प्रतियोगिता-लघुकथा

 प्रतियोगिता-लघुकथा

      *शमशान* में शवों का आना जारी था। एक सज्जन दाह संस्कार में आगे बढ़ चढ़कर नित्य नये-नये निर्देश साथियों को दे रहे थे। उनके आदेशों का पालन निकट पड़ोसी से लेकर नाते-रिश्तेदार भी सिर झूकाये कर रहे रहे थे। सज्जन के दिशा-निर्देशों को सुनने से भर से लगता था कि इन्होंने असंख्य शवों को फूंका है।

सज्जन सगे संबंधी न थे ये सभी जान चुके थे। अन्य शवों को जलाने की तैयारी कर रहे लोग, सज्जन की बातों को सुन रहे थे। वे भी कतई नहीं चाहते थे कि उनका शव संसकार किसी भी तरह सज्जन से कम हो। वे लोग भी इस अघोषित प्रतियोगिता में कूद पड़े। लकड़ी, उपले, घास-फूंस, घी, शक्कर तथा अन्य अंतिम संस्कार की सभी सामग्री की बेहतर व्यवस्था में जुटे लोगों को देखा जा सकता था।

शमशान में उपस्थित हर एक की नज़रे निर्धारित स्थान पर लकड़ीयों के ढेर पर लेटे शवों को पर बारी-बारी से देखे जा रही थी। कौन जीतेगा! कौन हारेगा! यह कौतूहल का विषय बनता जा रहा था।

सज्जन बोल पड़े- "हमारी चिता की लौ देखना! बाकियों की चिता से ऊपर न जाए तो कहना!"

तब ही जोरदार पानी बरसने लगा। अफरा तफरी मच गयी। आड़ा-तिरछा गिर रहा वर्षा का पानी चिता की लकड़ीयां भिगो रहा था। दाह संस्कार में अचानक आ पड़ी इस मुसीबत ने सभी को परेशान कर दिया। जब केरोसीन न मिला तो मोटरसाइकिलों में से पेट्रोल निकाल कर बमुश्किल शवों को जलाया जा सका। सज्जन के साथ अन्य अघोषित प्रतियोगी भी एक-दूसरे से नज़रे चूराते नज़र आ रहे थे।



समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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