नागपंचमी-लघुकथा
नागपंचमी-लघुकथा
सुबह-सुबह पोधों में पानी डालते वक्त नीता की नज़र एक भंयकर काले सर्प पर पड़ी, जो गमले की ओट में दूबक कर बैठा था। नीता की चीख निकल गयी। परिवार के बाकी सदस्य दौड़कर वहां आये। जब उन्होंने भी सर्प को देखा तो श्रद्धा से हाथ जोड़ लिये। नागपंचमी पर नाग देवता के दर्शन घर के आंगन में होना शुभ संकेत था। नहा-धोकर परिवार के सभी सदस्यों ने नाग देवता के गमले के समीप पूजा-अर्चना शुरू कर दी। नाग देवता कभी यहा तो कभी वहां दौड़ लगा रहे थे। दूध की कटोरी भी परोसी गई किन्तु सिवाये दर्शन लाभ के नाग देवता अन्य कोई सुख परिवार को देना नहीं चाहते थे। धूप दीप से वातावरण सुगंधित हो गया। मोहल्ले के अन्य घरों में सर्प देवता के आगमन की सूचना जंगल में आग की तरह फैल गयी। समूचे नगर वासी नारियल फोड़ने नाग देवता के पास आने लगे। पूरा दिन भक्ति भाव में बीत गया। घर के सभी लोग चाहते थे कि अतिथि नाग देवता अब यहां से चले जाये। मगर नाग देवता परिवार की भक्ति भावना से इतने प्रसन्न थे कि आंगन की बगियां छोड़कर अन्यत्र जाने को तैयार नहीं हुये। अगले दिन परिवार के मुखियां का ध्यैर्य जवाब दे गया क्योंकी उन्हें आंगन में खेलते बच्चों की चिंता सताने लगी थी।
लाठी लेकर उन्होंने समुची बगियां छान मारी और अंततः सर्प को खोज निकाला। लठ्ठ के प्रहार से अधभरा सर्प ठीक से रेंग भी नहीं पा रहा था। परिवार के अन्य सदस्यों ने वहीं त्वरित चिता की व्यवस्था कर दी और देखते ही देखते सर्प देवता धूं-धूं कर जल उठे।
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे
Mo. 8770870151
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