पगले! तेरी भाभी है! - कहानी
पगले! तेरी भाभी है! - कहानी
"पगले! तेरी भाभी है! ऐसे नहीं कहते।" परम बोला।
"परम! वो मेरी नहीं तेरी भाभी है।" विभू ने कहा।
"देख! तुझे पता है न! मैं लुभना से कितना प्यार हूं!" परम ने कहा।
"लेकिन लुभना मुझसे प्यार करती है!" विभू बोला।
"अच्छा! ऐसा क्या तुझे लुभना ने कहा?" परम बोला।
"बोला नहीं है मगर वह मुझे जिस प्यार भर नज़रों से देखती है उसके दम पर मैं कह सकता हूं कि वह मुझी से प्यार करती है।" विभू ने तर्क दिया।
लुभना अपनी सहेलियों के साथ बाजार से गुजर रही थी। उस पर परम और विभू की नज़रे जमी हुई थी।
परम और विभू दोनों लुभना से प्यार करते थे और चाहते थे कि लुभना उनमें से किसी एक को अपना ले।
लुभना का सौन्दर्य ही ऐसा था कि मोहल्ले में आये उसे एक महिना नहीं हुआ था और दर्जन से भर से अधिक उसके यहां दीवाने हो गये थे।
यहां तक की हाई स्कूल जाने वाले किशोर भी लुभना पर लट्टू थे। शादी शुदा मर्द भी लुभना को आह भरी नज़रों से देखते। बुढ़े पुराने पुरूष भी कम न थे। आंख बचा-बचाकर वे भी लुभना को जी भर के निहारना नहीं भूलते।
किराये के मकान में रही रही लुभना के मां-बाप मजदूरी पर चले जाते। घर पर लुभना और उसका छोटा भाई आदित्य ही रहता। लुभना आदित्य को हर वक्त अपने साथ ही रखती। लुभना के साथ रहने का आदित्य को बड़ा लाभ हुआ। आज उसके पास एक से बढ़कर एक खिलोने थे। यही नहीं कल ही उसे लुभना ने एक नया स्मार्ट फोन भी लाकर दिया था। आदित्य के मज़े थे। जब-तब उसे जो भी खाने का मन करता, लुभना एक फोन घुमा देती, कुछ ही देर में वह खाने का पैकेट उसके घर पहूंच जाता। आदित्य अपनी दीदी को बहुत मान देता। उसकी सभी ख्वाहिशे लुभना जो पूरी कर रही थी।
लुभना ने मोहल्ले के युवा दिलों पर वह धाक जमा दी थी कि यदि वह इलाके से चुनाव के लिए खड़ी हो जाएं तो लगभग सभी वयस्क पुरूषों के वोट उसे ही मिले। हां! मगर महिलाओं के सभी वोट उसके विरूद्ध डाले जाएं तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा। नगर की लगभग सभी वयस्क महिलाएं लुभना से ईर्ष्या करती थी। क्योंकी एक तो लुभना बला की खुबसूरत युवती थी और ऊपर से उनके घरेलू मर्दों का आकर्षण लुभना के प्रति जबरदस्त था। लुभना के बोलने से पहले ही उसकी फरमाइशे पूरी हो जाती। ये फरमाइशे कौन पूरी करता ये स्वयं लुभना को भी नहीं पता होता। वह तो लगभग हर युवक से फोन पर बात करती और इशारों ही इशारों में जता देती की उसे क्या चाहिए।
लुभना के पास तमास सारी सामग्री देखकर उसे बाबूजी बिफर जाते। वे अक्सर लुभना को डांट पीलाते मगर लुभना कहां मानने वाली थी। उसके अडियल रवैय्ये ने कई बार मुसीबत खड़ी की थी।
लुभना के सौन्दर्य के दीवाने शहर ही नहीं गांव में भी थे, जहां से जबरन उसे शहर लाया गया था। लुभना के प्रेम प्रसंग समूचे गांव में चर्चा का विषय बने थे।
लुभना से शादी का वादा कर उसे घर से भगा कर ले जाने वाले अशोक को पुरा गांव ढूंठ रहा था। मगर अशोक का कहीं अता-पता नहीं था। कुछ महिनों के बाद लुभना गांव लौटी। अकेली। अशोक ने शहर ले जाकर उसे धोखा दिया और चूपचाप रात के अंधेरे में लुभना को सोता छोड़कर वहां से भाग खड़ा हुआ। भूखी-प्यासी शहर की सड़कों पर घूम रही लुभना को भीख के बदले न चाहते हुये अपनी अस्मत गंवानी पड़ी। वह पुलिस स्टेशन भी गयी और अपने साथ हुये दुराचार के लिए इंसाफ मांगा। पुलिस प्रशासन ने सारी रात उसे अपराधी बनाकर बैठाये रखा। वहां भी उसकी कोई सुनवाई नहीं हुई तब वह वहां से भी भाग खड़ी हुई।
यह सारा वाकया बताने के बाद भी गांव वालों ने लुभना को ही गल़त ठहरा दिया।
गांव वालों के आगे बहादुर और शांता की एक न चली। उन्हें लुभना के साथ गांव छोड़ना पड़ा। शहर आकर मजदूरी के अलावा उनके पाह कोई चारा नहीं था। लुभना की सुन्दरता बहादुर औ शांता के लिए किसी अभिशाप से कम न थी। हर तीसरे-चौथे महिने उन्हें लुभना के प्रेम प्रसंग के कारण किराये का मकान खाली करना पड़ता। लुभना जहां भी जाती उसके नये और पुराने चाहने वालों में जंग छिड़ जाती।
लुभना अपनी उंगलियों पर युवाओं को नचा रही थी। उसका यह शौक बढ़ता ही जा रहा था।
अनवरत..........
पढ़िए पूरी कहानी 'जितेन्द्र की कहानियां 143' में....
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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