बोल दो ना-कहानी
बोल दो ना-कहानी
बस में लेडिज सवारी चढ़ते ही पुरूषों ने महिला सीट छोड़ दी। एक-एक कर सभी लेडीज संवारी हालियां रिक्त हुई सीटों पर बैठ गयीं। विद्या पहली बार बस में खड़ी रहने पर खुश थी क्योंकी वह बैठना नहीं चाहती थी। महिला सीटस् फुल हो गयी। अगले स्टॉप पर पुनः बस रुकी। पुर्व से बस में बैठी कुछ महिलाएं उतर गयी। विद्या अब भी खड़ी थी। मन ही मन वह प्रार्थना कर रही थी कि कोई उसे खाली सीट पर बैठने का आग्रह न कर दे! आज उसे बैठना नहीं था। वह खड़े-खड़े ही गंतव्य तक जाना चाहती थी। आज उसका इंटरव्यू था। इस हालत में वह इन्टरव्यू कैसे दे सकेगी, विद्या यही सोच रही थी? बिना बारिश के वह भीग चूकी थी। आज यह गीलापन उसे काटने को दौड़ रहा था। कंडेक्टर ने विद्या को खाली पड़ी सीट पर बैठने का क्या कहा, विद्या सकपका गयी। वह इधर-उधर तांकने लगी। कुछ सवारीयां उसी पर नज़रे गढ़ाये हुये थी। विद्या नज़र बचाकर अपने मोबाइल में जा घूसी। कंडेक्टर पुनः निवेदन करता इससे पुर्व ही एक अन्य महिला सवारी आकर उस खाली सीट पर बैठ गयी। विद्या की जान में जान आई। मगर अभी भी एक घंटे का सफर शेष था और महिने की नियमित बारिश से उपजे किचड़ के दलदल में विद्या धंसती चली जा रही थी। इस हैय परिस्थिति का उसे पुर्व अनुमान और समूचित ध्यान रखना चाहिए था, विद्या को स्वयं पर गुस्सा आ रहा था। पुरूष ड्राइवर से वह कह भी नहीं सकती थी की सार्वजानिक शौचालय पर बस रोक दे ताकि वह रीफ्रैश हो सके।
"आओ मेरे साथ!" एक अनजान ध्वनि ने विद्या के आगे हाथ बढ़ाया। यह एक युवती की अवाज़ थी।
"मेरा नाम लुभना है। मैं जानती हूं इस समय आप पर क्या बीत रही है।" लुभाना बोली।
विद्या सोच पाती इससे पहले ही लुभना ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"ड्राइवर साहब! आगे पब्लिक टाॅयलेट पर बस रोकना।" लुभना ने ड्राइवर से कहा।
"जी मैडम जी!" ड्राइवर ने जवाब दिया।
अगले ही पल बस लेडिज टाॅयलेट से कुछ दूरी पर खडी हो गयी। लुभना और विद्या वाॅशरुम की तरफ चल दी। विद्या ने देखा की बस रूकते ही अन्य महिला सवारी भी टाॅयलेट के ओर जाने लगी।
"देखा विद्या! बोलने से बात बनती है। प्राकृतिक घटनाओं का होना एक नियमित प्रक्रिया है। सब को पता है कि ये सब होता ही है फिर शर्माना क्यों?" लुभना बोली।
"सच में! मै नाहक ही ग्लानि अनुभव कर रही थी। आपने मेरा संकोच खत्म कर दिया। आज मुझे पता चल गया कि मन की बात बोलने से सब ठीक हो जाता है। थैंक्स लुभना!" विद्या बोली।
"वेलकम! अब जाओ। जल्दी जाकर पेड चेंच कर के आओ। सभी को लेट हो रहा है।" लुभना ने हंसते हुये बोली।
आत्म विश्वास से भरी विद्या मुस्कुराते हुये वाॅशरुम के अंदर चली गयी। अब उसका ध्यान सिर्फ इन्टरव्यू पर था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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