कुंवारी-लघुकथा

 *कुंवारी-लघुकथा*

         *एक* पैर से लचक कर चलती खुबसूरत वृंदा को देखकर हर कोई ईश्वर की नाइंसाफ़ी पर उसे कोसना नहीं भूलता। वर्षों से कैलिपर को ही अपना साथी मान चूकी शिक्षिका वृंदा चालिस के पार जा चुकी थी। रिश्तेदार तो कहने से नहीं चूकते थे कि भाईयों ने सरकारी तनख़्वाह के लोभ में बहन को ब्याहा नहीं। वृंदा के पास अब भी प्रस्ताव आते। किन्तु युवक या तो विवाहित होते या उससे उम्र में बहुत छोटे। वृंदा इतना तो जानती थी कि ये युवक उससे शादी तो नहीं करने वाले। टाइम पास करने वाला प्यार उसे नहीं चाहिए था। उम्र के साथ बिमारियों ने वृंदा का पता पूंछ लिया। शुगर बड़ी हुई थी और ब्लड प्रेशर बढ़ना तो जैसे उसके लिए आम बात हो गयी। दवाई की पूरी पोटली वह अपने बेग में रखा करती। पिछले वर्ष ही पेट दर्द की कराहना से तंग आकर बच्चेदानी का ऑपरेशन करवाया था। यहाँ भी अपनों ने उसे बहुत रोका। 'बच्चेदानी के बिना कोई पुरूष उसे कैसे स्वीकारेगा? संतान उत्पति विवाह की प्रथम आवश्यकता होती है!' रिश्तेदारों ने बहुत समझाया किन्तु वृंदा नहीं मानी। भाईयों ने इस बात पर वृंदा का साथ दिया। पोलियो के कारण उसकी खुबसूरती नजरअंदाज कर दी जाती। जब विवाह के प्रस्ताव आने बंद हुये तो वृंदा ने स्वयं वर तलाशना जारी रखा। स्कूल से बस में अपडाऊन करते हुये किसी ने हरिद्वार जाने की सलाह दी। वहां पोलियो में राहत मिलने की पुरी संभावना थी। वृंदा के भाई नहीं माने। वे अपने-अपने काम में व्यस्त थे। कुछ साल गुजरने पर वृंदा की मोबिलिटी कुछ कम होने लगी। वह अकेले चलने-फिरने में बहुत समय लेती। भाईयों ने दया दिखाई और हरिद्वार चल पड़े। यहां आकर वृंदा आश्रम में एडमिट हुई। उसे संभालने के लिए  आश्रम के शिष्य होते। दवाईयां जो वह घर पर ही भूल आई थी, उनकी कमी के कारण वृंदा की हालत बिगड़ने लगी। कुछ दिन बमुश्किल निकले। जब वृंदा से सहा नहीं गया तब उसने हाॅस्पीटल में एडमिट होने की जिद की। उसके भाई वृंदा को हाॅस्पीटल लेकर भागे। स्टेचर से कैलिपर नीचे क्या गीरा! अनुमान हो चला! वृंदा जा चुकी थी। वर्षों पुराने दर्द और शरीर से वृंदा को छुटकारा मिल चुका था। वृंदा के चेहरे पर अब भी हल्की मुस्कान थी। जो कहना चाह रही थी की इस बार न सही अगले जन्म में उसकी शादी जरूर होगी, किसी योग्य वर के साथ।


समाप्त

-------------------


प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित ©️®️

----------------------

जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड चौराहा

मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर-

8770870151

7756842633

Myshivhare2018@gmail.com

Jshivhare2015@gmail.com


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)