बदला-लघुकथा
बदला-लघुकथा
अतुल के याचना भरे भावों से प्रताप भावुक था। वह जानता था कि अतुल उसके पास जिस काम से आया है उसके संबंध में प्रताप को थोड़ी भी एबीसीडी पता नहीं है। किन्तु सचिन ने अतुल के सामने प्रताप की बहूत तारिफ की थी और कहा था कि प्रताप अतुल के कार्य को अवश्य कर देगा।
प्रताप को सचिन की शैतानी समझ में आ गयी थी। उन दोनों में छत्तीस का अंकड़ा था। प्रताप और सचिन में कभी नहीं बनी। अलबत्ता दोनों के मध्य हमेशा तु-तु मैं-मैं हुआ करती थी।
प्रताप को समझ में आ गया है कि जिस काम का उसे तनिक भी ज्ञान नहीं है उसी काम को करने के लिए सचिन ने उसे उकसा कर प्रताप को नीचा दिखाने की कोशिश की है। यहां प्रताप ने बहुत सोचा और फिर निर्णय लिया की वह अतुल की मदद करेगा। प्रताप और सचिन के आपसी मदभेद की भनक भी वह अतुल को नहीं लगने देगा।
प्रताप ने अतुल से कुछ समय मांगा और कहा कि वह अतुल का कार्य करने की पूरी कोशिश करेगा। प्रताप ने इंटरनेट की मदद ली और अपने जान-पहचान के व्यक्तियो के अनुभवो को इकठ्ठा किया। वह संबंधित कार्य को बड़ी बारीकी से समझने की प्रयास करने लगा। कुछ ही दिनों में प्रताप ने अतुल द्वारा बताये कार्य को नि:शुल्क कर दिया। अतुल प्रसन्न था। प्रताप की जितनी तारिफ उसने सुनी थी वह सच सत्य सिद्ध हुई। वह पुनः सचिन के पास धन्यवाद ज्ञापित करने गया और कहा कि प्रताप से उम्दा व्यक्ति उसने आज तक नहीं देखा। अपने प्रतिद्वंद्वी की प्रशंसा सुनकर सचिन के हृदय पर सांप लौटने लगे। किन्तु वह अब कुछ नहीं कर सकता था। जो दाव उसने प्रताप को बदनाम करने के लिए फेंका था वह उल्टा पड़ चूका था। प्रताप की बढ़ती ख्याति सचिन पचा नहीं पा रहा था।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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