बूढ़ी-कहानी

       बूढ़ी-कहानी

        सुरभि का ढलता यौवन उसके पति चिराग को ना गंवार गुजरता। अक्सर दोनों में इस विषय पर बहस छिड़ जाती। जवानी की दहलीज़ तक पहूंच चूकी उन दोनों की इकलौती बेटी रीतू को यह सब कभी अच्छा नहीं लगा। उसने अपने स्तर पर अपने माता-पिता को समझाया किन्तु दोनों अपनी-अपनी जिद छोड़ने को तैयार नहीं थे। चिराग बाॅडी बिल्डर था और सीधी-साधी आयु में बूढ़ी होती सुरभि उसका जोरदार मज़ाक उड़ा रही थी. सुरभि ने अपने आपको फीट रखने की भरपूर कोशिशें की किन्तु वह स्वयं को चिराग के बगल में खड़े होने योग्य कभी नहीं बना सकी। फलतः रोज-रोज की लड़ाईयों से तंग आकर सुरभि और चिराग ने परस्पर तलाक ले लिया। चिराग ने जल्द ही अपनी जिम की महिला स्टूडेंट अंकिता जो बाद में जिम ट्रेनर बन गयी, कोर्ट मैरिज़ कर ली। दोनों की परस्पर जबरदस्त बाॅन्डींग थी। रीतू ने अंकिता को अपनी दूसरी मां स्वीकरने में देर न की। अंकिता और रीतू में खूब पटती। रीतू के कॅरियर पर सुरभि से अधिक ध्यान अंकिता का था। यही सोचकर सुरभि, रीतू को अंकिता के पास आने-जाने से नहीं रोकती। सुरभि ने जब प्रेग्नेंट होने की बात स्वीकारी तब सभी के होश उड़ गये।

'इस बुढ़ी को अचानक ये क्या सूजी?' चिराग गुस्से में सोच रहा था। वह सुरभि के घर दौड़ा।

"जब हमें मिले एक साल से अधिक हो गये, तब यह बच्चा कहां से आया?" चिराग दहाड़ रहा था।

"मैंने प्रिकाॅसंन लेना बहुत पहले ही बंद कर दिया था!" सुरभि ने बताया।

"मगर क्यों?" चिराग ने पुछा।

"ये तुम अपने आप से पूछो....!" सुरभि बोली।

चिराग मौन खड़ा था। रीतू और अंकिता भी वहां आ पहूंचे।

"तुम अंकिता के साथ अपनी गृहस्थी में खुश हो। रीतू भी शादी कर के अपने ससूराल चली जायेगी। तब मेरा क्या होगा?" सुरभि बोली।

सुरभि की बातों में स्व भविष्य की चिंता साफ दिखाई दे रही थी। चाहकर भी कोई कुछ नहीं कर सकता था। जल्द ही चिराग और अंकिता ने सुरभि के गर्भ वाली बात भुला डाली। रीतू की समझदारी देखते ही बनती थी। वह अपनी मां का पुरा ख़्याल रखने लगी थी। चिराग भी जब तब भुले-भटके सुरभि का हाल पूंछने चला आता। अंकिता को इस बात से कोई ऐतराज न था। वह स्वयं प्रेम में ठुकराई हुई थी। और ऐसे अधबीच समय में चिराग ने उसे स्वीकार कर बड़प्पन दिखाया था। यही सोचकर अंकीता, चिराग और उसके परिवार को अपना ही समझती थी। सुरभि ने शुभम को जन्म दिया। चहूं ओर खुशियाँ बिखर गयी। चिराग के पैर जमीं पर नहीं थे। अंकिता भी चिराग की प्रसन्नता से प्रसन्न थी। रीतू ने गौर किया कि कुछ दिनों से अंकिता बूझी-बुझी सी है। 'चिराग पुनः सुरभि के पास चला गया तब! शायद इस स्थिति से परेशान है!' ऐसा रीतू कयास लगा रही थी। चिराग और सुरभि को यही लगा। सबने मिलकर अंकिता से उदास रहने का कारण पुछा। बहूत पूछने पर उसने बताया कि आयुष पुनः उसकी जिन्दगी में आना चाहता है। यह आयुष वहीं था जिसने कभी प्यार में अंकिता को धोखा दिया था। वह अपनी गलती पर शर्मिन्दा था और सबकुछ भुलाकर अंकिता से शादी करना चाहता था। अंकिता के हृदय के किसी कोने में आयुष अब भी कहीं था, यह बात चिराग और सुरभि जान चुके थे। रीतू ने अंकिता को ढाढस बंधाया और कहा उसके हर निर्णय पर वह और उसका परिवार अंकिता के साथ है। चिराग ने अंकिता को आयुष के पास पुनः लौट जाने हेतु मना लिया क्योंकी वह भी अपनी भूल सुधारते हुये सुरभि के पास लौट चूका था।


समाप्त

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प्रमाणीकरण- कहानी मौलिक रचना होकर अप्रकाशित तथा अप्रसारित है। कहानी प्रकाशनार्थ लेखक की सहर्ष सहमति है।


सर्वाधिकार सुरक्षित

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जितेन्द्र शिवहरे (लेखक/कवि)

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