किराया-लघुकथा

       *किराया-लघुकथा*

        *सुबोध* ने अपने किराये दार से साफ-साफ कह दिया। उसे लाॅकडाऊन अवधी का किराया भी सुबोध को देना होगा। सुबोध ने पिछले लाॅकडाऊन में आधा किराया माफ किया था। किन्तु इस बार उसे पूरा किराया चाहिये। किरायेदार चूपचाप खड़े होकर सुबोध की खरी-खोटी सुनता रहा। सुबोध ने किरायेदार की किसी विनती पर कोई ध्यान नहीं दिया। किरायेदार को अल्टीमेटम देकर सुबोध अपनी दुकान खोलने के लिए चल दिया। दुकान के बाहर अन्य दुकानदारों की भीड़ जमा थी। वे दुकानदार आज दुकान मालिक से मुलाकात करने वाले थे। सभी सुबोध की प्रतिक्षा कर रहे थे। सुबोध और उसके पड़ोसी दुकानदार चाहते थे कि दुकान मालिक लाॅकडाऊन अवधी का किराया माफ कर दे। लम्बे समय से उन सभी की दुकानें बंद थी। इस बीच धन की कोई आवक नहीं थी। अतएव सुबोध और अन्य दुकानदार आज दुकान के मालिक से मिलकर उन पर दबाव बनायेंगे और कहेंगे कि वे लाॅकडाऊन अवधी का किराया नहीं चूका सकते।


समाप्त

-------------------


प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित ©️®️

----------------------

जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

177, इंदिरा एकता नगर पूर्व रिंग रोड चौराहा

मुसाखेड़ी इंदौर मध्यप्रदेश

मोबाइल नम्बर-

8770870151

7756842633

Myshivhare2018@gmail.com

Jshivhare2015@gmail.com


टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

लव मैरिज- कहानी

तुम, मैं और तुम (कहानी)