चरित्रहीन-कहानी

 *चरित्रहीन-कहानी*

    *राजकुमार* युवा होते ही मां सलोनी से दूर होता गया। पिता उसे बपचन में ही छोड़कर चल बसे थे। विधवा सलोनी ने राजकुमार की परवरिश में अमित का सहयोग लिया। दुनियां वाले तो राजकुमार को अमित की संतान मानते थे। अमित को पिता के रूप में राजकुमार ने कभी स्वीकार नहीं किया।

"अब समय आ गया है कि राजकुमार को बता दिया जाये कि उसके असली पिता कौन है?" अमित बोला। वह सलोनी को पुत्र वियोग में देख नहीं सके।

"ऐसा न कहिए। आप ही राजकुमार के पिता है!" सलोनी बोली।

"नहीं सलोनी। हम दोनों को पता है कि मैं राजकुमार का पिता नहीं हूं।" अमीत बोला।

सलोनी की आंखें तब फटी की फटी रह गयी जब द्वार पर अचानक आ खड़े हुये राजकुमार को उसने देख लिया।

"कौन है मेरे पिता!" भयंकर गर्जना के साथ राजकुमार ने पूछा। उसने अमीत की काॅलर पकड़ रखी थी।

"जब तुम्हारे पिता का स्वर्गवास हुआ तब विधवा सलोनी को ससूराल वालों ने स्वीकार नहीं किया। शहर आकर वह प्राइवेट स्कूल में शिक्षिका बन गयी। विधायक चुनाव की तैयारी कर रहे बाहुबली नेता विशाल पटेल की नज़र सलोनी पर पड़ी। न चाहते हुये भी सलोनी उसके झूठे प्रेम जाल में फंसती चली गयी। विधायक बनकर विशाल पटेल ने सलोनी से किनारा कर लिया। इसी बीच तुम्हारा जन्म हुआ।" अमित ने बताया।

"मेरी बदहाली देख मेरे बचपन के दोस्त अमित आगे आये। उन्होंने तुम्हारे अघोषित पिता के रुप में सभी कर्तव्य निभाये।" सलोनी ने आगे बताया।

राजकुमार के चेहरे की भाव विचारणीय अवस्था में आ गये। राजकुमार ने पलटकर टीवी ऑन की। न्यूज चैनल पर बूढ़े, नि:संतान और गंभीर बिमारी से जूझ रहे उपचारत विशाल पटेल की एक हजार करोड़ की संपत्ति के वारिस को लेकर बहस चल रही थी। आये दिन कोई न कोई विशाल पटेल का नामांकित वारिस बनकर सामने आ रहा था।

गौर से टीवी देख रहा युवराज का चेहरा खिल उठा। उसने अपनी मां को गोद में उठा लिया।

"मां! मेरी प्यारी मां! तु बिल्कुल चिंता मत कर। विशाल पटेल मेरे पिता है ये सच दुनियां वालों को मैं बताऊंगा। मैं ही कानूनी रुप से उनका उत्तराधिकारी हूं। अब तुझे चिंता करने की कोई जरूरत नहीं।" राजकुमार बहुत खुश था। सलोनी और अमित स्तब्ध खड़े राजकुमार की स्वीकार्यता को पचा नहीं पा रहे थे। राजकुमार प्रसन्नता में तेजी से घर के बाहर निकल गया।



समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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