शराबी दूल्हा चाहिए!
शराबी दूल्हा चाहिए!
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(कहानी)
"आप शराब तो नहीं पीते?" रामधारी जी ने वर हितेन्द्र से पूंछ ही लिया।
हितेन्द्र के माता-पिता भी साथ ही थे। उन्हें पूर्ण भरोसे था था कि वे हितेन्द्र को जो समझा बुझाकर लाये है हितेन्द्र वैसा ही कहेगा।
"हां अंकल! मैं शराब पीता हूं।" हितेन्द्र ने जवाब दिया।
अंदर के कमरे में सहम के बैठी हिमानी के कानों में भी हितेन्द्र की यह अभिस्वीकृति जा पहूंची।
"लेकिन बेटा! हम पहले ही कह चूके है कि हिमानी की शादी उसी के साथ होगी जो पीता-खाता न हो!" रामधारी जी ने अपनी बेटी से शादी करने की अनिवार्य शर्त दोहरा दी।
"लेकिन अंकल जी, आपने पहले यह भी कहा था कि आप अपनी बेटी हिमानी की शादी उसी से करेंगे जो खाते-पीते घर से होगा और अब कह रहे कि हिमानी उसी संग ब्याही जायेगी जो पीता-खाता न हो! ये दौ तरह का रवैया क्यों?" हितेन्द्र ने कहा।
सभी एक दूसरे का मूंह तांक रहे थे।
"देखिए! मेरी बहन की शादी किसी शराबी से नहीं होगी।" हिमानी का भाई शनि बीच में कूद पड़ा।
"मगर क्यों?" हितेन्द्र का अगला प्रश्न था।
"क्योंकी शराब और शराबी दोनों अच्छे नहीं होते।" अब हिमानी की मां सविता अपनी बेटी के पक्ष में बोली।
"ये आप लोग कैसे कह सकते है कि शराब पीने वाला व्यक्ति बूरा होता है और नहीं पीने वाला अच्छा?" हितेन्द्र ने पूँछा।
कोई कुछ नहीं बोल पाया।
"रामधारी अंकल! मुझे पता है कि आप भी शराब पीते है तो क्या आप भी बूरे है।" हितेन्द्र ने सभी को चौंका दिया।
"ये हिमानी के भाई शनि को मैंने खुद शराब पीते हुये बार में देखा है तो क्या आपके घर का बेटा शनि भी बूरा आदमी है?" हितेन्द्र आगे बोला।
अवतार और शांता चुप थे। उन्हें अपने बेटे हितेन्द्र के तर्क अब अच्छे लग रहे थे।
"मुझे घर पर मम्मी-पापा ने समझा दिया था कि मैं यहा आकर आप लोगों से झूठ कह दूं कि मैं शराब नहीं पीता। लेकिन झूठ बोलकर मैं आप लोगों को धोखा नहीं देना चाहता।"
"मैंने हर दिन शराब नहीं पीता। और मैंने शराब पीकर कभी हंगामा नहीं किया। मैंने कभी इतनी ज्यादा शराब नहीं पी है कि घरवाले मुझे बाहर गटर से उठाकर घर लाये हो।"
"मैं शराब इसलिए नहीं पीता की मुझे कोई गम है या बहुत खुशी है। मुझे अच्छा लगता है इसलिए शराब पीता हूं जिस दिन शराब पीना मुझे बूरा लगेगा मै शराब छोड़ दूंगा। मैं शराब लिमिड में पीता हूं और इसकी जानकारी मेरे घरवालों को रहती है की मैं कहां और किसके साथ बैठकर शराब पी रहा हूं।" हितेन्द्र ने बताया।
हिमानी को हितेन्द्र की सत्यनिष्ठा ने प्रभावित किया। शराब में के नशे में तो अक्सर सच बाहर आ जाता है मगर आज पहली बार बिना शराब पीकर कोई सच बोल रहा था।
"पापा मैं भी कुछ कहना चाहती हूं।" हिमानी बाहर बैठक हाॅल में आ गयी।
अब हिमानी को आश्चर्य से देखा जा रहा था।
"दरअसल काॅलेज टाइम में मैंने भी शराब और सिगरेट पी है।" हिमानी ने एक नया रहस्योद्घाटन कर दिया।
सभी हदप्रद थे और मौन भी।
"हितेन्द्र की सत्यनिष्ठा और सच स्वीकारने की हिम्मत देखकर मुझे भी यह सच स्वीकारने की हिम्मत आयी है। मैं हितेन्द्र से शादी करने के लिए तैयार हूं अगर हितेन्द्र भी राज़ी हो तो!" हिमानी ने आगे बताया।
हितेन्द्र ने सहमति दे दी। सबकुछ जानकर वर वधु के साथ-साथ परिवार जन भी स्वयं को बहुत हल्का अनुभव कर रहे थे। हिमानी और हितेन्द्र की शादी प्रेम पुर्वक सम्पन्न हो गई।
समाप्त
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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।
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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)
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बढ़िया कहानी -👆-माँ दादी नानी के रोले कर सकती हूँ।
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