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हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे

  हरे कांच की चूड़ियां {कहानी} ✍️ जितेंद्र शिवहरे            दिव्यम का उपहार रिद्धिमा सुबह से पांचवीं बार देख चूकी थी। चूड़ियों का लगाव अब पहले की तरह जाग उठा था। ऐसी ही हरे कांच की चूड़ियां अनिकेत भी तो लाया था। लेकिन अनिकेत के जाने के बाद उसने चूड़ियां कभी नहीं पहनी।  दिव्यम को सारी दुनियां में एक वहीं मिली। यह सोचकर ही वह चीड़ जाती। अनेकों बार की असहमति के बाद भी दिव्यम की हिम्मत नहीं टूटी। अपनों की खुशी के लिए रिद्धिमा दूसरी शादी को अवश्य मान गई किंतु वह चाहती थी दिव्यम स्वयं इस रिश्तें के लिए मना कर दे। दिव्यम अपने साथ एक उपहार और लाया। विभू को आर्मी की वर्दी क्या दी, चार साल का लड़का मारे खुशी के पूरे घर में दौड़ता दिखा। रिद्धिमा ने झपटकर वर्दी उतार दी। मासूम बिलख पड़ा। बाबूजी के हाथ भी नहीं आया। दादी ने बड़ी मुश्किल से संभाला। विभू का क्रोध रिद्धिमा से ज्यादा था। उस पूरा दिन वह अपनी मां से नाराज़ रहा। रिद्धिमा हार गई। विभू वर्दी पहनकर फिर खिलखिला उठा। बर्फ का काला खट्टा गोला परोसा जा रहा था। बाबूजी ने बुलाया है, जानकर रिद्धिमा कुछ नहीं बोली...

दीवानी (कहानी) ✍️जितेंद्र शिवहरे

 दीवानी (कहानी) ✍️जितेंद्र शिवहरे --------------------------------------------               नौकरी की बंधाई के साथ लड़कों के बायोडाटा भी आने लगे। कृति के पास ना-नूकुर का अब कोई बहाना नहीं था। कितना अच्छा होता अगर विक्रम कुछ साल और रूक जाता। आज पूरे पांच साल हो गए। विदेश जाने के बाद से उसकी कोई ख़बर नहीं मिली। कृति चाहती थी एक बार विक्रम से बात हो जाती तो कोई अफसोस नहीं रहता। उस दिन कितना नाराज़ हुआ था विक्रम? उसका गुस्सा देखकर एक बार तो कृति डर गई। समझाने पर भी नहीं माना। अगर मान जाता तो शायद आज दोनों साथ होते। कुछ कपड़े पलंग पर पटकते हुए अनिता बोली "ले कृति! इनसे से कोई अच्छा-सा सूट पहन लें। लड़के वाले आते ही होंगे!" कृति को यकीन था की अब उसके पास ज्यादा समय नहीं है। इस बीच अगर विक्रम मिल गया तो ठीक वरना यह अरेंज मैरिज करनी ही होगी। विक्रम इंटरनेट पर भी नहीं मिला। उसका पता किसी को पता नहीं था। अब कृति करे भी तो क्या? अतित से जुड़ी सभी यादों का ढेर लगा कर बैठ गई। कहीं कुछ सुराग मिले तो काम बन जाए। फोटोज़ देखते-देखते कब उसकी आंखें भीग गई पता न...

स्वीकार (कहानी) ✍️ जितेंद्र शिवहरे

 *स्वीकार  (कहानी) ✍️ जितेंद्र शिवहरे* -----------  ---------       -----------------                    *फिर* एक नई सुबह का स्वागत करने के लिए दुनियां तैयार थी। लेकिन ये नया दिन दिव्या के लिए कुछ खास नहीं था। उसके लिए तो वही सुबह अंधेरे में बिस्तर छोड़कर रसोई में चाय-नाश्ता और फिर खाना बनाना। साफ सफाई, पूजा पाठ और जॉब! सब कुछ क्रम से था। घरेलू कामों को करते हुए भी वह हर आधे घंटे में अपना मोबाइल चेक करना नहीं भूलती। जाने कौन-सी अच्छी ख़बर किस समूह में से आ जाएं? रश्मि की बढ़ती उम्र की चिंता और उसके लिए अच्छे रिश्तों की खोज दिव्या के दैनिक अतिरिक्त कार्य थे।  "रश्मि का मन पसंद लड़का, शायद ईश्वर बनाना भूल गया।" फोन पर दिव्या की बुआ थी। जले पर नमक छिड़कना राधा बुआ की पुरानी आदत थी। दिव्या बोली- "कुछ और जगह बात चल रही है दीदी। इस बार जरूर काम बन जायेगा!" "तू कहती है तो मान लेती हूं। मगर अब ज्यादा देर करना ठीक नहीं है, समझी!" राधा बुआ फोन रखते हुए बोली। रश्मि का चेहरा मुरझा रहा था। विष्णु खरे ये ज...

वचन (कहानी) ✍️जितेन्द्र शिवहरे

 *वचन  (कहानी)  ✍️जितेन्द्र शिवहरे*       *तीन* दिन शहर में रुकने के बाद प्रदीप अपने गांव बेरंग ही लौटने वाला था। पल्लवी का सीआईडी छोड़कर कहीं ओर जाने का कोई विचार नहीं था और ये कठोर व्यवहार उसके जॉब का हिस्सा था। उसे अपने दादाजी के वचन का कभी पता नहीं चलता, अगर प्रदीप उसे नहीं बताता।             प्रदीप अपना बोरिया बिस्तर समेट चुका था। वह बस आखिरी बार पल्लवी को अलविदा कहने आया था। अपने दादाजी के वचन को पूरा करने की उसकी ये कोशिश नाकामयाब हुई। इसके बावजूद उसका यह प्रयास प्रशंसा के योग्य था। पल्लवी के फ्रेंड्स प्रदीप से मिलकर खुश थे। उन्हें प्रदीप में कोई खोट दिखाई नहीं दी। मगर पल्लवी के निर्णय को प्रदीप के साथ-साथ सभी ने स्वीकार कर लिया।                "वह अभी शादी नहीं करना चाहती। पल्लवी को भूलना ही बेहतर है।" जूही बोली। वह एकांत में प्रदीप को पल्लवी का इरादा दोहरा रही थी। प्रदीप के चेहरे पर हल्की मुस्कान देखकर कहना मुश्किल था। क्या वह हताश था या फिर खुश? सीआईडी से लोटते ह...

मिशन स्कूल एडमिशन - व्यंग्य

 *मिशन स्कूल एडमिशन (व्यंग्य)*                     (जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर)     जुलाई महिने की आहट क्या आयी, घर के सभी खर्चों में कटौती शुरू हो गयी। बच्चों को स्कूल में दाखिल करना था। बड़ी बेटी ने घर पहूंचे स्कूली पम्पलेट जमा कर रखें थे। बहुत छानबीन के बाद एक निजी स्कूल पर आम सहमति बनी। रसोईघर के पारदर्शी डिब्बे इस महिने भी पूरे भरे नहीं जा सके थे। श्रीमती ने उनमें बचा कर रखे गये रूपये बिना कहे मेरे हवाले कर दिये। बेटीयां भी गुल्लक ले आई। मगर ये सब पर्याप्त नहीं था। एडमिशन फिस, ट्यूशन फीस, यूनिफार्म और बुक्स के बाद भी बहुत सारे खर्चे थे। कुछ पुरानी काॅपीयों के रिक्त पन्नों से रफ काम के लिए काॅपीयां तैयार की थी। मगर बच्चें उसे स्कूल ले जाने के लिए तैयार नहीं हुये।     सफ़र लंबा था और कठिन भी। अधमरे जुते न चाहते हुए भी मेरे साथ घीसने पर विवश थे। मोजें नहीं चाहते थे कि वे जूतों से कभी बाहर निकले। कपड़े रंगहीन होकर भी बदन से लिपटे थे। लेकिन काॅलर पर रफू से अब कोई चमत्कार की उम्मीद नहीं थी। श्रीमती की दैनिक साड़ीयां घ...

अक्षर के पांच रूपये

 *अक्षर के पांच रूपये (व्यंग्य)* ------------------------------------------              ✏️ *जितेन्द्र शिवहरे*                  *निवास* के समीप ही रहने वाले भवन निर्माण मिस्त्री मित्र से घर में कुछ रिपेयरिंग का काम करवाया। बदले में उसने एक हजार रूपये मांग लिए। मैं सन्न रह गया। खुद को संभालते हुये कहा- "घंटे-दो घंटे काम के एक हजार!" वह बोला- "आपसे कम ही मांगे है, वर्ना बाजार भाव तो डबल है!" कुछ कम करने का आग्रह उसने ठुकरा दिया। वह बोला- "रिपेयरिंग काम बहुत मुश्किल था। मेहनत के साथ बड़ी सावधानी ही किया, तब जाकर हुआ!"  दु:खी मन से भुगतान तो कर दिया किन्तु बंदे की हठधर्मीता से सीख आवश्य ली। उसके चले जाने पर श्रीमती जी ने बताया की इनकी पत्नी ने भी कोई दिन घरेलू कपड़ों को दुरूस्त करने के मेहनताने के फलस्वरूप  पांच सौ रूपये छीन लिए थे। इतना ही नहीं उसी का प्लम्बर बेटा नल की टोंटी चेंज करने के छ: सौ रूपये ले गया था। कुछ दिन के बाद वही मिस्त्री मित्र घर आया। उसके हाथों में किसी सरकारी योजना का फार्म था...

निर्णय (कहानी) {सीरीज-महिला युग}

 निर्णय- कहानी (महिला युग) ================= जिस निर्णय पर गायत्री आज तक अडिग थी क्या उसी रास्ते पर महिमा चल रही थी? कोई नहीं जानता था कि महिमा के मन में क्या है। जब भी शादी की बात होती वह काम का बहाना कर टाल देती। उसकी सहेलियां भी हार मान चूकी थी। गायत्री की तरफ से महिमा को फ्री हैण्ड था। शायद इसीलिए महिमा का साहस सातवें आसमान पर था।       गायत्री के निर्णय को भी कोई बदल नहीं सका था। अतीत में जो कुछ उसके साथ हुआ उसे सहकर भी वह आज शान से जी रही थी। उसकी बहादुरी के किस्सें जिसने भी सुने दाँतो तले उंगलियाँ दबा ली। गायत्री कभी नहीं चाहती थी की दुनियां को महिमा की मां का इतिहास पता चले। इसीलिए वह शहर ही नहीं बल्की प्रदेश छोड़कर यहां रह रही थी।         महिमा जब शादी योग्य हुई तब पहली बार गायत्री ने अपनी बेटी को सच्चाई बताई। गायत्री की आपबीती सुनने के बाद ही महिमा ने शादी नहीं करने का निर्णय लिया। क्योंकि उसे पता था कि सबकुछ सुनने के बाद कोई लड़का कभी महिमा से शादी नहीं करेगा।         गायत्री के साथ हुये हादसे की जानकारी ओम को भी थी।...

नाsass! (कहानी) 'महिला युग'

 *'नाssss!'  (कहानी)* ✍🏻जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर             *इस* रिश्ते के लिए गरीमा की ना थी। अब ये शादी होना संभव नहीं था। यह खब़र लड़के वालों तक पहुंचाने में जरा भी देर नहीं की गयी। देखते ही देखते सबको पता चल गया। कुछ रिश्तेदारों का मानना था कि गरीमा के इंकार की वज़ह उसकी बड़ी बहन मोना थी। मगर गरीमा का कहना कुछ ओर ही था। उसे अभी शादी करना उचित नहीं लगा, बस इसलिए ना कह दी। मोना भी अभी शादी नहीं करना चाहती थी। उसे अभी ओर पढ़ाई करनी थी। जिस तरह मोना के इंकार को सम्मान मिला उतना ही गरीमा के इंकार को भी। लेकिन क्या ये सब इतना आसान था? मोना की मां आनन्दी बताती है कि उसने सबसे पहले 'ना' कब कहा! और कैसे उसे स्वीकार्यता मिली?     संतोष को आनन्दी और आनन्दी को संतोष भा गया। बालपन का प्रेम धीरे-धीरे आगे बढ़ता ही गया। पूरे गांव में इस बात की चर्चा थी। मगर आनन्दी के पिता इसके लिए तैयार न थे। लठ्ठदारों की फौज़ संतोष की अक्ल ठिकाने लगाने निकल पड़ी। आनन्दी को भनक लगी तो वह संतोष को बचाने के लिए दौड़ी। खुन-खराबा न हो इसलिए संतोष के घरवालों ने हार मान ...

रिध्दिमा (महिला युग)

 रिध्दिमा (लघुकथा) (सीरीज़- *"महिला युग"* एपीसोड -1) --------------------------------------------- ✍🏻J.shivhare                   *रिध्दिमा* को 'देशद्रोही', 'गद्दार ' तक कहां जाने लगा था। नेशनल टीम का हिस्सा बनने से इंकार करने वाली शायद वह पहली महिला क्रिकेट खिलाड़ी थी। उसके साथी खिलाड़ी भी अचंभित थे। इस पर बहुत बहस हुई। रिद्धिमा को सोचने का एक आखिरी मौका दिया गया। तमिलनाडु को रणजी फाइनल तक पहुंचाने में उसका योगदान किसी से छिपा नहीं था। मगर आखिरी दांव बहुत मुश्किल था। एक-एक कर तमिलनाडु के बड़े खिलाड़ी चोटिल होकर फायनल मैच से बाहर होते जा रहे थे। ऐसे में आलराउंडर रिध्दिमा पर सबकी नज़र टिकी थी। भला वह अपनी जिम्मेदारी कैसे भूल जाती? देश की राष्ट्रीय टीम में एक से बढ़कर एक खिलाड़ीयों की फौज थी। इस समय प्रदेश को रिद्धिमा की ज्यादा जरूरत थी और संकट के समय वह प्रदेश की टीम को भगवान भरोसे नहीं छोड़ सकती थी।           तब ही आस्ट्रेलियाई महिला क्रिकेट टीम टेस्ट मैच खेलने भारत आ पहूंची। रिध्दिमा के लिए ये बहुत बड़ा अवसर था...

आमंत्रण (कहानी)

 आमंत्रण                     (कहानी) -------                           -------      *शर्मा* जी को घर आता देख गुप्ता जी थोड़े सतर्क हो गये। आवभगत की औपचारिकता हो इससे पूर्व ही शर्मा जी बोले उठे, "बेटी की शादी की बहुत-बहुत बंधाई।" मिसेस गुप्ता पीने का पानी ले आयी। "पूरी काॅलोनी में इस शादी की चर्चा है। सुना है आपने बहुत तैयारियां की है?" शर्मा जी आगे बोले। "अरे कहांsss? बेटी की शादी में जितना करना होता है उससे थोड़ा कम ही कर पाये है!" मिसेस गुप्ता सफाई देने लगी। राशी की हाथों में चाय की ट्रे संज रही थी। आग्रह के बाद भी शर्मा जी ने चाय नहीं ली। किन्तु राशी के सिर पर हाथ रखकर ढेर सारा आशीर्वाद अवश्य दिया।  "मैं कर बद्ध आपसे क्षमा प्रार्थी हूं गुप्ता जी।" शर्मा जी बोले। "अरे नहीं साहब! क्षमा तो हमें आपसे मांगनी चाहिए!" गुप्ता जी बोले। मिसेस गुप्ता अब जाकर सहज हुई। आत्मग्लानी उनकी आंखों में साफ दिखाई देने लगी थी। "आप हमारी भुल को क्षमा करें और प...

अब की होली (कहानी)

अब की होली -----------------             (कहानी) ✍🏻जितेन्द्र शिवहरे          *सिद्धार्थ* के पहले भी मोहल्ले से कई किरायेदार गये थे लेकिन होली पर ऐसा माहौल कभी नहीं बना। श्रीमान चौकसे के परिवार पर पहली बार उंगली उठी थी। एक जरूरतमंद नौजवान पर भरोसा करना उन्हें भारी पड़ा था। "अरे! घर की किमती चीजों को तो एक बार देख लो! कहीं उन्हें न ले भागा हो?" ये कमला काकी जी थी, जिनके आगे सबकी बोलती बंद हो जाया करती थी। घर में सबकुछ पहले की तरह था। श्रीमती चौकसे निश्चिंत थी। मगर वो अपनी बेटी के लिए दु:खी थी। "धन-दौलत ले जाता तो कोई बात नहीं थी, घर की इज्जत तो न यूं लुट ले जाता!" कमला काकी बोलती जा रही थी। बगल के पुलिस अंकल भी आ पहुंचे। मगर चौकसे जी एफआईआर लिखवाना नहीं चाहते थे। जितनी बदनामी हो रही थी उतनी ही काफी है।  "वैसे लड़का था बड़ा होशियार! और मेहनती भी।"  "हां! देखो न! जब यहां आया था, किराये तक के पैसे न थे।" "किसी ने भी मकान भाड़े पर नहीं दिया था उसे।" "और क्या! मंदिर पर परिक्रमा यात्रियों के साथ रात बिताई थी लड़के ने।" "मगर ...

लव मैरिज- कहानी

  लव मैरिज- कहानी ----------------------                   मृदुला बहुत खुश थी। हायर स्टडी के बाद वह काॅलेज जाने वाली थी।  मगर अर्पिता के चेहरे के भाव कुछ और ही बता रहे थे। सौरव भी कुछ इसी चिंता में थे। मृदुला को पैरेन्ट्स का पूरा सपोर्ट है ये उसे पता था लेकिन कुछ तो था जो उसके माता-पिता अपनी बेटी से छिपा रहे है। दोनों उससे कहे भी तो किस मुंह से? जिस बात का डर उन्हें आज सता रहा था कभी उसी डर से उन्होंने अपनों को डराया था। अर्पिता को तब इतनी समझ कहाँ थी और न हीं नई-नई जवानी की दहलीज़ पर कदम रखने वाले सौरव को कुछ समझ थी। फिल्मों की दीवानगी सिर चढ़कर बोल रही थी। बस फिर क्या था, दोनों प्रेम में पड़ गये और अधकच्ची उम्र में ही घर से भाग खड़े हुये। पढ़ाई बीच में छूट गयी। अपने प्यार की जीत पर दोनों इतराने लगे थे। खूब मौज-मस्ती की। फिर जब एक दिन मकान मालिक ने घर का किरारा मांगा तो होश उड़ गये। सिनेमा और सैर-सपाटे में घर से लाया सब कुछ खत्म हो चूका था। सौरव को मजदूरी करने के अलावा कोई काम न मिला। ऊपर से अर्पिता के पैर भारी हो गये। इन सब परेशान...

सास-बहू

  सास-बहू ---------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर                    सुख्मणी का विलाप बिना रुके जारी था। आत्माराम समझा-समझा कर थक चूके थे। सायंकाल के समय दोनों मंदिर की सीढ़ीयों के निकट बैठे अपने भाग्य को कोस रहे थे। बाबाराम वहां पहूंचे।  "क्यों विलाप करती हो मां! मुझे बताओ। मन हल्का हो जायेगा।" बाबाराम ने पूंछा। बुजूर्ग की स्नेह भरी वाणी ने सुख्मणी को सांत्वना दी। वह उठी। "आपको मेरे बेटे ने भेजा है न! मैं जानती थी मुन्ना मेरे बिना नहीं रह सकता।" सुख्मणी बाबाराम से बोली। "हां! मुझे उसी ने भेजा है! देखो, खाने-पीने की कितनी चीजें दी उसने आप दोनों के लिए।" बाबाराम कंधे पर टंगा कपड़ें का झौला खोलकर भोजन निकालते है। भोजन का स्वाद लिए तीन हो गये थे। आत्माराम और सुख्मणी ने छंककर भोजन किया। पेट के साथ आत्मा भी तृप्त हो गयी। "चलो जी। मुन्ना ने बुलाया है। अब उस चुड़ैल को हम घर से निकाल बाहर कर देंगे।" सुख्मणी का उत्साह देखते ही बनता था। अनुभवी आत्माराम जान चूके थे। बाबाराम का झूठ उनसे छिप न सका। बाबाराम पेड़ की छांव में बैठ गये। "बाबा! आपने...

सुचिता भाग गयी (व्यंग्य)

 सुचिता भाग गयी        (व्यंग्य) --------------------        ------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर                 आखिरकार विश्वनाथ जी की बेटी घर से भाग गयी। पूरे नगर में हल्ला हो गया। ढोंगी शुभ चिंतक जल-भून गये। बेटी के भाग जाने के अभिलाषियों ने छाती पीट ली। विश्वनाथ की विश्वसनीयता पर संदेह अवश्य था किन्तु उनका जुझारूपन भी विख्यात था। उनकी गोपनीय योजना ने सफलता के झंडे गाड़ दिए। हर कोई उन्हें बेटी के भाग जाने की बंधाई देना चाहता था। सुबह से फोन घन घना रहे थे। मिलने वाले कतार में थे। अब विश्वनाथ जी समाज के विशिष्ट नागरीक बन चूके थे। निज निवास पर उत्सव सरीखा माहौल था। सभी जानना चाहते थे कि सुचिता के घर से भाग जाने के पीछे क्या कारण है? घनघोर असभ्यता के दौर में ऐसी सभ्य घटना की सफलता सुचिता ने कैसे प्राप्त की? इन्हीं टीप्स को वे अपनी लाडो पर अप्लाई करने के आकांक्षी थे। विश्वनाथ जी ने बोलना शुरू किया।  "मैंने ज्यादा कुछ नहीं किया। बस, सबसे पहले अपनी बेटी को टीवी के सामने बैठा दिया। रिमोट कन्ट्रोल पर उसके ...

तुम, मैं और तुम (कहानी)

 तुम, मैं और तुम (कहानी) ------------------------------ ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर              घर का नौकर रूचि का जीवन साथी बनेगा, किसी से सोचा नहीं था। यह रूचि के पिता का निर्णय था। सभी जगह इसकी घोर निंदा हुई। लोगों ने उन्हें एक क्रूर पिता तक कह डाला। किन्तु लोकमान्य के निर्णय को बदला नहीं जा सका। पहले ही दो बार रूचि को ललित से दूर रहने के लिए समझाया जा चूका था, किन्तु तीसरी बार पुनः दोनों की चोरी-छिपे मुलाकात स्वयं लोकमान्य ने अपनी आँखो से देखी थी। अबकी बार उन्होंने दोनों की शादी करके ही दम लिया। रूचि अपने प्रेम की जीत पर खुश थी। मायके से इस जीत के एवज में आशीर्वाद के अलावा उसे कुछ नहीं मिला। खाली हाथ ससूराल आई रूचि से प्रेम का पुजारी ललित छ: महिने में ही ऊब गया। उसका हृदय विशाल था। जिसमें उमड़ता अथाह प्रेम वह कुछ अन्य जगह पर बांटने लगा। रूचि को इसकी भनक जा लगी। उसने आपा खो दिया। उस दिन ललित के प्राण जाते-जाते बचे। ललित और रूचि को ससुराल से देश निकाला दे दिया गया। ललित के लिए यह कड़वा अनुभव था। रूचि के आगे उसने हथियार डाल दिए।  इससे भी अधिक...

आफ्टर ब्रेकअप- कहानी

 आफ्टर ब्रेकअप- कहानी -----------------------------    ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर          एक अच्छी डेट से लौटकर भी रेणू खुश नहीं थी। आज पुलकित ने उसे कार गिफ्ट की थी। लेकिन ड्राइव के दौरान घटी उस घटना ने रेणु का मुड ऑफ कर दिया। बहुत कोशिशों के बाद भी वह उबर नहीं पाई।  उसकी चूप्पी में अधुरापन था। जिस बेहतर की तलाश में वह यहाँ तक चलकर आई थी, उसे वह अब तक नहीं मिला। अखिलेश, साहिल और अब पुलकित। थोड़ा और की चाहत में वह सभी को छोड़ती चली गयी। आज अखिलेश से हुई मुलाकात ने उसे चिंता में डाल दिया। कल वह कुछ नहीं थी मगर आज बहुत कुछ था उसके पास। नहीं था तो अखिलेश और उसका निश्चछल प्रेम।  अखिलेश के चेहरे पर मुस्कान थी। अपने पार्टनर के साथ अखिलेश का मस्ती मज़ाक वह कैसे भूल सकती थी। तब क्या रेणु से ब्रेकअप के बाद वह खुश था?  रेणु उधेड़बुन में थी। जबकी इस ब्रेकअप की पहल स्वयं अखिलेश ने की थी। रेणु के लिए यह ऑफर था। उसने भी ज्यादा नहीं सोचा और अलग हो गयी। यह भी हो सकता है कि अखिलेश कोई रोल प्ले कर रहा हो? वर्ना जान्हवी के साथ कोई इतना खुश कैसे रह सकत...

भैया, भाभी और भाई दूज (कहानी)

 भैया, भाभी और भाई दूज (कहानी) ----------------------------------------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर कंकू , हल्दी और चावल से आरती की थाली संजाने में मीना भाभी का कोई जवाब नहीं था। इस भाई दूज पर मीना भाभी आरती की थाली किस तरह संजायेगी! सभी जानना चाहते थे। भाभी स्वयं इसके लिए उत्साहित थी। लेकिन घर में अधुरें कामों का अंबार लगा था। उसने पति से सहयोग मांगा। किन्तु वे तो दूज पर अपनी बहन के यहाँ जाने की तैयारी में मग्न थे। पति के बाद भाभी ने देवर के विषय में सोचा। लेकिन वह भी पति के साथ जाने वाला था। यदि वह घर पर रूक जाएं तो भाभी को बहुत मदद मिल जाती।  'क्यों न चंचला को घर बुला लें?' भाभी ने सोचा। फिर यकायक चेहरे के भाव बदलकर- 'न बाबा! दोनों के बीच जो चल रहा है, क्या मुझे पता नहीं? चंचला के आने से कृष तो रूक जायेगा मगर कहीं कुछ गड़बड़ हो गयी तो सभी उस पर नाराज होंगे?' भाभी जल्दी-जल्दी घर के काम पूरे करने की कोशिश करने लगी। यहीं प्राथमिक उपाय था। लेकिन इससे बात नहीं बनने वाली, मीना ये जान चूकी थी। वह अपनी सासू मां से मदद के लिए नहीं कह पाई क्योंकि उनके भी तो भाई आने वाले थे। इसी...

हैप्पी दिवाली-कहानी

 *हैप्पी दिवाली- कहानी*                   *✍️जितेन्द्र शिवहरे, इंदौर* *दीपावली* के बीच घर छोड़कर बाहर गांव जाना किसी को ठीक नहीं लग रहा था। लेकिन बात रिद्धिमा के रिश्तें की थी सो सभी तैयारी करने लगे। जब से आर्यन का रिश्ता रिध्दिमा के लिए आया था, वह खुश है। रिध्दिमा के चेहरे की लालिमा निखर आई थी। इस बात को घर में सभी ने गौर किया।   चार घंटे का सफर तय कर आनन्दपुर गांव पहूंचे। वहां जो हुआ उसे देखकर सभी के होश उड़ गये। आर्यन को रिध्दिमा के सामने ही गांव की एक ब्राह्मण कन्या को सौंप दिया गया। "इस तरह हमें अपमानित करने का क्या औचित्य है?" रिद्धिमा के पिता बिफर उठे। उनकी श्रीमती भी कहाँ चुप रहती। उसने भी खूब खरी खोटी सुनाई। रिध्दिमा के दोनों भाई तो हाथापाई पर ऊतारू थे। रिध्दिमा चूप थी। यह उसका आत्म नियंत्रण ही था जो अंदर के आंसू उसने बाहर नहीं आने दिए। आर्यन के पिता ने हालिया दिवंगत हुए ब्राह्मण कन्या के पिता को वचन दिया, जिसे निभाने के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया। आर्यन के पास अपने पिता के वचन को स्वीकारने के अलावा अन्य मार्ग नहीं था...

ओहह! माय डैड (पर्दे के पीछे) - कहानी

 ओहह! माय डैड (पर्दे के पीछे) - कहानी "आप कैसे पिता है श्रीमान! अपने बेटे के विषय में ऐसी ओछी सोच और इतनी कड़वी बातें? छीं! छीं! छीं!" मिश्रा जी नाक मुंह सिकुड़ते हुये बोले। "मैं आपकी बेटी की भलाई की बात कर रहा हूं मिश्रा जी!" सच्चिदानन्द दिवान हमेशा की तरह निर्भीक थे। यह काजल के लिए एक बेहतरीन रिश्ता था। कहीं टूट न जाएं इस डर से सावित्री बीच बचाव में कूद पड़ी- "लेकिन आप अपने बेटे स्वयम् को आवारा, निर्लज्ज और नाकारा सिध्द करने पर क्यों तुले है दिवान साहब? आप जैसे प्रसिध्द व्यक्ति को यह कतई शौभा नहीं देता!" "भाभी जी! आप जिसे गुड़ समझ कर खाने की कोशिश कर रही है असल में वह गोबर है।" सच्चिदानन्द दीवान अपनी बात पर अडिग थे। कोई अपने सगे बेटे की इस कदर बुराई क्यों करेगा? सगी बेटी है। आंखों देखे मक्खी निगले भी तो भला कैसे! परन्तु स्वयम् की मां के विचार एक दम अलग थे। हर मां की तरह स्वयम् उनका राजकुमार था। और उसमें ऐसी कोई कमियाँ नहीं थी जो उसके पिता ने गिनाई थी। इन सबके बावजूद काजल का अगाध झुकाव स्वयम् के प्रति सबने नोट किया था। स्वयम् तो बूरी तरह काजल पर...

रात वाली टीचर (कहानी)

 रात वाली टीचर  (कहानी) ------------------------------------       बच्चों के मुख पर यह नाम ऐसा चढ़ा की सुगंधा को रात  वाली टीचर सुनने की आदत सी हो गयी। मलीन बस्ती के लापरवाह मां-बाप के बच्चों को पढ़ाने में सुगंधा को अजीब सा आत्मीय सूख मिलता। उस आनन्द को प्राप्त करने वह हर रात इंदिरा नगर जाकर बच्चों को पढ़ाना नहीं भूलती। अगले दिन निजी स्कूल में जाकर पढ़ाना उसकी दैनिक दिनचर्या थी। बस्ती के लोग भी खुश थे। क्योंकि बच्चें दिन में काम - धंधा करते और रात मे पढ़ाई-लिखाई। विद्यार्थी जब बोर्ड कक्षाओं में पहूंचने लगे तब सुगंधा उस कठिन समय को भूल गयी जो उसे सर्वप्रिय बनने में सहना पड़ा। बस्ती के कुछेक शराबी हर समय सुगंधा पर नज़र जमाये रहते। वह यह सब नजर अंदाज किये हुये थी। उसकी डांट-डपट से ये लोग डर भी जाते। इसलिए सुगंधा को खतरे वाली कोई बात कभी महसूस नहीं हुई। उस दिन वह लव लेटर पाकर सुगंधा के अलावा बस्ती के सभी लोग गुस्से में थे। युवराज को खोजना मुश्किल था। क्योंकि उसे आभास ही नहीं हुआ की ये बात इतनी बढ़ जायेगी। सुगंधा ने युवराज को ढूंढ निकाला। उसने युवराज को बड़े स्न...

ईमानदारी

 ईमानदारी                      लघुकथा -----------                      ---------         *सड़क* पर मिले रूपये न लौटाकर अनिरूद्ध ने अच्छा किया या बुरा? इस पर तो लंबे समय से बहस जारी है, जबकी उसकी ईमानदारी की लोग क़समें खाते थे। तब क्या उसकी बेरोजगारी ने उससे यह कदम उठवाया? तरह-तरह की बातें चल रही थी। लोग तो ये भी कहते थे कि अनिरूद्ध आज कामयाब है तो उन्हीं सड़क पर मिले पैसों की वजह से। शायद उसे पता चल चूका था कि ये अघोषित संपत्ति है। इन्हें लौटकर थोड़ी शाबाशी और अखबारों में फोटो उसकी बरसों की तंगहाली दूर नहीं कर पायेंगे। कहीं कहीं तो ये भी सुनने में आ रहा था कि कुछ सालों बाद अनिरूद्ध ने रुपयों के मालिक को ढूंढ़कर रूपये सूद समेत लौटा दिये। एक दिलचस्प बात ये भी बताई गयी जो प्रचलन में थी, वह ये कि अनिरूद्ध ने उन रुपयों का इस्तेमाल बिजनेस में किया और जब कामयाब हुआ तो उन रुपयों को वापिस कर दिया। लोग कहते है कि अनिरूद्ध को बैंक ने ॠण देने से मना कर दिया था और अनि...

खरीद्दारी- लघुकथा

 *खरीद्दारी - लघुकथा* *--------------------*       ✍️ *जितेन्द्र शिवहरे*       *--------------------*                 *अनुज* सिर झुकाएं मां की डांट खा रहा था। आज लौकी भी खराब निकली थी। परसों की पपीता भी इतनी पिलपिली थी की कोई खा नहीं सका था। सारी की सारी फेंकनी पड़ी थी। "आखिर ये नुकसान होते हुये आप कब तक देखते रहेंगे?" रमा चाहती थी की अनुज के पिता खरीददारी की परम्परा गत जिम्मेदारी फिर से अपने हाथ में ले लें। "अनुज की मां! पानी में उतरे बिना कोई तैरना सीखा है भला?" कांमता प्रसाद का यह जवाब रमा को पसंद नहीं आया। ये तो अब आये दिन की बात हो गयी। अनुज की छुट्टीयां अक्सर खरीददारी में बितती। कपड़ों की उसे कोई खास परख नहीं थी। मगर स्वयं के लिए ये उसे ही खरीदने होते थे। कृषि की पढ़ाई करने के बावजूद उसे फल और सब्जियां खरीदना अब तक नहीं आया था। इलेक्ट्राॅनिक सामान अनुज से खरीदवाना मतलब पैसों की बर्बादी! रमा जब-तब गुस्से में आ जाती। मगर कांमता प्रसाद ने ध्यैर्य नहीं खोया। अच्छे और खराब की परख अब अनुज को स्वयं करनी थी। क्योंक...

शिक्षक तेरे कितने काम?

 शिक्षक तेरे कितने काम?  (वन एक्ट प्ले)  --------------------------     ---------------  ✍️जितेन्द्र शिवहरे   ----------------------- अधिकारी क्रं 1-  (गुस्से में) - ये सब क्या है मैडम जी? इस बच्चें को तो कुछ भी नहीं आता। एक भी प्रश्न का इसने सही-सही जवाब नहीं दिया? कक्षा 5वीं का वह छात्र नज़र नीचे किए खड़ा था। अन्य बैठे छात्रों के मध्य भय का वातावरण निर्मित हो चूका था। सभी शांत थे। शिक्षिका भी चूप थी। बड़ी ही शांति से वे सर साहब की डांट सुन रही थी। अधिकारी क्रं 2 - विभाग को लंबे समय से आपकी शिकायतें मिल रही थी। आप अक्सर स्कूल से गायब रहती है, ऐसा क्यों? अधिकारी क्रं. 1 - आप स्कूल विलंब से आकर घर जल्दी चली जाती है! जबकि स्कूल का समय सुबह 10 से सायं 5 बजे तक है लेकिन आप पूरे समय ड्यूटी नहीं करती। क्या ये शिकायतें सही है? शिक्षिका मैडम का संतोषजनक जवाब न मिलने पर निलंबन का खतरा था। किन्तु शिक्षिका बिना भय के अधिकारी की नाराज़गी सहर्ष भाव से पचा पा रही थी। यह भी आश्चर्यजनक किन्तु सत्य था। अधिकारी क्रं 2 - अगर आपने समुचित उत्तर नहीं दिया तो आपके व...

True Love

True Love     (कहानी) ---------------     ----------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे ----------------------          अलका के बेबाक अंदाज का पता तो तब ही चल गया था जब उसने अठारह की होती ही अपने से कई गुना अमीर बजाज घराने के युवराज रूद्र को शादी का प्रपोजल पूरे काॅलेज के सामने दे दिया था। उसका मानना था कि जिस काम को करने से आपका दिल खुश हो उसे जरूर करना चाहिये। मगर रूद्र इतनी जल्दी कहाँ मानने वाला था। उसे तो अलका भी बाकी लड़कीयों की तरह ही लगी थी। जिसे जल्द से जल्द भोग कर वह अन्य दूसरी लड़कीयों की तरफ बढ़ना चाहता था। लेकिन अलका को जब रूद्र के इरादों का पता चला तो वह गुस्से से आग बबूला हो उठी। उस दिन रुद्र की बहुत पिटाई हुई। जवाबी हमले रूद्र ने भी किये मगर अलका का कालीका अवतार रूद्र पर भारी था। अलका ने उसे तब तक लात-घूसों से पीटा जब तक की वहां उपस्थित भीड़ ने अलका को रोक नहीं लिया। इस कांड के बाद यकायक अलका तो बहुत प्रसिद्ध हो गयी लेकिन रूद्र की बदनामी अखबारों की मुख्य सुर्खियां बनी। यह देखकर रूद्र ने अपना नाम काॅलेज से कटवा लिया। रूद्र को दुखी दे...

तेरी दिवानी-कहानी

  तेरी दिवानी- कहानी       ✍️जितेन्द्र शिवहरे             "यदि मैं तुम्हारा प्रपोजल एक्सेप्ट कर लेती, तब भी क्या अंदर नहीं आते?" दिव्या ने वैभव से कहा। वह बाइक पर सवार था। वैभव कुछ पलों के लिए सोच में पड़ गया। "अब तो काॅफी पीनी ही पड़ेगी।" वैभव बोला। दोनों मुस्कुराते हुये फ्लैट में दाखिल हुये। "वाओ! वैभव तुम! अंदर आओ!" दरवाजा खोलते ही तृप्ति आश्चर्य से बोली। "तुने वैभव को मना कर के अच्छा नहीं किया दिव्या।" तृप्ति ने अपनी रूम मेट सहेली दिव्या से कहा। वह और दिव्या दोनों इस फ्लैट में एक साथ रहती है। "कहीं ऐसा तो नहीं इसकी वज़ह आप है?" वैभव ने मज़ाक किया। "काश, मैं होती। लेकिन अनफाॅर्चूलिटी मुझे और दिव्या को लड़कीयों में कोई इन्ट्रैस नहीं है।" तृप्ति बोली। "काॅफी तैयार है।" हाथ में काॅफी ट्रे लेकर आई दिव्या बोली। "वैभव! आपके लिए ऑफर?" तृप्ति बोली। उसने कप को होठों से लगाया। "क्या?" वैभव ने काॅफी का पहला घूंट लिया।  "मैं तैयार हूं, अगर आप रेडी है तो हम दोनों शादी कर सकते है!" तृप्ति बोली। ...

चेट विथ लव

 चेट विथ लव (संवाद) -------------- ✍️जितेन्द्र शिवहरे            "ये कैसा प्यार है अश्विन? न ठीक से देखा, न एक-दूसरे को जाना?" सुचिता अपने मोबाइल पर टाइप पर कर रही थी। "पता नहीं सुचिता! पर मैंने सुना है, इसी को प्यार कहते है।" अश्विन ने लिखा। "क्या सच में?" सुचिता ने टाइप किया। "हां! और वैसे भी जान- पहचान में तो व्यापार होता है प्यार नहीं।" अश्विन ने लिखा। वह सुचिता के प्रश्नों का उत्तर दे रहा था। दोनों की मोबाइल पर ये पहली लम्बी चेट थी। "कुछ दिनों से एक प्रश्न मेरे दिमाग में घूम रहा है?" सुचिता ने पूंछा। " पूंछो।" अश्विन ने लिखा।  "आप करते क्या  है?" सुचिता ने अगला टैक्स मेसेज भेजा। "आपसे प्यार!" अश्विन ने लिखा और साथ में दिल वाली इमोजी भेज दी। "वेरी फनी! प्यार के अलावा आप क्या करते है?" सुचिता ने टाइप करते हुये पूंछा। "मतलब?" अश्विन के प्रश्न के जवाब में जवाब आया। "मतलब की आप शादी करना चाहते है तो कुछ काम-वाम तो करते होंगे?" सुचिता ने लिखा। "काम? मगर क्यों?" अश्विन ...