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लव काॅलेज (दी स्टडी ऑफ लव)

 लव काॅलेज (दी स्टडी ऑफ लव)                   (कहानी)      ✍️जितेन्द्र शिवहरे         "कोई मुझे ठूकरा देगा, इस बात का अंदाजा मुझे कभी नहीं था पूरब!" दिशा के आंसू बहना जारी थे। पूरब को जैसे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह शांत खड़ा होकर इस रिश्तें को खत्म होने का तमाशा देख रहा था। दिशा ने अपने प्यार को बचाने की मिन्नतें तक कर डाली। मगर पूरब टस से मस नहीं हुआ। वह हर कीमत पर दिशा से अलग होना चाहता था। "दिशा! ये रही तुम्हारी अंगूठी। अब हम कभी नहीं मिलेंगे।" पूरब का ये आखिरी वाक्य था। हाथों में उस प्यार की निशानी को लिये दिशा बस रोयें जा रही थी। उसका दिल टूटकर चकनाचूर हो चूका था।  मोनी किसी तरह समझा-बूझाकर उसे घर तक ले आयी। दिशा को धोखा देने वाला पूरब आज नफरत भरी नज़रों से देखा जा रहा था। आखिर उसने ऐसा क्यों किया? सभी के दिमाग़ में बस यही सवाल गूंज रहा था। जबकी दोनों एक-दूसरे से बहुत प्यार करते थे और सगाई के बाद शादी भी करने वाले थे। "जब कोई सच्चा प्यार करने वाला तुम्हें छोड़कर जायेगा, तब तुम्हें म...

Pyar Tune Kya Kiya

 Pyar Tune Kya Kiya     (कहानी) ---------------------------------     -----------       ✍️Jitendra shivhare         ----------------------------------         प्रो. आंचल को किसी ने बताया कि राजेश ने इस काॅलेज को छोड़कर किसी दूसरे काॅलेज में एडमिशन ले लिया है। उन्हें भी इस बात का दुःख था, मगर यही बेहतर रास्ता था। वैसे ही दोनों के इस बे-मेल रिश्तों की पहले ही बहूत बदनामी हो चूकी थी। लेकिन जब राजेश कुछ दिनों से दिखाई नहीं दिया तो आंचल बैचेन हो उठी। वह आंचल का फोन भी नहीं उठा रहा था।  एक दिन अचानक राजेश का काॅल आया। वह आंचल से बोला, "मैं चाहता हूं कि हम पिछला सबकुछ भूल जाएं।" आंचल चूप थी। वह बोली, "मुझे खुशी है कि तुम सही सलामत हो। छवि को अपना लो, वह तुमसे बहूत प्यार करती है!"  राजेश कुछ नहीं बोला। उसने फोन रख दिया। राजेश को शांत करने के लिए आंचल को क्या कुछ नहीं करना पड़ा। वह आंचल का स्टूडेंट था और अपनी ही प्रोफेसर से प्यार कर बैठा था। आंचल भी खुद को रोक नहीं सकी थी। एक खुबसूरत नौजावन क...

धोखा (कहानी)

 धोखा (कहानी) ✍️जितेन्द्र शिवहरे         राॅबर्ट कल रात के सपने के बारे में बता रहा था। उसने कहा कि सभी एक हो गये थे। कोई फंसाद नहीं, कोई तनाव नहीं था। लोग मंदिर और मस्जिद का सम्मान करना सीख गये थे। धार्मिक स्थलों पर कुछ भी फेंका या तोड़ा जाता तो भी आक्रोशित लोग ढूंढें से नहीं मिल रहे थे। जैसे उन लोगों को राजनीति की असली पहचान हो चूकी थी। यहां तक की वे अपनी संतान को झंडा और डंडा छुडवाकार जबरन पढ़ाई-लिखाई में ढगेल रहे थे। विक्की भी हैरत में था। अगर राॅबर्ट का ये सपना सच हो गया तो उन जैसे हजारों बेरोजगारों का क्या होगा?  राबर्ट ने कहा, "पर तुझे किस बात की चिंता? तु तो करोड़पति का इकलौता जवाई बनने वाला है!" दोनों हंस दिए। "लेकिन राॅबर्ट! तु भी चिंता मत कर। जब तक लोग बेवकूफों की तरह बिना जांच-पड़ताल किये अफवाहों पर यकिन करते रहेंगे तब तक तेरा ये सपना कभी सच नहीं होगा।" विक्की ने कहा। "सच कहता है दोस्त! यहाँ बेवकूफों की कमी नहीं है एक ढूंढो, हजार मिलेंगे और जब तक ये बेवकूफ लोग जिंदा है हम जैसे होशियार लोग  पलते रहेंगे।" राॅबर्ट ने कहा। दोंनो सिगरेट फूंक...

मेरा साथ दोगे..?

  मेरा साथ दोगे..?   (कहानी) ✍️जितेन्द्र शिवहरे                सुमन के रिश्तें की बात ने जब जोर पकड़ा तब नितेश को आगे आना ही पढ़ा। नितेश के परिवार में सुमन सभी को पसंद थी मगर सुमन के घरवाले नितशे को लेकर असमंजस्य में थे। क्योंकी नितेश के संबंध में कई बार चर्चा करने पर भी सुमन का कोई विशेष झुकाव नितेश के प्रति कभी दिखाई नहीं दिया। सुमन को पता था कि आज नहीं तो कल नितेश उसका हाथ मांगने जरूर आयेगा। नितेश ने कभी कहा नहीं लेकिन सुमन के लिए उसके दिल में कुछ तो था जिसे सुमन काॅलेज के समय से नोट करती आ रही थी। आज वह सीए बन चूकी थी और नितेश एक मेडीकल फर्म में एकाउंटेंट का काम संभाल रहा था।  एक दिन अचानक सुमन की एक विशेष मांग ने घर में लगभग सभी का चौंका दिया। वह चाहती थी कि नितेश शुरू से ही अपने मां-बाप से अलग होकर शादी के बाद केवल उसके साथ रहे ताकी उन दोनों के भावि गृहस्थ जीवन में कोई परेशानी उत्पन्न ही न हो।  नितेश का मौन अवसरवादी था किन्तु पिता की इस संबंध में सहमति जानकर उसके हौंसले बुलंद हो गये। नितेश की मां कभी नहीं चाहती थी कि...

शाॅर्ट लिस्ट of लाइफ पार्टनर

 शाॅर्ट लिस्ट of लाइफ पार्टनर ---------------------------------                         (कहानी)                                                  ✍️जितेन्द्र शिवहरे                                                 -----------------------            शाम की चाय में आज पहले जैसा सुकून नहीं था। बेचैनी और थोड़ी-बहूत घबराहट मिष्ठी के चेहरे पर कब्जा जमा चुकी थी। किसे चुने और किसे रिजेक्ट करें? आज यह सवाल उसे बहुत परेशान कर रहा था। बढ़ती उम्र और फैमेली के दबाव में आकर मिष्ठी ने चार युवकों के प्रपोजल्स के बाद वेद और समर्थ को शार्ट लिस्ट किया था। अब इन्हीं दो युवकों में फायनल जंग होनी थी। असिस्टेंट मैनेजिंग डायरेक्टर मिष्टी के लिए कोई काम कभी मुश्किल नहीं था। मगर ख...

देश की मिट्टी और तुम (कहानी)

 --------------------------       ---------  देश की मिट्टी और तुम         (कहानी)  --------------------------        --------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे     ========== "गरीब और अमीर को मिलाने की कोशिशें बहुत पहले से होती आ रही है मगर नतीजों ने कभी ज्यादा खुश होने नहीं दिया।" अनुष्का बोली। "कोशिशें जारी है, क्या ये कम खुशी की बात है?" अनुराग बोला। "लेकिन हम दोनों के विषय में हंसी या खुश होने वाली कोई बात नज़र नहीं आती!" अनुष्का ने कहा। "क्यों?" अनुराग ने पूंछा। "आप मुझे देखीये! मैं हाईली एजुकेटेड, फोरेन रिटर्न और माॅर्डन ज़माने की लड़की हूं और आप एक मिडिल क्लास! उस पर किसान परिवार से; खेत, चारा और गोबर ही आपकी पहचान है, जबकी मेरा स्टेटस आपसे से कहीं ज्यादा ऊंचा है जिसके बारे में आप कभी सोच भी नहीं सकते।" अनुष्का ने आगे कहा। "लेकिन आपके पिताजी ने यही सोचा है। उन्होंने खुद मुझे तुमसे शादी करने का प्रस्ताव दिया है।" अनुराग ने स्पष्ट किया। "आई नो! डैडी और आप एक ही गांव से है लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं की मैं आ...

तन रंग लो...मन रंग लो..!

 तन रंग लो...मन रंग लो...! (कहानी)   ✍️जितेन्द्र शिवहरे  ----------------------------  ----------    ---------------------                                       (होली विशेष) "होली खेलने की बात तो ठीक थी, मगर विश्वास हमारी अंजू को अपने साथ शहर का रंगोत्सव दिखाना चाहता है।" कृति की बातों में अपनी जवान बेटी के लिए चिंता साफ झलक रही थी। "मुझे भी यह अजीब तरह की मांग समझ में नहीं आई।" महेश महाजन भी अपनी पत्नि के साथ थे। "न बाबा! शहर भर में गुंडे-बदमाश आज के दिन हुड़दंग मस्ती करते है। कुछ ऊंच-नीच हो गयी तो?" कृति हड़बड़ाहट में बोल गयी। "लेकिन पापा! ड्राय डे पर लोगों को शराब कहाँ से मिल जाती है।" छोटी सुरभि बीच में कूद पड़ी। "पीने वालों अपनी खुराक ढूंढ ही लेते है छुटकी!" महेश महाजन बोले। "आप तो विश्वास को फोन कर के मना कर दीजिए। उनसे कहिए होली खेलना है तो यहाँ आकर अंजू को रंग लगा सकता है लेकिन हम अंजू को धुलेड़ी पर बाहर नहीं जाने देंगे।" कृति बोली। "एक बार फिर सोच लो...

नौलखा हार - कहानी

 नौलखा हार   (कहानी)        ✍️जितेन्द्र शिवहरे ========   "सुनो जी! अम्मी जान कुछ मांगने आये तो मुंह खोल कर सब कुछ लुटा मत देना।" नाज़िया तेवर चढ़ाते हुये बोली। "तुम फिक्र मत करों। अम्मी ज्यादा कुछ नहीं मांगेगी।" नावेद बोला। वह अपने लेपटाॅप में बिजी था। "पहले ही अपनी बहनों को घर का सारा सोना चढ़ा आये। उस पर बहनोईयों को लाखों का नकद खैरात में दे  दिया। और ये अब कब्र में पैर लटकाये बैठी अम्मीजान! कहीं मेरा नौलखा हार न मांग ले।" नाज़िया चिढ़ते हुये बोली। नावेद आदतन चुप था। "अरे! पुश्तैनी जेवरात बैंक से क्या छुड़ाकर लाएं! सभी आ गये अपना-अपना हक़ मांगने।" नाज़िया अब भी चीख रही थी। "नाजिया! पांच साल के बाद तुम अपनी सास से मिल रही हो। कुछ तो नरमी लाओ लिहाज में।" नावेद ने कहा। "हूंअंssss! नरम लाएं मेरी जूती। मैं अब चुप नहीं रहूंगी।"  तब ही दरवाजे की घंटी बज उठी। ये अम्मीजान ही थी। आंखों पर मोटा चश्मा पहनें! जिस पर सफेद बिखरे बालों की लटे झूम रही थी। दुंआ सलाम के बाद आखिर वो घड़ी आ गयी जिसके कारण नाज़िया की सांसे ऊपर-नीचे हो रही थी। नावेद ...

ममास् ब्वाॅय (कहानी)

 ममास् ब्वाॅय (कहानी)            ✍️जितेन्द्र शिवहरे ------------------------------           ------------------------- "शादी के बाद के आप मुझे मां से अलग रहने को तो नहीं कहेंगी?" अरविंद ने झिझकते हुए पूंछा। "ये कैसा सवाल है?" विद्या ने पूंछा। दोनों की शादी से पहले की यह पहली मुलाकात थी। "सवाल सीधा है।" अरविंद बोला। "लेकिन इस मौके पर आप ये सब क्या पूंछ रहे है?" विद्या अचरज में थी। "मैं अपनी मां से बहुत प्यार करता हूं विद्या।"  "वो तो मैं भी अपनी माॅम से करती हूं।" "फर्क है।" अरविंद बोला। "कैसा फर्क?" विद्या ने पूंछा। "आप अपनी माॅम से प्यार करती है और मैं अपनी मां से प्यार करता हूं।" अरविंद ने बताया। "क्या बकवास है। दोनों एक ही बात है।" "समझने की कोशिश करें।"  "इसमें नासमझने वाली कौनसी बात है?" विद्या बोली। "मैं आपको समझा सकता हूं।" अरविंद बोला। "लेकिन आपको ऐसा क्यों लगता है कि मैं आपको आपकी मां से दूर कर दूंगी?" विद्या ने पूंछा। "क्योंकि यही हो...

इतिहास (लघुकथा)

 *इतिहास (लघुकथा)*       *ड* री सहमी करूणा कोचिंग क्लास में दाखिल हुई। सभी स्टूडेंट्स की नज़रें उसी पर जमी थी। हाल ही में करूणा के पिता का लंबी बिमारी के बाद निधन हो गया था। करूणा की मां दर्जी थी और उसका छोटा भाई अरूण प्राथमिक कक्षा में पढ़ रहा था। बोर्ड परिक्षाएं नजदीक थी अतः करूणा की माली हालत देखकर मास्टर जी ने करूणा की ट्यूशन फीस माफ करने का निश्चिय किया था। "सर! ये लिजीए आपकी ट्यूशन फीस।" करूणा रूपये मास्टर जी को देते हुये बोली। "नहीं बेटी! अब से तुम यहां नि:शुल्क पढ़ोगी।" मास्टर जी बोलें। "ये मेरी खुद की कमाई के पैसे है सर!" करूणा बोली। मास्टर जी कुछ बोल पाते इससे पहले ही करूणा ने आगे कहा। "नि:शुल्क चीजों का हम मूल्य नहीं समझ पाते। मुझे फ्री में पढ़ाई नहीं करनी।" करूणा ने रूपये मास्टर जी के हाथ में थमा दिये और वह अपनी सीट पर जाकर बैठ गयी।  "ऐसे स्टूडेंट ही इतिहास लिखा करते है।" बरबस ही मास्टर जी के मुंह निकला। रूपये जेब में रखकर मास्टर जी अध्यापन में व्यस्त हो गये। समाप्त --------- जितेन्द्र शिवहरे मुसाखेड़ी इंदौर 8770870151 77468...

ब्रेकअप-3

  ब्रेकअप-3                     (जितेन्द्र शिवहरे) -----------                      -------------------           *"वि* नोद! समझने की कोशिश करो! अब हमारे रास्ते अलग-अलग है। हम एक नहीं हो सकते।" मनीषा बोली। उसने अपना तयशुदा निश्चय विनोद को कह सुनाया। "मेरा तो रास्ता भी तुम हो और मंजिल भी।" विनोद आश्वस्त था। "अब इन इमोसनल डायलाॅग्स  का कोई मतलब नहीं विनोद। मैं फैसला कर चूकी हूं।" मनीषा अटिग थी। "आखिर मेरे प्यार में कहाँ कभी रह गयी मनु?" विनोद ने पूँछा। "प्यार के भरोसे जीवन नहीं काटा जा सकता विनोद।" मनीषा ने आगे कहा। वह उठकर जाने लगी मगर विनोद ने उसका हाथ पकड़ लिया। "तुम्हें आज इस ब्रेकअप की वजह बतानी होगी मनु।" विनोद गुस्से में आ गया था। "तुम वजह जानते हो।" मनीषा बोली। "कहीं अमित तो नहीं?" विनोद ने पूँछा। मनीषा चूप थी।  उसकी नज़रें झुक गयी। "ओहहह! तो तुम अमित के पास जाना चाहती हो!" विनोद तेश में आकार बोला। "अमित और मैं यही चाहते है विनोद!" श...

महिला सीट

 महिला सीट  (कहानी) - जितेन्द्र शिवहरे             *ल* ड़की देखने-दिखाने की तैयारी पूरी हो चूकी थी। सभी जूही की प्रतिक्षा में पलक पावड़े बिछाये बैठे थे। पहली बार में समपर्ण सभी को अच्छा लगा था।  "अब बस जूही हां कर दे तो इन दोनों की शादी धूमधाम से कर दें।" सुलोचना बोली। हर मां की तरह सुलोचना भी अपनी बेटी की शादी के लिए चिंतित थी।  "जूही की हां के साथ हमें उसकी न का भी सम्मान करना चाहिये।" शिवराम बोले।  "आपके इसी समर्थन के कारण सुलोचना अब तक कुंवारी बैठी है। उसकी हमउम्र सहेलियां बाल-बच्चों वाली हो गयीं।" सुलोचना चिढ़ते हुये बोली। शिवराम के पास पत्नी सुनोचना की इस बात का उत्तर मौन था। हेंडसम समपर्ण की मुस्कान वहां सभी को आकर्षित कर रही थी।  समर्पण सरकारी नौकरी में था। इसलिए लड़की वाले कोई रिस्क नहीं लेना चाहते थे। जूही को पहली बार में देखते ही समर्पण अपना दिल हार बैठे, मां सुलोचना की इसी योजना पर जूही काम रही थी। 'जूही का मेकअप पुरा हो चूका है और वह पार्लर से घर आने के लिए निकल चूकी है।' किसी ने आकर सभा में ये संदेश कह सुनाया। समप...

एटीएम- कहानी

 एटीएम सुधा के लिए उसका ससुराल आज पहले पहल वाली अनुभूति दे रहा था। जब वह शादी के बाद पहली बार अपने ससुराल आई थी। यहां उसे सिर्फ साड़ी पहनना होती थी। घर का कामकाज निपटाने के बाद ही वह अपने ऑफिस जा सकती थी। लौटने पर भी उसे मजदूर की तरह घरेलू कामों में आधी रात होने तक भीड़ना पड़ता था। सभी की जरूरते पूरी करने के बाद यदि समय बचता तब ही वह स्वयं के लिए सोच सकती थी। फिर वह पल भी आया जब सुधा ने अनिरूद्ध को अपना एटीएम कार्ड सौंप दिया। घर के घरेलु और बाहरी खर्चों के लिए सुधा की यह मदद ससुराल वालों को बहुत पसंद आई। सास हेमा ने सुधा को बहू से कब बेटी मान लिया पता ही नहीं चला। ससूर सुखदेव ने सुधा को सब्जी भाजी और अन्य किराना सामान लाने के भार से जैसे मुक्त ही कर दिया था। अनिरूद्ध अपने टीफीन के साथ सुधा का भी टीफीन पैक कर दिया करता। दोनों बच्चों के जन्मों के बाद भी सुधा घर में किसी महारानी से कम नहीं थी। ऑफिस से लौटते ही गरमा गर्म चाय और पकोड़े का नाश्ता सुधा के लिए अनिवार्य था। यह हेमा की मीठी जिद थी जिसे सुधा को स्वीकारने के आलावा कोई अन्य रास्ता नहीं होता था। अनिरूद्ध की स्वयं के लिए परवाह दे...

ड्रीम ब्वाॅय-कहानी (हैप्पी दीवाली)

 ड्रीम ब्वाॅय-कहानी  (हैप्पी दीवाली) अनुष्का की आँखे अनुराग को देखकर फटी की फटी रही गयी। आज इतने सालों बाद अपने पूर्व प्रेमी को यूं अचानक अपने सामने पाकर अनुष्का झुंझला उठी। उसकी आंखों में प्रतिशोध के ज्वाला मूखी धधक रहे थे। अनुष्का का मन किया कि अभी जाएं और अनुराग पर लात-घूसों की बारिश कर दें। मगर भरे बाजार में एक रेपूटेटेड कम्पनी की एम्लाई को यह शोभा नहीं देता, यह सोचकर अनुष्का ने जैसे तैसे खुद को संभाला। अनुराग सड़क के उस पार खड़ा था। वह अब भी अनुष्का को देखकर मुस्कुरा रहा था। मानो उसे अपनी गलती पर कोई पछतावा नहीं था। वह अपुष्का के पास आना चाहता था मगर जल-भून का लाल हो पड़ी अनुष्का के पास जाने की उसमे हिम्मत नहीं हुई। "क्या हुआ अनु! चल!" माॅल के बाहर आई महक ने सलोनी से कहा।  दोनों दिवाली की शाॅपिग करने आई थीं। आज बाॅस ने ऑफिस कर्मचारियों को दिवाली की खरीददारी के लिए हाॅफ डे का अवकाश दिया था। "क्या ये वही है?" महक ने अनुराग को देखकर कहा। जिस क्रोध से अनुष्का, अनुराग को देख रही थी, वह ऐसे अपने सबसे बड़े दुश्मन को ही देख सकती थी।  अनुष्का कुछ न बोली। महक भी गुस्से म...

हैप्पी दीवाली

 हैप्पी दिवाली (तीन जवान और शादीशुदा बेटों की मां सगुन और पिता हनुमान यादव की बातचीत)    सगुन- आप ही अपने बेटों के लिए पढ़ी-लिखी बहूएं चाहते थे न। अब देख रहे है इन पढ़ी-लिखी लडकियों का हाॅल। इन्होंने हमें अपने ही बेटों से कितना दूर कर दिया है...! (उदास होकर) हनुमान यादव- क्यों क्या हुआ? शंकर की मां? सगुन- दिवाली का त्यौहार सर पर है मगर बेटे-बहूओं के सिर पर जू तक नहीं रेंगी रही। सभी को अपनी-अपनी पड़ी है।  हनुमान यादव- मुझे लगता है तुम ठीक थी शंकर की मां। शंकर, विष्णु, और छोटा माधव आज तीनों भाई अपनी जोरू के गुलाम बन बैठे है। तीनो अपनी-अपनी औरतों के कहने पर चलते है। हम दोनों की तो जैसे घर में कोई कीमत ही नहीं रह गयी अब। (दोनों उदास होते है।) सगून- क्यों न हम बच्चों की बात मान लें?  हनुमान यादव- तुम्हारा मतलब बंटवारा!  (हनुमान यादव चौंक कर बोले।) सगुन- हां! जी। अब लगता है तीनों भाइयों के बीच घर और जमीन-जायदात का बंटवारा कर ही देना चाहिये। शंकर- मां तुमने सही फैसला किया। रोज रोज की कीट पीट से अच्छा है की अब हम भाईयों के बीच बंटवारा हो ही जाएं। (शंकर अपनी पत्नी क...

नेताजी चुनाव पर है

 नेताजी चुनाव पर है -------------------------- (वन एक्ट प्ले) (चुनाव के दौर में नगर में वोट मांगने आये युवा नेता और नगरवासियों में बातचीत चल रही थी।) बुजुर्ग- जाओ नेता जी जाओ! तुम सरीखे पहले भी कितने ही नेता आये और चले गये। लेकिन हमारी बिजली, पानी और सड़क की समस्या जस की तस बनी हुई है। महिला- अब हम तुम्हारे चंगुल में फंसने वाले नहीं है। हम इस चुनाव में तुम्हें वोट नहीं देंगें। युवक- सही है। नगर का विकास नहीं तो वोट भी नहीं। (सभी एक साथ) हां! हा! विकास नहीं तो वोट नहीं! विकास नहीं तो वोट नहीं! (युवा नेता हाथों के इशारे से सभी रहवासियों को शांत रहने की अपील करता है। सभी चुप हो गये) युवा नेता- लोग वोट मांगने आते है जीतने के लिए! लेकिन मैं इस चुनाव में जीतने के लिए नहीं आया हूं। बुजुर्ग- तो तुम यहां किसलिए आये हो? युवा नेता- मैं यहां हारने के लिए आया हूं। (सभी चौंक जाते है। वे सभी युवा नेता की बातें ध्यान से सुनने लग जाते है।) युवा नेता- भाईयो-बहनों! आपने सही सुना। मैं चुनाव में आपसे अपने लिए वोट मांगने नहीं आया हूं। बल्कि में चाहता हूं कि आप सभी लोग मुझे अपना किमती वोट न देकर मुझे इस ...

राजकुमारी चुड़ैल

 राजकुमारी चुड़ैल  चुड़ैल और रामा आसमान में उड़ रहे थे। उड़ते-उड़ते हुये दोनों एक पहाड़ पर उतरे। रामा जानता था कि चुड़ैल यह जानने को उत्सुक थी कि रामा ने उसे राजकुमारी चुड़ैल क्यों कहा? "लो रामा! अब हम इंसानो से बहूत आ दूर गये। अब तो बताओ कि तुमने मुझे उस समय राजकुमारी चुड़ैल क्यों कहा?" चुड़ैल ने पूछा। "क्योंकि मुझे पता है कि तुम पिछले जन्म में एक सुन्दर राजकुमारी थी। ये बात मुझे मेरे दादाजी ने बताई थी जो उस समय तुम्हारे महल में काम करते थे। एक बार तुम वन में शिकार खेलने गयी हुईँ थी। तब ही तुम घने जंगल में रास्ता भटक गयी।" "जंगल के कुछ डाकुओं ने तुम्हें देख लिया। तुम अपनी जान बचाने के लिए वहां से भागी। भागते-भागते तुमने एक सुखे कुएं में छलांग लगा दी। कुंआ काफी गहरा था। जिसमें कुदते ही तुम मर गयी। बे-मौत मरने के कारण तुम राजकुमारी से चुड़ैल बन गयी। तब से जंगल में हर आने जाने वालो को तुम पानी पीने के बहाने बुलाकर उसे मार देती थी।" "लेकिन मुझे ये सब याद क्यों नहीं है। तुम झूठ बोल रहे हो! सच-सच बताओ वर्ना मैं तुम्हारा यहीं खात्मा कर दूंगी।" राजकुमारी...