बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना-कहानी


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बचपन का प्यार मेरा भूल नहीं जाना

कहानी

"चंकी मुझसे प्यार करता है एकाग्र! और मैं चंकी से! वी आर मेड फाॅर इच अदर।"

माया ने एकाग्र से कहा।

"नहीं! वह झूठ था माया! that was a total lie.
 ताकि तुम चंकी से प्यार करने लगो। यह चंकी की ही एक चाल थी।" एकाग्र ने बताया।

"You are right! तुम सच कह रहे हो! लेकिन प्यार का झूठा नाटक करते-करते चंकी सचमुच में मुझसे प्यार करने लगा है और यह बात उसने खूद कूबूल की है। He accept it." माया ने दृढ़ता से कहा।

तब ही चंकी वहां आ पहूंचा।

"हां माया! ये सही है कि प्यार का झूठा नाटक करते-करते मैं सचमुच में तुमसे प्यार करने लगा हूं।" चंकी बोला।

चंकी को देखकर माया खुश हो गयी। उसने एकाग्र के सामने एक बार फिर अपना प्यार स्वीकार कर लिया था।

"लेकिन माया! तुम एकाग्र का पहला प्यार हो और मैं अपने जिगरी दोस्त को धोखा नहीं दे सकता।" चंकी बोला।

"तुम कहना क्या चाहते हो चंकी।" माया ने पूँछा।

"हां! माया! तुमने सही समझा। तुम्हें एकाग्र के पास लौटना होगा। एकाग्र तुम्हें बहुत प्यार करता है।" चंकी इमोशनल था।

"नहीं ये कभी नहीं हो सकता चंकी। मैं तुमसे प्यार करती है। एकाग्र के पास कैसे जा सकती हूँ। इट्स नाॅट पाॅसिबल। मेरी कोई चीज़ नहीँ हूं।" माया चिखी।

"समझने की कोशिश करो माया। एकाग्र और तुम बहुत खुश रहोगो। यूं बाॅथ आर मेड फाॅर इच अदर।" चंकी ने माया के कंधों पर हाथ रखते हुये उसे समझाया। 

चंकी का दोस्ती के लिए समपर्ण और त्याग देखकर एकाग्र हतप्रद था।

"चंकी और माया। मैंने तुम दोनों के मन की सुन ली। अब तुम दोनो मेरी बात सुनो। लीसन टू मी।" एकाग्र बीच में बोल पड़ा।

माया और चंकी अपनी बहस छोड़कर एकाग्र की तरफ देखने लगे।

"टेल मी! बोलो। अब तुम्हें क्या कहना है।" आखों में आसूं लिये माया गुस्से में एकाग्र से बोली।

"माया! ये सच है कि मैं तुमसे बचपन से प्यार करता हूं लेकिन तुमने कभी मेरे प्यार को एक्सेप्ट नहीं किया। और चंकी ये सब जानता था। यह चंकी और मेरी ही प्लानिंग थी जिसमें चंकी तुमसे प्यार का नाटक करेगा और अंत में तुम्हें प्यार में धोखा देकर भाग जायेगा, तब तुम ऑटोमेटीकली मेरे पास लौट आओगी।" एकाग्र ने बताया।

"बीती बातों को भूल जा एकाग्र! जस्ट फाॅरगेट इट। तुम दोनों अब नया जीवन शुरू करो।" चंकी बोला।

"नहीं चंकी मेरे यार! अब ये नहीं हो सकता। इट्स नाॅट पाॅसिबल।" एकाग्र बोला।

"क्यों नहीं हो सकता। व्हाए?" चंकी ने गुस्से में पूंछा।

"क्योंकि माया अब तुम्हारी हो चूकी है और तुम माया के। तुम दोनों एक-दूसरे के दिलो जान में इस तरह बस गये हो कि अब अगर दूर हुये तो जिंदा नहीं रह सकोगे।" एकाग्र ने समझाया।

"और तु माया से दूर रहकर जी सकेगा क्या? अरे पगले! मैंने तो जानबूझकर माया से प्यार का ढोंग किया और मुझे माया से प्यार हो गया लेकिन तु तो बचपन से माया से प्यार करते आ रहा है। तेरी हर सांस पे माया का नाम लिखा है। माया ओनली फाॅर यूं एण्ड इट्स फायनल।" चंकी बोला।

न चंकी को एकाग्र का प्रस्ताव पसंद आया और न एकाग्र को चंकी का। दोनों एक-दूसरे को समझाने का असफल प्रयास कर रहे थे।

माया दोनों जिगरी दोस्तों को एक दूसरे के हित के लिए लड़ते-झगडते हुये अधिक समय तक देख न सकी। फिर उसने वो किया जिसकी किसी को कोई उम्मीद नहीं थी।

"मैं अपनी शादी के लिए पापा द्वारा बताये गये लड़के को हां कहने जा रही हूं।" माया बोली।

"व्हाट?" चंकी और एकाग्र एक स्वर में बोले। वे चौंक गये।

"हां! तुम दोनों ने सही सुना। प्यार में सेक्रेफाइस करना क्या सिर्फ लड़कों को आता है? हम लड़कियां भी ये कर सकती है।"

"तुम दोनों भी अपने-अपने माम-डैड की पसंद की लड़की से शादि कर लेना।" माया एक सांस में सब कह गयी। 

माया को जाते हुए देखने के अलावा दोनों कुछ नहीं कर सकते थे। माया का यह निर्णय तीनों के असीम प्रेम और समर्पित त्याग का सही प्रत्युत्तर था। कौन किसे स्वीकार करे और किसका त्याग सर्वाधिक था ऐसे अनगिनत प्रश्नों का उत्तर माया ने दे दिया था। माया का अनुसरण करते हुये चंकी और एकाग्र दोनों ने अपने-अपने परिजनों को स्व विवाह की सहमती हेतु अंततः अभिस्वीकृति दे ही दी।

लेखक
जितेन्द्र शिवहरे 
मो. 7746842533

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