पढे-लिखे लोग (लघुकथा)
*पढे-लिखे लोग (लघुकथा)*
*किराना* दुकान से फोन था। व्हाइटसप पर भेजी किराना सामान की सूची अनुसार दुकानदार ने सामान पैक कर रख दिया था। कमल को सामान घर ले जाने के लिए सूचना थी। इधर शहर में लाॅकडाऊन की सख्ती बढ़ा दी गयी। दूध और किराना सबकुछ बंद था। दुकानदार ने कमल को छिपते-छिपाते दुकान का नया रास्ता बता दिया। जिससे वह पुलिस से बचते हुये दुकान तक पहूंच सकता था। कमल दुकान पहूंचने की तैयारी करने लगा। थैला हाथ में पकड़ पत्नी की कुछ पुरानी मेडीकल रिपोर्टस भी अपने साथ रख ली। यदि पुलिस ने बाहर रोक लिया तो इन्हें दिखाकर वह बच सकता था। उसने शांति को भी साथ चलने के लिए उसने मना लिया। टू व्हीलर पर यदि महिला साथ बैठी हो तब पुलिस से बचने की अधिक संभावना रहती है। यही सोचकर शांति कमल के साथ चलने के लिए तैयार हो गयी। दोनों बच्चें रटन मार पढ़ाई में व्यस्त थे। उन्हें 'अभी आते है' बोलकर कमल घर से बाहर निकलने ही वाला था कि बड़ी बेटी तनु ने रोका।
"पापा! कोई अनपढ़ व्यक्ति ऐसा करे तो समझ में आता है लेकिन हम तो पढ़-लिखे लोग है। पुलिस-प्रशासन जान पर खेल कर हमें बचाने में जी-जान से जुटा है और आप झूठ के सहारे उनकी आंखों में धूल झौंकने जा रहे है! आखिर वे यह सब हमें संक्रमण से बचाने और हमारे सुखद भविष्य के लिए ही तो कर रहे है।" तनु की बातें कमल का हृदय भेद गयी। शांति भी शर्मिंदा थी। उन्हें एहसास हुआ कि वे लोग गल़त कर रहे थे। कमल ने अपनी ग़लती सुधारते हुये दुकानदार को किराना सामान की होम डिलेवरी करने हेतु मना लिया। परिवार मुखियां के इस कदम से घर में सभी प्रसन्नता से खिल उठे।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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