क़त्ल की रात- हाॅरर स्टोरी
क़त्ल की रात- हाॅरर स्टोरी
*राकेश* पर प्राणघातक हमला पंकज के भूत ने किया था, ये सोचकर ही रणदीप को हंसी निकल पड़ी।
"अबे! पंकज तो मर चूका है और मरे लोग जिंदा लोगों पर हमला नहीं किया करते।" रणदीप बोला। उसके हाथ में शराब से अधभरी गिलास थी। संजय और अनुज भी साथ ही बैठे थे। साड़ी पहने कोमल हाथों में पकोड़े की ट्रे लेकर हाॅल में दाखिल हुई। उहने वह ट्रे रणदीप के सामने मेज पर रख दी। कोमल के चेहरे पर उदासी साफ देखी जा सकती थी।
"तुम्हें पता है कोमल! ये राकेश कह रहा है कि उसने पंकज के भूत को देखा और उसने इस पर जानलेवा हमला किया है!" रणदीप ने कोमल हे कहा।
"क्या कहा? मगर पंकज तो अब इस दुनियां में रहा नहीं!" कोमल ने कहा।
"मैं सच कह रहा हूं कोमल भाभी। वह हूंबहूं पंकज की ही तरह दिखाई देता था। उसने मेरा गला पकड़ रखा था। माता रानी ने आज मुझे बचा लिया वर्ना आज मैं तुम लोगों के सामने जिंदा नहीं बचता।" राकेश के चेहरे पर डर के भाव थे।
"मैं न कहती थी रणदीप! हम लोगों ने पंकज के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया था। राकेश मरकर अब भूत बन चूका है। वह अपनी मौत का बदला हमसे जरूर लेगा!" कोमल ने डरते हुये कहा।
"कोमल भाभी आपको डरने की कोई जरूरत नहीं है। जिसका रणदीप जैसा बहादूर पति हो उसे डरने की क्या जरूरत।" अनुज बीच में बोल पड़ा।
"और वैसे भी भूत-वूत कुछ नहीं होता। सब बे-फिजूल की बातें है।" संजय बोला।
रणदीप पर शराब का नशा छा रहा था। वह अपनी तारिफ सुनकर गदगद था।
यकायक बादल गरजने लगे। बिजली चमकने के साथ ही बारिश शुरू हो गयी।
"इस मौसम में बारिश?" कोमल बोली।
"मौसम का तो कुछ भी नहीं कह सकते भाभी! कब कौन सा रूप धारण कर ले।" संजय बोला।
अनुज ने शराब का पैक बनाकर डरे हुये राकेश के हाथों में थमा दिया। राकेश एक सांस में ही उसे पी गया। दूसरा पैक बनाने के लिए उसने गिलास मेज पर रख दी। अनुज ने पुनः सभी के लिए शराब के पैक बनाने शुरू कर दिये।
इतने में लाइट चली गयी। हाॅल में अंधेरा व्याप्त हो गया। खिड़कीयों से आती स्ट्रीट पोल की मध्यम रोशनी से थोड़ा-बहुत दिखाई दे रहा था। कोमल ड्राज़ में से मोमबत्ती ढूंढ लाई। उसने मोमबत्ती सुलजाई ही थी कि उसकी चीख निकल पड़ी। मोमबत्ती की रोशनी से पंकज का चेहरा नहा रहा था। पंकज को सामने खड़ा देख वह डर गयी। राकेश और संजय ने मोबाइल का टार्च ऑन किया।
"क्या हुआ भाभी! आप चीखी क्यो?" संजय ने पूछा। वह दौड़कर कोमल के पास आ गया था।
"वोsssवोsss पंकज!" कोमल हकलाते हुये बोली।
"पंकज! कहां है पंकज?" अनुज ने पूछा। वह भी कोमल के पास आ चूका था।
"यही थाsss! वहां!" कोमल ने सहमते हुये कहा।
रणदीप उठा वह कोमल के पास आ गया। कोमल दौड़कर उसके लिपट गयी।
मोमबत्ती जलाकर संजय ने मेज़ पर रख दी। खिलड़ी से हल्की ठंडी-ठंडी हवा आ रही थी। गर्मी के मौसम के बीच अचानक जोरदार बारिश ने मौसम सुहाना कर दिया था। रात घिर आई। रणदीप ने अपने दोस्तों से कहा कि अब ले लोग अपने-अपने घर लौट जाये। अनुज ने संजय को आंखों ही आंखों में इशारा किया। कोमल अनुज की शैतानी समझ गयी।
"हाथ छोड़ो मेरा। वर्ना मैं तुम्हारे भैया को बता दूंगी।" कोमल ने अनुज से कहा। वह किचन में थी। रात के खाने के बाद तीनों दोस्त विदा होने वाले थे। अनुज कोमल पर फिदा था। राकेश और संजय, रणदीप के साथ डबल गेम खेल रहे थे। पहले उन्होंने पंकज को रास्ते से हटाने में रणदीप की मदद की और अब नशेड़ी रणदीप को शराब के नशे में डुबोकर कोमल को पाने की कोशिश में लगे थे। कोमल ने रणदीप को कितनी ही बार समझाया कि वह अपने आवारा दोस्तों को घर न बुलाया करे किन्तु रणदीप ने कोमल की बात कभी नहीं मानी। इसका एक और कारण यह था कि अनुज, संजय और राकेश उसके भेदी थे। वे जानते थे कि उन्होंने पकंज को जान से मारकर कहाँ दफनाया था। यदि रणदीप उनसे बुराई कर लेता है तब हो सकता था कि उसके दोस्त पुलिस के सामने अपना मुंह खोल दे! इसी वजह से रणदीप अपने स्वर्गवासी पिता की दौलत अपने शराबी दोस्तो में लुटा रहा था।
कोमल को अनुज जबरन छेड़ रहा था। कभी उसकी कमर पर हाथ लगाता तो कभी उसे अपनी बाहों में भर लेता। कोमल भरसक विरोध करते हुये भी असहाय थी। यकायक अनुज के हाथ को किसी अदृश्य शक्ति ने पकड़ लिया। वह सकपका गया। इससे पहले की वह संभल पाता, अदृश्य शक्ति ने उसे हवा में उछाल दिया। किचन के दरवाजे से होता हुआ अनुज हाॅल में आ गिरा। उसके मूंह से खून बह रहा था।
"तुम सब मरोगे! मेरे हाथ! आईन्दा कोमल को परेशान किया तो तुम लोगों को ऐसी मौत मारुंगा कि सात जन्मों तक पृथ्वी पर जन्म नहीं लोगे!" यह अदृश्य शक्ति की आवाज़ थी। यह आवाज़ जानी पहचानी थी।
"कौन हो तुम? राकेश ने पूछा।
कोई जवाब नहीं आया।
रणदीप बूरी तरह नशे में था। वहां क्या हो रहा था उसे पता नहीं था? अनुज ने संजय को वहां से लौटने का इशारा किया। राकेश भी साथ हो लिया।
तीनों कार में बैठ कर अपने-अपने घर को चल दिये। कोमल ने अपने पति रणदीप को सोफे पर ही सुला दिया। अब उसे यकिन हो चला था कि यह पंकज ही है। जो मरने के बाद भी उसकी रक्षा कर रहा है। मगर उसका डर अब भी कम नहीं हुआ था।
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युवा श़ायर पंकज दिल ही दिल में कोमल से प्यार करने लगा था। जब से कोमल उसकी जिन्दगी में आई थी उसकी श़ायरी में एक गज़ब का रोमांस देखने को मिलने लगा था। सोशल मीडिया पर लोग पंकज की श़ायरी खूब शेयर करते। महफिलों में उसकी गज़लें गाकर गायक वाह वाही लुटा करते थे। देखते ही देखते पंकज युवा दिलों की धड़कन बन चूका था। और यह सब हुआ था कोमल के कारण। कोमल स्वयं पंकज की श़ायरी की दीवानी थी। उसने पंकज द्वारा लिखित शेरो-श़ायरी की तीनों किताब पढ़ डाली थी। वह जानती थी कि पंकज उसे दिल से बहूत चाहता है। मगर कोमल ने कभी खुलखर उसका प्यार स्वीकार नहीं किया। पकंज जब भी उसे आई लव यू कहता। कोमल कोई न कोई बहाना बनाकर बातचीत का विषय बदल देती। उस दिन पंकज की श़ायरी प्रस्तुतिकरण का एक विशेष प्रोग्राम रखा गया था। पांच सितारा होटल का हाॅल दर्शकों से खचाखच भर चूका था। युवा लोग अपने प्रिय श़ायर पंकज को सुनने के लिए बड़ी संख्या में आये हुये थे। कोमल भी दर्शकों के बीच बैठी थी। पकंज स्टेज पर अन्य कवि-श़ायरों के साथ बैठा था। वह और कोमल आंखों ही आंखों में बातें कर रहे थे। कोमल पर फिदा उसका पुर्व आशिक रणदीप भी वहीं था। रणदीप और कोमल का पिछले साल ही ब्रेकअप हुआ था। रणदीप चाहता था कि कोमल उसके साथ शादी कर ले। मगर कोमल अपने पिता के व्यवसाय पर आश्रित रणदीप से शादी करने में ज्यादा इच्छुक नहीं थी। पंकज के जीवन में आते ही कोमल ने रणदीप से किनारा कर लिया। रणदीप मन ही मन पंकज से प्रतिशोध लेने को आतुर था। वह अवसर की तलाश में था। उसके दोस्त अनुज, संजय और राकेश इस काम में रणदीप का साथ दे रहे थे। रणदीप ने कवि-श़ायरों को परोसे जाने वाली चाय में से पंकज को दी जाने वाली चाय में नशे की दवाई चूपके से मिला दी। एक-एक कर कवि मंच पर रचना पाठ करने आते रहे। पंकज का नाम आते ही तालियों की गड़गड़ाहट से समूचा हाॅल गुंजायमान हो उठा। पंकज ने सामने बैठी कोमल को एक बार फिर देखा। कोमल उसे थमसअप का साइन बता रही थी। पंकज मुस्कुरा दिया। कोमल भी मुस्कुरा रही थी। पंकज जैसे ही कुर्सी से उठा वह लड़खड़ा गया। नशे की दवाई ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया था। पंकज लड़खड़ाते कदमों से माइक की तरफ बढ़ा। उसके पैर पंकज का साथ नहीं दे रहे थे। श्रौताओं ने चूप्पी साथ ली। मंच पर बैठे कवि-श़ायर भी पंकज की यह दशा पचा नहीं पा रहे थे। "अरे शराब पी रखी है क्या?" श्रौताओं में से किसी ने कहा। पुरा हाॅल हंस पड़ा। पंकज पसीना-पसीना हो गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि ये उसके साथ क्या हो रहा है? उसने माइक पकड़ा ही था कि पकंज को जोरदार कंरट लगा। वह धड़ाम से नीचे गिर पड़ा। पकंज अपने होशोहवाश खो चूका था। जब उसे होश आया तब वह कार में था। आधी रात का समय हो रहा था। पंकज कार के पीछे बैठा था। कार कोमल डॉइव कर रही थी। लौटते समय कार सुनसान सड़क से गुजर रही थी। झिगूंर (कीड़े) की आवाज़ वातावरण मे डर घोलने के लिए पर्याप्त थी।
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"मगर मेरी बात तो सुनो!" पकंज कह रहा था। वह कोमल को समझाना चाहता था। मगर कोमल थी की समझने को तैयार ही न थी।
"क्या सुनुं मैं! आज तुमने मेरी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। मेरे दोस्तो के सामाने तुम्हारी ऐसी हालत देखकर मुझे कितना बुरा लगा।" कोमल गुस्से में थी।
कार अपनी गति से दौड़ रही थी। कोमल, पंकज के स्टेज पर प्रदर्शन से ना-खुश थी।
"मेरा यकिन करो कोमल! किसी ने चाय में नशे की दवाई दवाई मिला दी थी उसी कारण मैं कुछ बहक गया था। और माइक में भी करंट दौड़ रहा था।" पंकज संभलते हुए बोला। उसका सिर अब भी भारी था। वह कोमल को मनाने की पुरी कोशिश कर रहा था। यकायक कार हाइवे पर जाकर बंद हो गयी। कोमल ने नीचे उतर कर देखा। पंकज भी नीचे उतर चूका था। दोनों मिलकर कार चेक करने लगे। इतने में अन्य एक कार वहां आकर रुकी।
"क्या हुआ कोमल!" कार के ड्राइवर रणदीप ने पूछा।
"पता नहीं! चलते-चलते अचानकल कार बंद हो गयी।" कोमल ने कहा।
संजय, अनुज और राकेश कार के पास आ गये। रणदीप भी आ पहूंचा। वे कार चेक करने का ढोंग करने लगे। संजय ने रणदीप के कहने पर चुपके से कार के नीचे जाकर पेट्रोल पाइप में छेद कर दिया था ताकि कार हाइवे पर पहुंचकर पेट्रोल खत्म हो जाने पर स्वतः ही बंद हो जाये। अनुज ने ही पंकज की बारी आने पर माइक स्टैण्ड पर कंरट दौड़ा दिया था। यह यणदीप और उसके दोस्तो की सोची समझी साजिश थी।
कोमल रणदीप की कार में जा बैठी। रणदीप ने उसे समझा बुझाकर अपनी कार में घर छोड़ने के लिए मना लिया था। पंकज भी कोमल के पास बैठ गया। सभी छः लोग रणदीप की कार में संवार हो चूके थे। कार हवा से बातें करते हुये सुनसान सड़क पर दौड़ने लगी। थोड़ी दूर जाने पर जब कार ने गंतव्य का रास्ता बदला तो पंकज ने आपत्ति ली।
"अरे! रणदीप ये कहां ले जा रहा है तु हमें?" पंकज ने पूछा।
"चूपचाप बैठा रह! वर्ना तेरा खेल यही खत्म कर दूंगा।" रणदीप गुस्से में आ चूका था।
"ये किस तरह से बात कर रहे हो तुम पंकज से!" कोमल नाराज हो उठी।
"मैंने कहा न! चूपचाप बैठो। जल्दी तुम दोनों को सब पता चल जायेगा।" रणदीप पुनः बोला।
"नहीं! अभी बताओ! तह सब क्या हो रहा है? वर्ना हम आगे नहीं जायेंग। कार रोको! रोको कार!" पंकज ने तैश में आकर कहा।
पंकज के बगल में बैठे संजय को ड्राइवर रणदीप ने कार के बेक कांच में देखकर ईशारा किया। संजन ने अपना हाथ कार की सीट के नीचे घूसाया। उसके हाथ ने लोहे राॅड ढूंढ निकाली। उसने राॅड का प्रहार पंकज के सिर पर दे मारा। पंकज दर्द से कराह उठा। उसने अपने लात से संजय को जोरदार धक्का दिया। फलतः चलती काल में से संजर दरवाजा तोड़ता हुआ नीचे जा गिरा। कोमल को उसके बगल में बैठा अनुज मजबूती से पकड़े हुये था। पंकज ने घायल अवस्था में भी अगला वार अनुज पर किया। वह भी कार से नीचे जा गिरा। रणदीप ने कार रोक दी। कोमल और पंकज कार से स्फूर्ति मे उतरे और जंगल की ओर भागने में सफल हो गये। मोबाइल टार्च की रोशनी में रणदीप और उसके दोनों दोस्त कोमल और पंकज को ढूंढ रहे थे।
"पकंज को ढूंढों सालो! किसी किमत पर वह बचना नहीं चाहिये। कहीं वह पुलिस के पास जा पहूंचा तो हम चारों जेल की चक्की पीसेंगगे।" रणदीप दहाड़ा।
रात गहराती जा रही थी। पंकज के सिर से खुन बह रहा था। कोमल को जंगली जानवरों का डर सता रहा था। अधिक देर तक वे जंगल में छिपे भी नहीं रह सकते थे। क्योँकी पंकज को सिर पर चोट लगी थी। जिसके कारण उसे मुर्छा आने लगी थी।
कोमल ने तय किया कि वह जल्दी-जल्दी से पंकज को हाॅस्पीटल ले जाने की कोशिश करेगी। वह बचते-बचाते हाईवे की सड़क पर चलने लगी। पंकज का भार उसके कांधे पर था। वह राह चलते वाहनों से लिफ्ट मांगती। मगर कोई वाहन वाला इतनी रात में रूकने को तैयार नहीं था। फिर वही हुआ जिसका कोमल और पंकज को डर था। रणदीप और उसके दोस्तों ने पंकज और कोमल को ढूंढ निकाला।
"मुझे मत मारो रणदीप! तुम जैसा कहोगे मैं वैसा ही करूंगी।" कोमल बोली।
रणदीप, पंकज पर बूरी तरह टूट पड़ा था। राकेश, संजय और अनुज भी पकंज की धुलाई करने में व्यस्त थे। लोहे की राॅड की मार से पंकज अधमरा हो चुका था। रणदीप उसकी जीवन लीला समाप्त करना चाहता था ताकि पंकज पुलिस के पास जाकर उसकी शिकायत न कर सके। कोमल के आगे वह पिघल चुका था। उसने कोमल को इस शर्त पर छोड़ दिया कि उसे रणदीप से शादी करनी होगी। मौत के डर से कोमल ने रणदीप की यह शर्त स्वीकार कर ली। वह मजबूरन पंकज को वह अपनी आंखों के सामने तड़पता हुआ देख रही थी। पंकज, कोमल की ही तरफ देख रहा था। वह पृथ्वी पर बेसुध गिरा पड़ा। कोमल के चेहरा अब भी उसकी आखों में था जो धीरे-धीरे धुमिल होता चला गया।
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राकेश ने बीयर की बोतल खोल दी। तीनों दोस्त चलती कार में ही पुनः शराब पीने लगे। रात गहरा चुकी थी। सायं-सायं की ध्वनि से प्रतित होता की एक के बाद एक कर राकेश की कार को अन्य वाहन पीछे छोड़ रहे थे।
"अबे! बैलगाड़ी चला रहा है क्या!" संजय ने राकेश को ताना मारा।
अनुज हंसने लगा।
राकेश ने कार की गति बढ़ा दी। यकायक राकेश को कार के बेक कांच किसी की छवि दिखाई दी। वह चौंक गया। यह पंकज का भूत था जो कार के साथ-साथ स्वतः ही चल रहा था। मानों पंकज के पैरों में भी पहिये लगे हो।
राकेश की आवाज़ नहीं निकल रही थी। वह अनुज को यह बताना चाह रहा था। पंकज हंस रहा था। उसका सिर चारों दिशाओं में घुम जाता। कभी वह कार हे आगे हो जाता तो कभी वो कार की बोनट पर बैठ जाता। पंकज अब कार के पीछे आकर संजय की बगल में बैठ गया। संजय को नशा चढ़ चुका था।
"कौन पंकज! अबे जिन्दा कैसे हो गया?" संजय ने कहा।
राकेश और अनुज ने पीछे पलटकर देखा। उन दोनों के होश उड़ गये। पंकज उनकी कार में संजय की बगल में बैठा था। संजय को जब इल्म हुआ कि यह पंकज की आत्मा है, वह भी पसीना-पसीना हो गया। कार का संतुलन बिगड़ने को था। राकेश डर के मारे कांप रहा था।
"हां! मैं पंकज हूं। जिसे तुम लोगों ने बड़ी बे-रहमी से मार दिया था। अब तुम लोगों का भी वहीं अंजाम होगा जो तुमने मेरे हाथ किया था।" पंकज की आत्मा बोल रही थी। राकेश ने कार में ब्रेक लगाने चाहें किन्तु ब्रैक नहीं लग रहे थे। अपितु कार की स्पीड और तेज हो गयी। कार की गति बड़ रही थी। अनुज, संजय और राकेश थर्र-थर्थ कांप रहे थे। उनके जीवन पर बहुत बड़ा संकट आ पहूंचा था। कार वहां आकर स्वतः रुक गयी जहां चारों दोस्तों ने मिलकर पकंज की हत्या की थी। राकेश ने कार का दरवाजा खोला, वह भागना चाहता था। मगर इससे पुर्व ही पंकज ने उसे हवा में उछाल दिया। वह समीप के पेड़ से जा टकराया। अनुज अन्य दिशा में भागना चाहता था किन्तु पेड़ की लम्बी बैल ने उसे अपनी मजबूत पकड़ में बांध लिया। यह पंकज ही अपनी जादूई शक्ति से कर रहा था। संजय की आंखों सामने पंकज का भयानक चेहरा आ गया। यह बिना धड़ के था। संजय की चीख निकल पड़ी।
"बचाओ ! बचाओ ! कोई हमें बचाओ!"
तीनों मन्नतें करते रहे। मगर पकंज का हृदय नहीं पसीजा। वह आकाश में उड़ने लगा। तीनों दोस्त पेड़ की बैल से बाधें जा चूके थे। पकंज जोरदार अट्टाहस के साथ हंस रहा था। वह नीचे आया। कार में से लोहे की राॅड निकालकर वह तीनों बंदियों के पास पहूंचा। एक-एक कर वह तीनों पर वार करने लगा। तीनों चीखने-चिल्लाने लगे। मगर उनकी चीख सनने वाला वहां कोई नहीं था। वे तड़पते रहे। पंकज उन्हें मारता रहा। कुछ ही देर में पकंज द्वारा प्राणघातक हमले के परिणाम स्वरुप तीनों दोस्तों के प्राण पखेरू उड़ गये। पकंज भी वहा से अंतर्र्ध्यान हो गया।
अखबार में अनुज, संजय और राकेश की मौत की खबर पढ़कर रणदीप के होश उड़ गये। उसे ज्ञात था कि अब उसकी बारी है। पंकज जल्द उसे भी मार डालेगा। वह अब एक भूत बन चूका था तथा अपनी हत्या का प्रतिशोध लेने को आतुर था। कोमल ने रणदीप को बहुत समझाया कि उन्होंने जैसा किया है उसका फल आज नहीं तो कल उन्हें मिलना ही था। अतएव डरने की जरूरत नहीं। जो होना है वह होकर रहेगा।
बहुत समझाने बुझाने के बाद रणदीप सोने के लिए तैयार हुया था। वह कोमल से लिपटकर सो रहा था। रात के गहरे सन्नाटे के बीच अचानक कमरे की खिड़की खुलने की आवाज़ से कोमल की आखं खुल गयी। रणदीप को एक ओर सुलाकर वह खिड़की बंद करने के लिए उठी। उसके पैर धीरे-धीरे बैडरूम की खिड़की की तरफ बढ़ रहे थे। उसने अपने दोनों हाथ खिड़की के पलड़े पकड़ने के बाहर की ओर किये। इससे पहले की वह खड़की के दोनों पलड़े अपनी ओर खींच पाती, एक जोड़ी अदृश्य हाथों ने कोमल के दोनों हाथ पकड़ लिये। उसकी चीख निकल गयी। वह बूरी तरह डर गयी थी। रणदीप जाग गया। वह दौड़ते हुये कोमल के पास आया।
"क्या हुआ कोमल?" रणदीप ने पूछा।
"वोssss! वो हाथ!" कोमल के मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। वे हाथ स्वतः गायब हो चूके थे।
"क्या पंकज यहां आया था?" रणदीप ने पूछा।
"हां! रणदीप शायद!" कोमल बोली।
रणदीप सोफे पर जा बैठा। मौत का डर उसके चेहरे पर उभर आया था। उसने तुरंत अपना मोबाइल निकाला। वह एक तांत्रिक जानकार को फोन मिलाने लगा।
"बाबा! आब तुरंत आ जाईये। मेरी बीवी और मेरी जान खतरे में है।" पंकज फोन पर बोल रहा था।
कोमल पास ही खड़ी थी।
एक घंटे के बाद भी तांत्रिक बाबा नहीं आये थे। घर की लाइट बंद-चालू होने लगी। घर खिड़कीयां खुद-ब-खुद खुल गयी। दरवाजे से के नीचे से सफेद धुआं घर के अंदर आने लगा। यह किसी अदृश्य शक्ति के आगमन की पुर्व सुचना थी।
यह पंकज की आत्मा थी। जो अपने अंतिभ लक्ष्य की ओर बढ़ रही थी।
रणदीप ड्राज में से पिस्तौल ढुंढने लगा। रणदीप के फोन पर पुनः फोन आया। यह तांत्रिक बाबा ही थे। उन्होंने कोमल से कहा कि पंकज को जहां पर मारकर दफनाया गया था, वहां रणदीप और पंकज तुरंत पहूंच जाएं। पंकज के शरीर के अवशेष को अग्नि के हवाले करने से उसका प्रकोप कम होगा और पंकज को मुक्ति मिल जायेगी। कोमल ने यह सारी बातें रणदीप को बताई। रणदीप इसके लिए तैयार न था। मगर उनके पास इसके अलावा कोई चारा नहीं था। देखते ही देखते पंकज की आत्मा ने रणदीप पर हमला कर दिया। वह हवा में उड़ते हुये नीचे फर्श पर गिर पड़ा। कोमल उसे बचाने दौड़ी। कोमल के रणदीप के पास होने से उस पर हमला होना बंद हुआ। रणदीप समझ गया कि जब तक कोमल उसकी ढाल बनी रहेगी पंकज उस पर हमला नहीं करेगा। वह कोमल से चिपका हुआ था। बचते-बचाते दोनों घर से बाहर निकले। वे कार में सवार हो गये। रणदीप ने कार उस दिशा में मोड़ दी जहां पर उन्होंने पंकज को मारकर दफनाया था। उन्होंने बीच रास्ते में से तात्रिंक बाबा को भी कार में बैठा लिया गया। तान्त्रिक बाबा के साथ उनके दो शिष्य भी थे। बाबा के साथ कार में बैठकर रणदीप और कोमल की हिम्मत बढ़ चुकी थी। अंधेरी रात में कार सरपट दौड़ने लगी। कार जहां रुकी वहां एक घना जंगल था। जहां पधरीली टीले जगह-जगह पर उभरे हुये थे। जंगल से होते हुये वे लोग नीचे खाई में धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगे। सबके हाथ में टार्च थी। जो सामने की ओर रोशनी फेंक रही थी।
"आओ! मैं तुम्हारा ही इंतज़ार कर रहा था।" यह पंकज था। जो अपने मृत शव के (दफनाये) स्थान पर खड़ा था। कोमल आगे बढ़ी। रणदीप उसे रोकना चाहता था किन्तु पंकज को यदि कोई शांत रख सकता था वह थी कोमल। पंकज अब भी कोमल से प्यार करता था।
"पंकज! हमें माफ कर दो! हमने तुम्हारे साथ बहुत बूरा किया।" कोमल ने हाथ जोड़ लिये।
"नहीं कोमल! तुम्हारी जगह कोई भी होता तो अपनी जान बचाने को वही करता जो तुमने किया।" पंकज बोला।
रणदीप भी माफी मांगने की मुद्रा में खड़ा था।
"मुझे तुमसे कोई शिकायत नहीं। मुझे रणदीप से बदला लेना है। और जब तक मैं इसे मार नहीं दूंगा मेरी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।" पंकज बोला।
"रणदीप अब मेरा सुहाग है पंकज! तुम्हें उससे पहले मुझे मारना होगा।" कोमल बोली।
तांत्रिक बाबा मंत्रोचारण में व्यस्त हो गये। यकायक पंकज की आत्मा वहां से गायब हो गयी।
"जल्दी करो! यहां खुदाई करो। पंकज के शरीर को बाहर निकालकर उसे जलाना होगा। मैं अधिक समय तक पंकज को रोक नहीं पाऊंगा।" तांत्रिक बाबा जल्दबाजी में बाबा बोले।
बाबा के शिष्य कार से फावड़ा और कुदाल ले आये। रणदीप भी उनका साथ दे रहा था। जोरदार खुदाई चल पड़ी। तांत्रिक बाबा ने झोले में से महाकाल बाबा की भभूति निकाली और आसपास छिड़कने लगे। ताकि पंकज की आत्मा वहां न आ सके।
एकाएक दोनों शिष्यों की आँखें लाल हो गयी। पंकज ने उन्हें अपने कब्जे में ले लिया था। पंकज जो चाहता था वे वैसा ही करने पर विवश थे। उनके हाथ में कुदाल थी। वे रणदीप पर वार करने ही वाले थे। इतने में एक जोरदार धक्का मारकर तांत्रिक बाबा ने रणदीप को दूर जा फेंका। बाबा ने रणदीप की जान बचा ली। दोनों शिष्यों में से एक ने बाबा पर हमला शुरू कर दिया। दूसरा शिष्य रणदीप की ओर दौड़ा।
"कोमल तुम हमारी चिंता मत करो। गड्डा खोदकर मृत शव पर पेट्रोल छिड़क दो!" तांत्रिक बाबा चिल्लाये।
कोमल तुरंत खुदाई में लग गयी। रणदीप पर वह शिष्य भारी पड़ रहा था। तांत्रिक बाबा भी अपने दूसरे शिष्य के हाथों बूरी तरह पीट रहे थे।
कोमल लगातार फावड़े से मिट्टी हटा रही थी। उसकी मेहनत रंग लाई। पंकजी के शव के अवशेष दिखाई देने लगे। वह कार की तरफ लपकी। पेट्रोल से भरी कुप्पी लेकर पुनः मृत शव के स्थान पर दौड़ी। इससे पुर्व ही एक शिष्य ने कोमल के पैरों में अडंगा डालकर उसे नीचे गिरा दिया। पेट्रोल कुप्पी का ढक्कन खुल गया। पेट्रोल नीचे जमीन पर ढूल रहा था। कोमल पुनः उठी। उसने कुप्पी पुनः उठा ली। उसकी हिम्मत देखते ही बनती थी। शिष्य ने उसका पैर पकड़ा। कोमल फिर से नीचे गिर पड़ी। मगर इस बार पेट्रोल सही स्थान पर ढूलने लगा था। पेट्रोल नीचे जमीन पर खोदे गये गढ्ढे में गिर रहा था। शव के अवशेष पेट्रोल से भीग चूके थे। अब अग्नि जलाने भर की देर थी। पंकज प्रकट हो गया।
"नहीं कोमल! नहीं! एक बार तुम मुझे मार चूकी हो अब दुबारा मत मारो।" पंकज की आत्मा करुण स्वर में बोली।
जलता लाइटर हाथ में पकड़ खड़ी कोमल वहीं रुक गयी।
"बेटी! इसकी बात मत सुनो! यह तुम्हें भटकाना चाहता है। जल्दी करो। जलते लाइटर से पंकज का शव को जला दो। पंकज को इससे मुक्ति मिल जायेगी।" तांत्रिक बाबा बोले।
इतने में शिष्य ने कोमल के पीठ पर लात दे मारी। कोमल दूर जा गिरी। उसके हाथों में से जलता लाइटर हवा में ऊँचा उड़ गया। रणदीप ने हिम्मत जुटाई और अपनी ओर आते जलते हुये लाइटर को उछलकर लात दे मारी। जलता हुया लाइटर पुनः कब्र की दिशा में उड़ता हुआ पंकज के शव पर जा गिरा। शव में आग भभक उठी। आग की ऊंची-ऊंची लपटों से चहूं ओर प्रकाश छा गया। गया। पंकज का भूत कराहता हुआ अदृश्य हो गया। दोनों शिष्य भी यथास्थिति में लौट आये। कोमल और रणदीप ने तांत्रिक बाबा के पैर छूंकर आशीर्वाद लिया। सुबह होने को थी। पुलिस की जीप हाइवे पर आकर रूकी। रणदीप चौंका।
"मैंने ही पुलिस को यहाँ बुलाया है रणदीप। हमने पंकज की हत्या करने का जुर्म किया है उसकी सज़ा तो हमें मिलनी चाहिये।" कोमल बोली।
रणदीप समझ गया उसने कोमल का हाथ पकड़ लिया। दोनों मुस्कुरा रहे थे। पुलिस पंकज की जलती कब्र के स्थान पर जांच-पड़ताल करने में जुट गयी।
कोमल और रणदीप ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। पुलिस उन्हें वैन में बैठाकर पुलिस स्टेशन ले गयी। तांत्रिक बाबा और उनके शिष्य पुलिस जीप को जाते हुये देख रहे थे। जीप कुछ ही पलों में उनकी आखों से ओझल हो गयी। "जय बाबा महाकांल सब पे आई बला को टाल।" कहते हुये तांत्रिक बाबा अपने शिष्यों के साथ पैदल ही दूसरी दिशा चल दिये।
समाप्त
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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