प्रेरणा-लघुकथा

 *प्रेरणा-लघुकथा*

       *तीन* बेटियों के भवन निर्माण मिस्त्री पिता अंगद सड़क दुर्घटना में घारल होकर उपचारत हाॅस्पीटल में जीवन की जंग हारे गये। उसकी पत्नी सुगन विचलित हो उठी। परिवार का गुजर-बसर अब कैसे होगा, यही चिंता उसे दिन-रात खाये जाती। जिन लोगों के मकान अंगद बना रहा थे वे निर्माणाधीन मकान मालिक सुगन के यहां अंगद को दिये गये एडवांस रूपयों को मांगने आने लगे थे। बड़ी बेटी प्रेरणा ने हाथ में करनी (औजार) थामकर पुरूष प्रधान मिस्त्री कार्य क्षेत्र में सनसनी फैला दी। प्रेरणा अपने पिता के अधूर काम पूर्ण करने में संपूर्ण निष्ठा से जूट गयी। अंगद ने ही प्रेरणा को ईंटों की जुड़ाई और दीवार पर रेत व सीमेन्ट युक्त गीले मिश्रण का प्लास्टर करना सिखाया था। प्रेरणा स्कूल से आने के बाद पिता के साथ मजदूरी करते-करते कारीगरी का काम कब सिख गयी, किसी को पता नहीं चला। प्रेरणा का काम प्रभावी तथा आकर्षक था। वह अन्य मिस्रीयों की अपेक्षा कम समय में ज्यादा कार्य निपटा कर देती थी। प्रेरणा की ख्याति बढ़ने लगी। उसने अपनी बहनों को भी इस काम में सहयोग के लिए आमन्त्रित किया। पढ़ाई के बाद उसकी बहनें प्रेरणा की सहयोगी बनकर काम में हाथ बटाती। मां सुगन तीनों बेटियों की देखभाल के लिए निमार्णाधिन मकान की साइट पर ही रहती। पिता अंगद के सिर पर चढ़ा रुपयों का कर्ज बेटियों ने अपनी मेहनत से चूकता कर दिया। इसके साथ ही प्रेरणा को अच्छे भवन निर्माण कार्यों के कुछ ठेके मिले जिसमें उसने अन्य मिस्रीयों की सेवायें लेना शुरू कर दी। अब अन्य पुरुष कारीगर भी प्रेरणा के निर्देश पर काम करने लगे। देखने वाले यह दृश्य देखकर दांतों तले उंगलियाँ दबा लेते। प्रेरणा और उसकी बहनों की ख्याति दिनों-दिन बढ़ती ही गयी।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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