अफेयर-3 कहानी
अफेयर-3
रोहित का प्रेम अश्विनी के प्रति कितना सच्चा था ये तो आने वाला वक्त ही बता सकेगा। मगर अश्विनी को रोहित में अपना भविष्य दिखाई देने लगा था। वह पूर्ण मन से रोहित को अपना सर्वस्व मान चूकी थी। ऐसा उसने अनेकों बार घोषित किया था। लीवर की खराबी से जीवन के अंतिम छोर तक आ पहुंचे पति दिनेश से उपजी दो किशोर उम्र कि बेटीयों पर अश्विनी अपनी जान छिड़कती थी। आहना और सुमति की पढाई-लिखाई से लेकर उनके हुनर को तराशने का काम अश्विनी बड़ी ही सावधानी से कर रही थी। उसकी एक ख्वाहिश थी। अश्विनी चाहती थी वह एक बेटे का मां बने।
अश्विनी की ये उम्मीद रोहित पूरी कर सकता था। लेकिन रोहित अपने भावि अजन्में बेटे को अपने पास रखना चाहता था। क्योंकि उसे भी स्व पत्नी आरती से दो बेटियां थी। अश्विनी और रोहित इस विषय पर एकमत नहीं हो पा रहे थे और इसी अधेड़बुन में दोनों का महामिलाप भी टलता जा रहा था। दोनों के बीच सैकड़ों किलोमीटर कि दूरी थी। अस्वस्थ पति दिनेश का उपाचार अश्विनी के लिए महंगा सिध्द हो रहा था अतः पति की देखभाल के साथ-साथ वह अपनी अतिरिक्त आमदनी अर्जित करने का भी प्रयास करती।
छोटा-मोटा कम्प्यूटर वर्क करते हुये अश्विनी पति दिनेश के पूर्व बिजनेस रियल स्टेट में कूद पड़ी। उसे अपनी बेटीयों को एक अच्छा सा भविष्य देना था जिसके लिए वह कढ़ी मेहनत आवश्यक थी।
अश्विनी चाहती थी रोहित अपना स्पर्म उस तक भिजवा दे ताकि सैरोगेसी पद्धति के माध्यम से वह मां बन सके। क्योंकी अश्विनी और रोहित का मिलन दिन-ब-दिन टलता जा रहा था। रोहित इस बात को समझ चूका था कि उन दोनों का भावि अंजन्मा बेटा कहीं भी रहे वंश तो रोहित का ही चलेगा।
परस्पर प्रेम की प्राप्ती की तीव्र अभिलाषा से उपजी मृगतृष्णा की समाप्ति के लिए दोनों ने अंततः मधूर मिलन का स्थान और समय निश्चित किया। जितना रोहित उतावला था उतनी ही अश्विनी भी दिवानी दिखाई दे रही थी।
"कोई पूँछ बैठा कि ये बच्चा किसका है तब?" रोहित ने अश्विनी से पूंछा।
दोनों शहर की एक लाॅज में ठहरे हुये थे।
"वो सब तुम मुझ पर छोड़ दो। तुम बस बीजारोपण की सोचो। उसका लालन-पालन सब मेरी जिम्मेदारी है।" अश्विनी बोली। वह निर्भीक थी।
रोहित कुछ सोच पाता इससे पूर्व ही अश्विनी का सिर रोहित के हृदय से जा लगा था। भरे पूरे ससूराल की बड़ी बहू अश्विनी के बुलंद हौसलें देखकर रोहित ने भी कमर कंस ली।
अश्विनी का कोमल स्पर्श रोहित के शरीर में करंट बनकर दौड़ रहा था। वह मदमस्त हो जाता अगर फोन की घंटी न बज उठती। यह फोन अश्विनी के लिए था। फोन पर अश्विनी के ससूर थे जो बता रहे थे कि दिनेश की तबीयत बिगड़ गयी है और उसे फौरन हाॅस्पीटल में भर्ती किया जा रहा है। हजारों किलोमिटर की दूरी तय कर अश्विनी के पास पहूंचा रोहित अपनी आंखें के सम्मुख अश्विनी को बेरंग लौटते हुये देख रहा था।
हाॅस्पीटल पहूंची अश्विनी को पति दिनेश के निधन की सूचना ने बदहवास कर दिया। वह गुमसुम हो गयी। न किसी से कुछ कहती न किसी की सुनती। उस पर दूःखों का पहाड़ टूट पड़ा था क्योंकि पति की मौत के साथ ही उसके भावि अजन्मे बेटे की भी मौत गयी थी।
जितेन्द्र शिवहरे
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