बेटियां- लघुकथा

बेटियां- लघुकथा

    एक-एक कर नलिनी के तीनों बेटों ने पढ़ाई छोड़ दी। छोटा-मोटा काम करते हुये बड़ा बेटा महेश किशोरावस्था में ही नशे का आदि बन गया। मंझला रामू भी उसी के नक्शे कदम पर चल पड़ा। अब छोटे अनुज से ही नलिनी को कुछ उम्मीदें थी। किन्तु भाईयों की संगत से प्रभावित अनुज के भी बिगड़ने की पूर्ण संभावना थी।
यह वही नलिनी थी जिसे अपने तीन-तीन बेटों पर बड़ा गर्व था। दो बेटियों की मां बन चुकी बेटे के न होने से हताश पड़ोसन आशा को नलिनी ने ही एक बार कहा था कि घर में एक बेटा तो होना ही चाहिये।
सुन्दर बेटों की मां नलिनी की किश्मत पर आशा जल भुन जाती थी। इस बात का गुस्सा वह अपनी दोनों बेटी निधि और सुनिधि पर उतारती। समय के साथ दोनों सहेलियों के बच्चें जब बढ़े हुये तब स्थितियां बहुत बदल गयी। नलिनी के बेटे बुरी संगति में पढ़कर नशे के आदि बन चुके थे। आये दिन बेटों के कूकृत्यों के कारण नलिनी को पुरे मोहल्ले के सामने शर्मिन्दा होना पड़ता। नशीले बेटों को देखकर अन्य लोगों की तरह आशा भी कह उठती कि ऐसे बेटों से तो बेटा न होना अच्छा। इधर आशा की बेटियां काॅलेज तक जा पहूंची। दोनों नित्य नये सफलता के झंडे गाढ़ रही थी। आशा को आज वास्तविक सुख मिल रहा था। पुर्व में अपनी बेटीयों के प्रति उपेक्षित व्यवहार से वह आत्म ग्लानि अनुभव कर रही थी। मगर निधि और सुनिधि ने अपनी मां को इस शर्मिन्दगी से उबारा और अपने परिश्रम व लगन से वह स्थिति निर्मित की जहां आशा के साथ अन्य माता-पिता भी बेटियों पर गर्व करने लगे।

समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।

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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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