मौके का फायदा-लघुकथा

 मौके का फायदा-लघुकथा 


लाॅकडाऊन चल रहा था। रोहित को आवश्यक काम से बाहर जाना मजबूरी थी। उसने बाइक स्टार्ट करनी चाही किन्तु वह शुरू ही नहीं हुई। नजदीक ही मित्र का गैराज था जो चोरी छिपे बाइक सुधार रहा था।


बाइक का प्लग खराब था। रोहित का मित्र उस प्लग को बदलने लगा। मित्र के पिता रोहित से बात करने लगे।


"मैकेनिक बेटा घर पहूंच सेवा देने लगा है। ऑटो पार्टस बदलने का दुगना शुल्क है। खराब मोटरसाइकिल हम घर पहूंचकर भी सुधार रहे है लेकिन घर पहूंच सेवा का चार्ज पहले से ज्यादा है। दो सौ के स्थान पर चैकिंक चार्ज चार सौ ले रहे है और पार्टस बदलने के रूपये अलग से।" मित्र के पिता शेखी बघार रहे थे।


मैकेनिक पुत्र अवसर का पूर्णतया लाभ उठा रहा था।


रोहित से रहा नहीं गया।


"अंकल! इस समय मौके का फायदा तो हर कोई उठा रहा है, आपने उठाया तो क्या नया किया? गर्व की बात तो तब होती जब आप सेवा शुल्क आधे से भी कम लेते। इस समय हर कोई परेशान है। मुसीबत में आपकी सेवा की भवना और दयालुता को हर कोई याद रखता जैसे अभी अवसर का लाभ उठाने वालों की तरह आपको भी हमेशा याद रखा जायेगा।" रोहित ने जो मन में आया सो कह दिया।


रोहित की बातों ने कुछ पलों की विचारणीय स्थिति अवश्य निर्मित कर दी किन्तु अगले ही पल पिता-पुत्र दोनो पुनः नये ग्राहकों की गाड़ीयां सुधारने में व्यस्त हो गये, जैसे कुछ हुआ ही न हो!


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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