ब्रेकअप-3
ब्रेकअप-3 (जितेन्द्र शिवहरे)
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*"वि* नोद! समझने की कोशिश करो! अब हमारे रास्ते अलग-अलग है। हम एक नहीं हो सकते।" मनीषा बोली। उसने अपना तयशुदा निश्चय विनोद को कह सुनाया।
"मेरा तो रास्ता भी तुम हो और मंजिल भी।" विनोद आश्वस्त था।
"अब इन इमोसनल डायलाॅग्स का कोई मतलब नहीं विनोद। मैं फैसला कर चूकी हूं।" मनीषा अटिग थी।
"आखिर मेरे प्यार में कहाँ कभी रह गयी मनु?" विनोद ने पूँछा।
"प्यार के भरोसे जीवन नहीं काटा जा सकता विनोद।" मनीषा ने आगे कहा। वह उठकर जाने लगी मगर विनोद ने उसका हाथ पकड़ लिया।
"तुम्हें आज इस ब्रेकअप की वजह बतानी होगी मनु।" विनोद गुस्से में आ गया था।
"तुम वजह जानते हो।" मनीषा बोली।
"कहीं अमित तो नहीं?" विनोद ने पूँछा।
मनीषा चूप थी। उसकी नज़रें झुक गयी।
"ओहहह! तो तुम अमित के पास जाना चाहती हो!" विनोद तेश में आकार बोला।
"अमित और मैं यही चाहते है विनोद!" शांत मनीषा बोली।
"और हमारा प्रेम..!" विनोद चिढ़ते हुये बोला।
"प्रेम..प्रेम तो अमर है विनोद...अमिट है...और वह हमेशा रहेगा।" मनीषा बोली।
विनोद धराशायी हो चूका था। उसके पास कुछ नहीं था जिसका हवाला देकर वह मनीषा को रोक सके।
"विनोद! बी प्रेक्टीकल! तुम अपने आपको देखो और अमित को देखो। दोनों में कितना अंतर है।" मनीषा ने समझाया।
"हां! अमित के पास बहुत पैसे है। वह बहुत अमीर है?" विनोद बोला।
"सच कहा तुमने !" मनीषा ने बोलना शुरू किया।
"इतना ही नहीं अमित इंटेलिजेंट है, केयरिंग है और सबसे बड़ी है कि वह मुझे पसंद करता है।" वह आगे बोली।
"और तुम?" विनोद ने पूँछा।
"मैं भी!" मनीषा ने कहा।
"फिर तुमने मुझसे जो किया था वह क्या था?" विनोद ने पूँछा।
"पहला प्यार सक्सेस कहाँ होता है विनोद?" मनीषा बोली।
"तो अमित तुम्हारा दूसरा प्यार है?" विनोद बोला।
"कह सकते हो!" मनीषा ने स्वीकृति दी।
इस विरोधाभास से भरे शांत माहौल को सड़क से गुजर रही दूल्हे की बारात ने भंग किया। तेज गति से बजाएं जा रहे नृत्य गीत की ध्वनि के बीच विनोद अब भी मनीषा को आशा भरी नजरों से एक टक निहारें जा रहा था।
"अच्छा मुझे एक बात बताओ विनोद! तुम्हारी बहन अनुराधा के लिए वरूण का रिश्ता क्यों ठुकराया तुम्हारे घर के लोगों ने?" मनीषा ने पूंछा।
विनोद चूप था। मनीषा ने उसे हाथ पकड़कर बैंच पर बैठाया।
"वरूण अच्छा लड़का है इसमें कोई शक नहीं था लेकिन वह तुम्हारी तरह स्टेब्लिश नहीं है। उसकी न तो कोई परमानेन्ट जाॅब है और न ही उसका अपना खुदका कोई बिजनेस है।"
"और शायद इसीलिए तुम्हारे घरवालों ने वरूण को एक्सेप्ट नहीं किया जबकि वरूण और अनुराधा आपस में कितना प्यार करते थे।" मनीषा ने आगे कहा।
"या तो तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं है या फिर अपने आप पर।" विनोद बोला।
"नहीं विनोद। मुझे पता है तुम बहुत ही हार्ड वर्कर हो। तुम जी तोड़ मेहनत कर मुझे खुश रखने का पूरा प्रयास करोगे, आइ नो वेरी वेल। लेकिन तुम कितना भी मजदूर की काम कर लो और मैं कितना भी कामवाली बाई बनकर घर संभाल लूं मगर उसके बाद भी हम दोनों वह लाइफ नहीं जी पायेंगे जिसे हम इमेजिन करते आये है।" मनीषा ने आगे कहा।
"तुम्हारे कहने का मतलब क्या है मनु! क्या पैसा आ जाने से हमारे सपने पूरे हो जायेंगे? क्या धन-दौलत ही तुम्हारी खुशी है?"
विनोद बोला।
"मैं जानती हूं विनोद कि पैसा सबकुछ नहीं होता। लेकिन बहुत कुछ होता है। जो लोग अच्छे रिश्ते छोड़कर अपने पसंद का रिश्ता चुनकर लव मैरिज करते है उन सभी का हश्र सबने देखा है।" मनीषा बोली।
"तब प्यार करना छोड़ दे क्या?" विनोद ने पूँछा।
"प्यार साला करता कौन है? प्यार तो बस हो जाता है जैसा मुझे तुमसे और तुम्हें मुझसे हो गया?" मनीषा ने कहा।
"तुम तो ऐसे कह रही हो जेसे हमने कोई गुनाह, कोई पाप किया है।" विनोद ने आश्चर्य में आकर कहा।
"क्या सही है और क्या गल़त! इस चक्कर में हम न ही पढ़े तो बेहतर होगा विनोद।" मनीषा बोली।
"मतलब?" विनोद ने पूँछा।
"मतलब ये कि प्यार कईयों की जिन्दगी में हलचल पैदा कर देता है। लड़ाई-झगड़े, मारपीट, कोर्ट कचहरी क्या कुछ नहीं देखना पड़ता प्यार में!" मनीषा ने समझाया।
"मगर ये सब हमारे साथ तो नहीं हुआ। हमारे पैरेन्टस भी इस रिश्ते से खूश है।" विनोद बोला।
"उनकी खुशी हमारी खुशी में है। उन्हें पता है कि इंकार किया तो हम दोनों घर से भागकर शादी कर लेंगे।" मनीषा बोली।
"अच्छा आईडिया है मनु! चलो भाग चलते है यहाँ से। दूर कहीं अपनी छोटी सी दुनियां बसायेंगे।" विनोद ने मनीषा को कंधे से पकड़कर कहा।
"बच्चों जैसी बातें मत करो विनोद! हम दोनों मैच्योर है। इस तरह का कदम नहीं उठा सकते।" मनीषा खड़ी हो गयी।
"तो तुम्हें पाने के लिए मैं क्या करूं मनु? तुम ही बताओ?" विनोद गिड़गिड़ाया।
"अब ये पाॅसिबल नहीं विनोद! और मैं तो तुम्हें भी यही कहूंगी की जब तक अपने पैरों पर खड़े न हो जाओ, शादी मत करना..!" मनीषा बोली।
"चलती हूं। अब हम कभी नहीं मिलेंगे। यही हम दोनों के लिए सही होगा।" मनीषा जा चूकी थी।
स्तब्ध विनोद अब भी वहीं खड़ा था। अचानक उसकी पेन्ट की जेब में रखे मोबाइल की बेल बज उठी। मोबाइल स्क्रीन पर श्रृति का नाम देखते ही वह खिल उठा।
"श्रुति! तुम दस मिनीट वेट करो मैं अभी वहां आ रहा हूं। मूवी के बाद लांग ड्राइव पर चलेंगे।" विनोद मुस्कुराया।
"हां हां आ रहा हूं जान। आई लव यूं टू।" खिलखिलाता हुआ विनोद अपनी बाइक पर जा बैठा। अगले ही पल बाइक पर बैठकर विनोद वहां से रफूचक्कर हो गया।
समाप्त
लेखक-
जितेन्द्र शिवहरे मुसाखेड़ी इंदौर
8770870151
7746842533
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