंने तुम्हें कभी लिपस्टिक लगाते नहीं देखा और न ही तुम आधुनिक फैशन पर आश्रित हो! युथ फेस्टिवल में जब तुम साड़ी पहनकर आई, बस! मेरे हृदय में बस गयी। ऐसा लगा जैसे तुमने मेरे लिए ही वह साड़ी पहनी थी। कसम से मेरी आखें तुमसे दूर ही नहीं जा पा रही थी। तुम्हारी सादगी मुझे बहुत भाती है, मन करता है तुम्हें बस देखता ही रहूं।" अजय ने आगे कहा। वह कविता के सम्मुख खड़ा हो गया। कविता अश्रु बहाते हुये अजय के गले जा लगी।

"मै कभी सोच भी नहीं सकता था कि तुम मुझे इतना प्यार करोगी। सच मानो! तुम्हें न अपनाकर मैं जीवन की सबसे बड़ी भूल करने जा रहा हूं।" अजय बोला।

"नहीं अजय! आप कभी कोई भूल नहीं कर सकते। आपने जो निर्णय लिया है वह सोच-समझकर ही लिया होगा। मैं हमेशा आपके साथ हूं।" कविता बोली।

अजय ने कविता को हिम्मत बंधाई। दोनों कुछ पलों तक एक-दूसरे को देखते रहे है। तदपश्चात दोनों अपनी-अपनी कक्षा में लौट गये।

उस दिन के बाद कविता और अजय कभी नहीं मिले। 'अब तक कविता की शादी हो चूकी होगी?' बेड रेस्ट कर रहा अजय सोच रहा था।

'काश! कविता को एक बार देख पाता।' अजय के मन में विचार आया।

वह उठकर बैठ गया। पैर लम्बे कर तकिये को पीठ के पीठे खड़ा कर वह बैठ गया। आसपास के कोविड मरीज आराम कर रहे थे। हाॅस्पीटल के बाहर से रोने-धोने की आवाज़े आ रहे थी। यह मृत मरीज के परिजनों का करूण रुदन था।

अजय ने अपनी आंखें मली। पुनः आखें खोलने पर उसने सामने जो देखा वह उसे हैरत में डाल गया। यह कविता थी जो धीरे-धीरे उसके नजदीक आ रही थी। कविता को देख वह आश्चर्य में डूब गया था। कोविड वार्ड में उसे अंदर किसने आने दिया? अजय सोच रहा था।

नर्स ने अजय से कुछ दूरी पर कविता को रोक दिया।

"कविता! तुम?" अजय ने पूछा।

"हां! मैं! जैसे ही मुझे आपके विषय में पता चला! मुझसे रहा नहीं गया! और मैं यहां आपसे मिलने चली आई!" कविता ने कहा। 

कविता बिल्कुल नहीं बदली थी। उसका निडर स्वाभाव और बड़ी बेबाकी से अपनी बात कहना कविता की विशेषता थी। कोविड वार्ड मे सुरक्षा गार्ड से लड़-झगड़कर वह दाखिल हुई थी। अजय प्रसन्न था। उसने कविता को बताया कि अभी कुछ पलों पूर्व वह कविता से ही मिलने का सोच रहा था। कविता ने यहां आकर उसकी ख्वाहिश पूरी कर दी थी।

"ये महिमा कौन है अजय!" कविता ने पूछा।

"तुम महिमा के विषय में कैसे जानती हो?" अजय ने हैरानी से पुछा।

"अब तक आप दोनों की प्रेम कहानी पुरे हॉस्पीटल को पता चल चूकी है। सुना है आप नींद में भी महिमा का नाम लेते है?" कविता ने पूछा।

"नहीं तो!" अजय सकपका गया। उसकी चोरी पकड़ी गयी थी। वह स्वयं नर्स और अन्य मेडिकल स्टाफ को महिमा के बारे में कितनी ही बार बता चूका था। डाॅक्टर्स भी महिमा से मिलना चाहते थे। जिस लड़की ने अजय को दीवाना बना दिया, उसे मिलने की ख्वाहिश सभी को थी।

महिमा हाॅस्पीटल के बाहर आ चूकी थी। वह भी गार्ड से बहस कर रही थी। उसे अजय से मिलना था। "महिमा जय से मिलने आई है!" वार्ड ब्वाॅय जोर से चिल्लाया। यह सुनकर जैसे समूचे हाॅस्पीटल की सांसे रुक गयी हो। जो जहां था वही जड़ हो गया। हर कोई महिमा को पलभर देखना चाहता था। इधर अजय और कविता के कानों में महिमा के आगमन की सुचना सुनाई दी। अन्य मरीज भी उत्साहित थे। जैसे वहां कोई सेलीब्रिटी आ गयीं हो।


क्रमशः......


*आग्रह- कृपया शेयर करें। अगला भाग जल्दी ही आयेगा।*

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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