हास्य लघु नाटिका

 सात जन्मों का साथ


पत्नि के अमानवीय व्यवहार से दुःखी पति को देख ईश्वर भी द्रवित हो गये। पूछा- 'वत्स!  तुम्हारे सभी दुःख दूर होने वाले है। वर मांगो।'

पति बोला- 'प्रभू अगले जन्म में भी मुझे यही पत्नी मिलें।'

ईश्वर विचारणीय मुद्रा में आ गये।

'ये कैसा प्रेम वत्स? जिसने तुम्हारा सम्पूर्ण जीवन नर्क समान बना दिया उसे पुनः पत्नि के रूप में वरण करना चाहते हो? ऐसा क्यों?' भगवान ने पूछा।

पुरुष पति बोला- 'भगवन! इस जन्म में जो दुःख, संताप तथा त्रासदी मैंने सही है, मैं नहीं चाहता कि कोई दूसरा पुरूष वह सहे। क्योंकी मुझे उस दर्द, उस पीड़ा का अनुभव है। इसलिए मेरी इच्छा है कि यदि अगले जन्म में मुझे परूष की योनि मिले और वर्तमान पत्नी को स्त्री की, तब मैं उससे ही पुनः विवाह करना चाहूंगा ताकि अन्य पुरुष इस महान दुःख का भागी न बने।'

ईश्वर बोले-'धन्य हो पुत्र! हम तुम्हें अगले जन्म ही नहीं बल्कि सात जन्मों तक इसी पत्नी के पति बनने का वरदान देते है। तथास्तु।'

'किन्तु भगवन! मैंने मात्र अगले जन्म के लिए वर्तमान पत्नी की मांग की थी। वह भी यह सोचकर की आप मेरी परोपकारी भावना से प्रसन्न होकर इस जन्म से लेकर अगले जन्मों-जन्मों तक इस पत्नी से छुटकारा दिला देंगे। लेकिन आपने तो मेरे अगले सात जन्म बिगाड़ने का वरदान दे डाला।' पति गुस्से में बोला।

'क्योंकी हम भगवान नहीं है।' ईश्वर बोले।

'तो कौन है आप?' पति ने पुछा।

'मैं ईश्वर के भेष में तुम्हारे इस जन्म और अगले सात जन्मों में होने वाली पत्नी सुजाता हूं।" ईश्वर रूपी पत्नी सुजाता बोली।

'क्याsssss?' पति का मुंह खुला की खुला रह गया।

आगे की कहानी आप सभी को पता है...।


जितेन्द्र शिवहरे

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